मुंह में मिठास और एक खास अहसास घोलती है चॉकलेट. कितना अच्छा हो अगर ये स्वाद सेहत को नुकसान न पहुंचाए. ब्रिटेन के शोधकर्ताओं ने पता लगाया है कि कम फैट वाली चॉकलेट भी उतनी ही स्वादिष्ट हो सकती है.
क्या आपको चॉकलेट पसंद है? ये भी कोई सवाल हुआ. चलिए ऐसे पूछते हैं: आपको चॉकलेट क्यों पसंद है? उसकी मिठास की वजह से? पहला टुकड़ा मुंह में घुलते ही जो आनंद आता है, उसकी वजह से? या शायद इसलिए कि कैसे वो जीभ पर धीरे धीरे पिघलती है, मुंह के अंदर घुलने लगती है और आप उस स्वाद में डूबे हुए चॉकलेट का दूसरा टुकड़ा काट रहे होते हैं?
आपने ठीक समझा, मैं चोकोहोलिक हूं- चॉकलेट की दीवानी. और जिन तीन वजहों का जिक्र मैंने ऊपर किया है उनके आधार पर मानती हूं कि चॉकलेट, मनुष्यता के सबसे शानदार आविष्कारों में से एक है. लेकिन ब्रिटेन की लीड्स यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों के लिए वह शोध का विषय रही है. इस महीने उनका अध्ययन एसीएस एपलाइड मटेरिएल्स एंड इंटरफेसस नाम के जर्नल में प्रकाशित हुआ है.
यूनिवर्सिटी के खाद्य विज्ञान और पोषण स्कूल से जुड़े मुख्य शोधकर्ता सियावाश सुल्तान अहमदी और उनकी टीम ने पाया कि मुंह में चॉकलेट का जो अहसास होता है, वही हमारे आनंद का कारण है. उनके शोध के नतीजे बताते हैं कि सारा मामला लुब्रिकेशन यानी चिकनाई का है.
चॉकलेट को चिकना कर देने से ही आपके मुंह को पूरी तरह भर देने वाला वो चॉकलेटी स्वाद पैदा होता है. इस ढंग से कि चॉकलेट में पड़ी कुछ खास सामग्रियां हमारी लार में घुल जाती हैं. सबसे प्रासंगिक सामग्री है फैट.
इसमें ज्यादा हैरानी की बात तो नहीं. हां सेहत को लेकर सतर्क रहने वालों को इस बात से थोड़ी निराशा हो सकती है. लेकिन एक अच्छी खबर हैः सुल्तान अहमदी और उनके सहयोगी शोधकर्ताओं का दावा है कि उन्होंने चॉकलेट को और स्वास्थ्यवर्धक बनाने का तरीका खोज निकाला है. कुछ इस तरह कि उसकी बुनियादी खूबी में कोई बदलाव नहीं करना होगा. राज छिपा है, चॉकलेट के भीतर मौजूद फैट की लोकेशन में.
वसायुक्त कोको बटर से आता है वो स्वाद
चॉकलेट कई सारी चीजों से बनी होती है. कुछ ठोस पदार्थ होते हैं, जैसे चीनी और कोको पार्टिकल. और वो ठोस पदार्थ जो द्रव में बदल जाते हैं, जैसे कोको बटर, जिसमें फैट होता है. निम्न तापमान में कोको बटर ठोस होता है लेकिन मुंह में जाते ही और जीभ से लगते ही वो तैलीय द्रव में बदल जाता है. सुल्तान अहमदी ने डीडब्लू को बताया, “उसी वजह से आपको जीभ में एक नाजुक नरम अहसास होता है जो अच्छा लगता है.”
हमारे मुंह में वो इतना लुभावना अहसास आखिर आता कैसे है, यह जानने के लिए शोधकर्ताओं ने चॉकलेट खाने की प्रक्रिया को तीन चरणों में बांटाः सबसे पहले, आप चॉकलेट का एक टुकड़ा काटते हुए उसे चाटते हैं. फिर चॉकलेट की ऊपरी परत मुंह में पिघल जाती है, कोको बटर द्रव के रूप में जीभ पर उतर आता है. और सबसे अंत में, चॉकलेट में मौजूद सामग्रियां लार में घुलकर, एक इमलशन यानी गाढ़ा द्रव बना देती हैं. आखिरकार उसे ही हम निगलते हैं.
