बैलूर/ कर्नाटक। दक्षिण भारत का 900 साल पुराना विष्णु तीर्थ कहा जाने वाला “चेन्नाकेशव मंदिर” अपनी अद्वितीय के लिए प्रसिद्ध है। कर्नाटक के बैलूर में भगवान विष्णु के अवतार श्री चेन्नाकेशव का ये मंदिर होयसल राजवंश के राजा विष्णुवर्धन ने 1104 -17 ई. के बीच बनवाया था।
दक्षिण भारत में यूं तो द्रविड़ शैली में बने बहुत से मंदिर हैं जो अपनी वास्तुकला और कारीगरी की वजह से मशहूर है परंतु विष्णु अवतार चेन्नाकेशव मंदिर की बात ही अलग है। यह मंदिर स्थापत्य एवं मूर्तिकला के नजरिये से बहुत ही खास है। भगवान चेन्नाकेशव को विष्णुजी का अवतार माना जाता है। इस मंदिर की दीवारों पर पौराणिक के पात्रों का चित्रांकन किया गया है। इस मंदिर की संरचना इतनी भव्य है कि इसे भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा मान्यता दी गई है। इसके तीन प्रवेश द्वारों में से पूर्वी प्रवेश द्वार सबसे अच्छा है। यहां पर रामायण और महाभारत के कई चित्र बने हुए हैं।
यह मंदिर स्थापत्य एवं मूर्तिकला की दृष्टि से भारत के सर्वोत्तम
ये मंदिर स्थापत्य और मूर्तिकला के नजरिये से भारत के खास मंदिरों में शुमार है। इस मंदिर में कुल 48 बड़े स्तंभ हैं। जिन पर अलग-अलग तरह की आकृतियों को उकेरा गया है। जो कि बहुत ही अद्भुत है। 1104 ई. में इस मंदिर के बनने की शुरुआत हुई थी। 13 सालों तक मंदिर का काम चला और 1117 ई में ये देवालय पूरा बन चुका था।
कला का अनोखा नमूना
मन्दिर के भीतर देवी सरस्वती की मूर्ति उत्कृष्ट वास्तुकला का अद्भुत नमूना है। देवी सरस्वती नृत्य मुद्रा में है। जो विद्या की अधिष्ठात्री के लिए सर्वथा नई बात है। इस मूर्ति की बनावट में गुरुत्वाकर्षण रेखा का खास ध्यान रखा गया है। अगर मूर्ति के सिर पर पानी डाला जाए तो, वो नाक से नीचे बाईं ओर होता हुआ बाएं हाथ की हथेली में आकर गिरता है। इसके बाद वहां से पानी की धारा दाएं पैर के तलवे से होता हुआ बाएं पैर पर गिर जाता है। इस तरह होयसल राजवंश के वास्तुकारों ने गुरुत्वाकर्षण ताकत को ध्यान में रखकर अद्भुत कलाकृति बनाई।
सितारों के आकार का है मंदिर
चेन्नाकेशव मंदिर 3 सितारों के आकार के एक मंच पर रखा गया था । इस मंदिर में प्रवेश करने पर भक्तों को एक स्तंभों का सभागृह दिखता है, जो उन्हें तीन सितारों के आकार के पवित्र स्थान में ले जाता है। पूरा मंदिर मूर्तियों से अलंकृत है। केशव मंदिर की दीवारों पर देवी-देवताओं, संगीतकारों को उकेरा गया है। 64 कोशिकाओं वाला मंदिर चारों ओर से घिरा हुआ है। इस मंदिर के शुरू में, वेनुगोपाल, जनार्दन, और केशव की नक्काशीदार मूर्तियां रखी गई थीं।
1117 ई. में बनकर हुआ था तैयार
मंदिर का निर्माण होयसल राजवंश के राजा विष्णु वर्धन द्वारा 1104 ई. से 1117 ई. के बीच करवाया गया था। यह मंदिर 178 फीट लंबा और 156 फीट चौड़ा है। मंदिर के पूर्वी प्रवेश द्वार में चालीस झरोखे बने हैं। इनमें से कुछ के पर्दे जालीदार हैं और कुछ में ज्यामितीय आकृतियां बनी हैं।
– एजेंसी
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