देवभूमि उत्तराखंड में सर्दियों के दौरान अक्सर बर्फीले तूफान आते रहते हैं। प्रशासन इन तूफानों से बचने की चेतावनी जारी करता है। चमोली, पिथौड़ागढ़, रुद्रप्रयाग और उत्तरकाशी आदि जिले तूफान प्रभावित इलाकों में शुमार हैं लेकिन हिमालय के ऊपरी इलाकों में ऐसे कई मठ और आश्रम हैं जहां ऐसे रहस्यमय योगी रहते हैं जिन्हें कड़ाके की ठंड में भी आग या गर्म कपड़ों की जरूरत नहीं होती।
इतना ही नहीं, ये लंगोटी या गमछा आदि के अलावा कोई और वस्त्र नहीं पहनते। बावजूद इसके इनके शरीर का तापमान इतना अधिक होता है कि अगर इनके ऊपर कोई गीला कपड़ा लपेट दिया जाए तो वह भी कुछ देर बाद सूख जाता है। इनकी इस जादुई शक्ति का राज है सदियों पुरानी एक यौगिक क्रिया।
यह यौगिक क्रिया संन्यासियों के बीच हजारों साल से चली आ रही है। वैसे तो नागा साधु और दूसरे कई संन्यासी अपने शरीर पर धूनी की राख लगाकर बहुत हद तक ठंड से बचे रहते हैं लेकिन हिमालय के ये संन्यासी इस मामले में इन सबसे अलग हैं।
अनोखी तकनीक की जानकारी सबको नहीं
इन अनोखे संन्यासियों और इनकी इस अनोखी यौगिक क्रिया की जानकारी आम लोगों को नहीं है। मूलत: केरल के एक सिद्ध योगी श्री एम ने इस यौगिक क्रिया की जानकारी अपनी आत्मकथा में दी है। श्री एम को आध्यात्म और समाजसेवा के क्षेत्र में उनके योगदान के चलते भारत सरकार ने साल 2020 में पद्मभूषण से सम्मानित भी किया था।
केवल सूत की लंगोटी पहनते हैं
श्री एम से जब हिमालय में एक तिब्बती लामा मिला तो उन्होंने उससे भी पूछा कि वह बिना गर्म कपड़ों के इतनी ऊंचाई पर बर्फ के बीच कैसे रह रहे हैं। जवाब में लामा ने कहा, मैं महान योगी मिलरेपा के कर्ग्यूपा संप्रदाय का योगी हूं। मिलरेपा का अर्थ है सूत की पट्टी। हम लोग कठिन से कठिन जाडे़ में भी केवल सूत की एक लंगोटी ही पहनते हैं।’
शरीर में पैदा होती है आग जैसी गर्मी
जब पूछा गया कि वह सर्दी से खुद को बचाने के लिए क्या करते हैं तो उन्होंने कहा, हम लोग प्राणायाम की एक तकनीक ‘थुम्मो’ का उपयोग करते हैं। इसमें खास तरह से सांस ली जाती है और जलती हुई आग की कल्पना की जाती है। थोड़ी देर के बाद हमें अपनी नाभि या मणिपुर चक्र में गर्मी महसूस होती है। जैसे-जैसे यह क्रिया बढ़ती है गर्मी भी पूरे शरीर में फैलने लगती है।’
गीले कपडे़ तक सूख जाते हैं
श्री एम ने देखा कि वाकई उस योगी को पसीना आ रहा था। योगी ने बताया कि यह गर्मी बाहरी नहीं बल्कि आंतरिक है इसीलिए उसे आग या गर्म कपड़ों जैसे बाहरी कारण की जरूरत नहीं है। उस योगी ने दावा किया कि उनके संप्रदाय के कुछ योगी तो सर्दियों में गीली चादरें अपने शरीर पर लपेटकर मिनटों में उसे सुखा सकते हैं।’ हिमालय के दुर्गम क्षेत्रों में आज भी ऐसे अनेक योगी आश्रमों और मठों में रहते हैं। ये अपनी जरूरतों को कम से कम रखते हैं ताकि अपनी ध्यान साधना में बिना किसी व्यवधान के लगे रहें।
Compiled: up18 News