चॉकलेट और कृत्रिम जीभ
इन तीन चरणों में चॉकलेट के स्वाद का विश्लेषण करने के लिए शोधकर्ताओं ने एक उपकरण तैयार किया जिसे आप आर्टिफिशीयल टंग यानी कृत्रिम जीभ भी कह सकते हैं. सुल्तान अहमदी बताते हैं, “ये एक मशीन है जिसमें जीभ जैसी एक सतह लगी होती है. हमने असली इंसानी जीभों का डाटा लिया और जीभ की बनावट का एक अंदाजा लेने के लिए उनका विश्लेषण किया. फिर हमने एक औसत निकाला, उसे एक मॉडल में भरा और कुछ सांचों के 3डी प्रिंट निकाल लिए.”
इस तरह से शोधकर्ताओं ने ऐसे नमूने तैयार कर लिए जो बिल्कुल जीभ जैसे दिखते थे और वही काम करते थे. वैज्ञानिकों ने डार्क चॉकलेट को नकली जीभ पर रगड़ा और फिर जीभ को, तालु की तरह काम करने वाली दूसरी सतह पर रगड़ा, यह जानने के लिए कि वैसा करने से चॉकलेट का क्या होता है और उसके पदार्थ कैसे घुलते हैं.
चॉकलेट टेस्टिंग के लायक नहीं इंसान
नकली जीभ बनाने की जरूरत क्यों पड़ी? लोगों की मदद भी तो ली जा सकती थी? विज्ञान के नाम पर चॉकलेट के कुछ दीवानों को ढूंढना इतना मुश्किल तो नहीं. सुल्तान अहमदी समझाते हैं, “हमने यह तय किया था कि इस प्रयोग में हम इंसानी पैनलिस्टों या टेस्टरों की मदद नहीं लेंगे. और उसकी वजह थी इंसानी स्वभाव. हम और आप, उसी चॉकलेट का स्वाद लेकर अलग अलग ढंग से उसका बखान कर सकते हैं. हम चाहते हैं कि हमें लैब आधारित नपेतुले नतीजे मिलें.”
संक्षेप में कहें कि जब बात आती है चॉकलेट के स्वाद को परखने की, तो उस मामले में इंसान भरोसेमंद, तुलनात्मक डाटा दे पाने के उपयुक्त नहीं. उनकी प्रकृति ढुलमुल होती है.
कम फैट वाला वही खास अहसास
बहरहाल, कृत्रिम जीभ से किए गए परीक्षणों ने दिखाया कि अधिकांश चॉकलेटों के मुकाबले कम फैट वाली चॉकलेटों से भी, चिकनाई के जरिए मुंह में वही स्वाद पैदा किया जा सकता है.
सुल्तान अहमदी कहते हैं, “हम लोग जीरो-कैलोरी चॉकलेट नहीं चाह रहे हैं. मुझे नहीं लगता कि वो मुमकिन भी है. लेकिन हमारा लक्ष्य, फैट वाले हिस्से को यानी कोको बटर को कम करने का है. क्योंकि अपने टेस्ट में हमने देखा था कि वसा की मात्रा की बजाय, कोको बटर की लोकेशन ज्यादा महत्वपूर्ण है.”
फैट को ज्यादातर चॉकलेट की सतह पर रहना चाहिए और ठोस कोको पार्टिकल के इर्दगिर्द. शोधकर्ताओं ने पाया कि चॉकलेट के भीतर अपेक्षाकृत कम फैट और ज्यादा कोको पार्टिकल रखे जा सकते हैं. सुल्तान अहमदी कहते हैं, “ऐसा करने से चॉकलेट सेहत के लिए बेहतर हो जाएगी और उसमें कैलोरी भी कम होगी.”
लेकिन उतनी मिठास नहीं
कम कैलोरी वाली चॉकलेट! शानदार खबर है! लेकिन मेरे जैसे मिल्क चॉकलेट के शौकीनों के लिए जोर का झटका धीरे सेः वो चॉकलेट उतनी मीठी नहीं होगी. उसमें मौजूद कोको पार्टिकल की मात्रा को ही प्रतिशत के रूप में चॉकलेट की रैपर पर प्रिंट किया जाता है, जैसे कि 70% या 85%. जैसा कि हम जानते हैं जितना ज्यादा प्रतिशत होगा, चॉकलेट उतनी ज्यादा डार्क और कड़वी होगी. अगर आप डार्क चॉकलेट के प्रेमी हैं, तो आपके लिए यह अच्छा है.
Compiled: up18 News
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