इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बुधवार को मथुरा श्रीकृष्ण जन्मभूमि मामले में सुनवाई की। कोर्ट ने श्रीकृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह मस्जिद विवाद में दाखिल जनहित याचिका को खारिज कर दिया। जनहित याचिका में विवादित परिसर हिंदुओं को सौंपे जाने के साथ ही पूरी भूमि का अधिग्रहण कर ट्रस्ट बनाने और हिंदुओं को पूजा की छूट देने की मांग को लेकर यह याचिका दाखिल की गई थी।
हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि तकरीबन ऐसी ही मांग को लेकर डेढ़ दर्जन सिविल सूट यानी मुकदमे हाईकोर्ट में पेंडिंग हैं, इसलिए इस मामले को खारिज किया जाता है। इसी टेक्निकल ग्राउंड पर जनहित याचिका को खारिज कर दिया गया।
चीफ जस्टिस प्रीतिंकर दिवाकर और जस्टिस आशुतोष श्रीवास्तव की खंडपीठ ने यह आदेश पारित किया। इस मामले में सुनवाई पूरी होने के बाद अदालत ने 4 सितंबर को अपना जजमेंट रिजर्व कर लिया था।
2020 में दायर की गई थी याचिका
याचिकाकर्ता वकील ने 2020 में दायर की गई इस जनहित याचिका में मुख्य रूप से दलील दी गई थी कि कई ऐतिहासिक ग्रंथों में दर्ज किया गया कि विचाराधीन स्थल वास्तव में कृष्ण जन्मभूमि है और यहां तक कि मथुरा का इतिहास रामायण काल से भी पहले का है। इस्लाम सिर्फ 1500 साल पहले आया है।
याचिका में यह भी दलील दी गई कि इस्लामिक न्यायशास्त्र के अनुसार यह एक उचित मस्जिद नहीं है क्योंकि जबरन भूमि पर कब्जा कर मस्जिद नहीं बनाई जा सकती। वहीं हिंदू न्यायशास्त्र के अनुसार एक मंदिर एक मंदिर है, भले ही वह खंडहर क्यों न हो।
याचिकाकर्ता वकील बोले, डीटेल्स जजमेंट का अध्ययन करेंगे
याचिकाकर्ता वकील महक महेश्वरी का कहना है कि डीटेल्स जजमेंट आने पर उसके अध्ययन के बाद वह आगे के लिए कोई फैसला करेंगे। मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह मस्जिद की जमीन को लेकर तकरीबन डेढ़ दर्जन सिविल सूट मथुरा की जिला अदालत में दाखिल किए गए थे।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कुछ महीनों पहले कहा था कि मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए इन मुकदमों की सुनवाई अब मथुरा की जिला अदालत के बजाय सीधे तौर पर हाईकोर्ट में ही होगी। अयोध्या के राम जन्मभूमि विवाद की तर्ज पर इन मुकदमों की सुनवाई हाईकोर्ट में ही सीधे तौर पर किए जाने का फैसला किया गया था। हालांकि हाईकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील दाखिल की गई है।
दावा: विवादित परिसर पहले मंदिर था
अदालत में मुकदमे का निपटारा होने तक विवादित परिसर में हिंदुओं को पूजा अर्चना की इजाजत दिए जाने की भी मांग की गई थी। जनहित याचिका में दावा किया गया है कि विवादित परिसर पहले मंदिर था। मंदिर को तोड़कर वहां शाही ईदगाह मस्जिद का निर्माण कराया गया था।
2021 में भी खारिज की गई थी याचिका
जिस जगह अभी मस्जिद है वहां द्वापर युग में कंस ने भगवान श्री कृष्ण के माता पिता को कैद कर रखा हुआ था। सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता वकील महक माहेश्वरी के मौजूद न होने की वजह से एक बार याचिका खारिज कर दी गई। इससे पहले 19 जनवरी 2021 को भी खारिज की गई थी। हाईकोर्ट ने मार्च 2022 में इस जनहित याचिका को री स्टोर कर लिया था। हाईकोर्ट ने इसे सुनवाई के लिए दोबारा पेश किए जाने के निर्देश दिए थे।
Compiled: up18 News
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