लड़कियों का विवाह किस उम्र में होना चाहिए इसको लेकर छिड़ी बहस…

अन्तर्द्वन्द

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की घोषणा के अनुसार केन्द्र सरकार ने लड़कियों के विवाह की आयु न्यूनतम 21 साल करने का निर्णय किया है। विवाह की उम्र 21 वर्ष करने के लिए तीन कानूनों में संशोधन करना पड़ेगा। ये हैं- विशेष विवाह अधिनियम 1954, बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006 और हिन्दू विवाह अधिनियम 1955। फिलहाल इन तीनों कानूनों के अनुसार लड़कियों के विवाह की न्यूनतम आयु 18 साल और लड़के की 21 वर्ष है। समता पार्टी की पूर्व अध्यक्ष जया जेटली की अध्यक्षता में गठित कार्यबल की सिफारिश पर विवाह की आयु बढ़ाने का निर्णय लिया गया है। इससे लैंगिग असमानता समाप्त होगी।

विवाह की उम्र बढ़ाना सही है या गलत:- इस पर चर्चा से पूर्व वैश्विक स्थिति देखते हैं। विकसित राष्ट्र अमेरिका, जर्मनी और फ्रांस में लड़का और लड़की की विवाह की उम्र 18 साल है। ब्रिटेन में 16 वर्ष है। चीन में लड़की की 20 वर्ष और लड़का की 22 वर्ष है। भारत और बांग्लादेश की स्थिति एक जैसी है। एक दौर वह भी था जब भारत में लड़कियों की शादी की उम्र 1891 में 12 वर्ष निर्धारित की गई थी। 1929 में विवाह की आयु 14 वर्ष और 1949 में 15 वर्ष निर्धारित की गई। बाद में 1955 में हिन्दू विवाह अधिनियम में उम्र बढाकर 18 वर्ष तय की गई। अब 2021 में फिर से विवाह की उम्र का निर्धारण किया जा रहा है।

अब सबके मन में यह प्रश्न कौंध रहा होगा कि संशोधित कानून मुसलमानों पर भी लागू होगा या नहीं? मैंने छानबीन की। कई अधिवक्ताओं से बातचीत की। विवाह अधिनियमों के प्रावधानों को लेकर माननीय न्यायालयों में मतभिन्नता है। दिल्ली उच्च न्यायालय ने 2012 में 15 साल की एक लड़की की अपनी मर्जी से शादी को विधिमान्य करते हुए कहा था कि इस्लामिक कानून के मुताबिक लड़की मासिक धर्म शुरू होने के बाद अपनी इच्छानुसार निकाह कर सकती है। इसके विपरीत गुजरात उच्च न्यायालय ने 2015 में एक निर्णय में कहा – बाल विवाह निषेध कानून 2006 के दायरे में समुदाय विशेष वाले भी आते हैं। अक्टूबर 2017 में सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश एमबी लोकुर और दीपक गुप्ता ने समुदाय विशेष के अलग विवाह कानून को बाल विवाह निषेध अधिनियम के साथ मजाक बताया था। सितंबर 2018 में पंजाब-हरियाणा उच्च न्यायालय ने कहा था-  मुस्लिम पर्सनल लॉ स्पेशल एक्ट है, जबकि बाल विवाह निषेध अधिनियम एक सामान्य एक्ट है। इसलिए मुस्लिम पर्सनल लॉ पर लागू नहीं होता। इस संदर्भ में वरिष्ठ अधिवक्ता सरोज यादव का कहना है कि जो भी संशोधन हो, सब पर लागू हो। ऐसा न हो कि पर्सनल लॉ वालों पर लागू ही न हो। फिर सरकार के संशोधन का कई औचित्य नहीं रह जाएगा। उन्हें लगता है कि प्रत्येक पर्सनल लॉ पर ये संशोधन प्रभावी होगा और हर समुदाय की लड़कियों की शादी के लिए 21 वर्ष की आयु अनिवार्य होगी। सरकार ऐसा कोई काम नहीं करेगी, जिससे किसी को कानून पर अंगुली उठाने का मौका मिले।

विवाह की उम्र बढ़ाने के पीछे हेतु लड़कियों को सुरक्षित मातृत्व देना, कुपोषण से बचाना और अपने पैरों पर खड़ा होने का अवसर देना है। जल्दी विवाह होने से लड़कियों की पढ़ाई नहीं हो पाती है और इस कारण नौकरी के अवसर हाथ से निकल जाते हैं। 21 वर्ष की आयु होने से लड़कियों को स्वयं का करियर बनाने के लिए तीन वर्ष और मिलेंगे। हालांकि लड़कियों के प्रति सोच बदली है, उन्हें पढ़ाकर काबिल बनाया जा रहा है, फिर भी ग्रामीण क्षेत्र में लड़की का विवाह जल्दी किया जाता है। 18 साल की भी नहीं होने दिया जाता है। कोई सामाजिक संस्था शिकायत कर दे तो विवाह रुक जाता है, अन्यथा 21 साल तक तो लड़की मां बन जाती है। द फैडरेशन ऑफ ऑब्स्टेट्रिक एंड गायनीलॉजिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया (फोग्सी) के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्षव डॉ. नरेन्द्र मल्होत्रा का कहना है कि केन्द्र सरकार ने सही कदम उठाया है। अब लड़कियों की जिम्मेदारी है कि वे 21 साल से पहले विवाह न करें लेकिन 25 साल की उम्र में मां जरूर बन जाएं अन्यथा समस्या हो जाएगी। समाजवेत्ताओं का मत है कि विवाह की उम्र बढ़ाने से अनैतिक संबंध, दुष्कर्म और ‘लिव इन’ जैसे मामलों में वृद्धि होगी। देह की जरूरतों को पूरा करने के लिए ये दो ही मार्ग बचते हैं। विवाह की उम्र बढ़ाते समय सरकार को इस बारे में भी सोचना चाहिए। अगर लड़का और लड़की की विवाह की उम्र 19 साल कर दें तो कैसा रहे? याद रखें कि कानून के बाद भी बाल विवाह रुके नहीं हैं।

डॉ. भानु प्रताप सिंह
(लेखक ‘जनसंदेश टाइम्स’ के कार्यकारी संपादक हैं।)