राधाष्टमी: पापो से मुक्ति के लिए श्री राधा जी का करें पूजन

Religion/ Spirituality/ Culture

भाद्रपद महीने की शुक्ल पक्ष की अष्टमी को राधाष्टमी के नाम से मनाया जाता है। इसी तिथि को राधा का जन्म हुआ था। इस साल यह 14 सितंबर मंगलवार को मनाया जाएगा। कहा जाता है कि राधा भगवान श्रीकृष्ण से साढ़े ग्यारह माह बड़ी थीं। भाद्रपद शुक्ल नवमी को जब गोकुल में नंदबाबा के यहां भगवान कृष्ण का जन्मोत्सव मनाया जा रहा था तब रानी कीर्ति राधा को लेकर वहां गई। उस समय कान्हा पालना झूल रहे थे और गोद में बैठी राधा ने पहली बार अपने आराध्य के दर्शन किए थे।

कैसे जन्मी राधा

राधा वृषभानु गोप की संतान थी उनकी माता का नाम कीर्ति था। पद्मपुराण में राधाजी को राजा वृषभानु की संतान बताया गया। जब राजा यज्ञ के लिए भूमि की सफाई कर रहे थे तब भूमि से कन्या के रुप में राधा मिली थी। राजा ने इस कन्या को अपनी पुत्री मानकर इसका लालन-पालन किया।

एक अन्य कथा के अनुसार जब भगवान विष्णु कृष्ण अवतार में जन्म लिया था तब उनके अन्य सदस्य भी पृथ्वी पर जन्म लिया था। विष्णु जी की पत्नी लक्ष्मी जी, राधा के रुप में पृथ्वी पर आईं थीं। ऐसी मान्यता है कि राधाजी अपने जन्म के समय ही वयस्क हो गई थी। राधाजी को श्रीकृष्ण की प्रेमिका माना जाता है।

पूजन विधि

राधाष्टमी के दिन राधाजी की मूर्ति को पंचामृत से स्नान कराते हैं। स्नान कराने के बाद उनका श्रृंगार किया जाता है। इसके बाद राधा जी की सोने या किसी अन्य धातु से बनी हुई सुंदर मूर्ति को विग्रह में स्थापित करते हैं। इस दिन मंदिरों में 27 पेड़ों की पत्तियों और 27 ही कुंओं का जल इकठ्ठा करना चाहिए। इस विधि से जो भक्त पूजा करते हैं वह सभी पापों से मुक्ति पाते हैं।

ब्रज और बरसाना में राधाष्टमी उत्सव

ब्रज और बरसाना में राधाष्टमी एक बड़े त्यौहार के रूप में मनाई जाती है। वृंदावन में भी यह उत्सव बडे़ ही उत्साह के साथ मनाया जाता है।

मथुरा, वृन्दावन, बरसाना, रावल और मांट के राधा रानी मंदिरों इस दिन बड़ी संख्या में भक्त दर्शन करते हैं।

-एजेंसियां


Discover more from Up18 News

Subscribe to get the latest posts sent to your email.