
युद्धविराम पर चर्चा से पहले यह समझना जरूरी है कि किसी भी देश का प्रमुख उद्देश्य अपने नागरिकों की सुरक्षा और संप्रभुता की रक्षा होता है। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्राथमिकता भी यही है – देश की अखंडता और जनता की सुरक्षा। लेकिन जब कोई युद्धविराम होता है, तो उसके पीछे केवल सैन्य कारण नहीं, बल्कि कई कूटनीतिक, सांस्कृतिक और मानवीय कारक भी काम कर रहे होते हैं।
कुछ आलोचक पिछले कुछ दिनों से प्रधानमंत्री मोदी पर युद्धविराम के फैसले को लेकर सवाल उठा रहे हैं। यह स्वाभाविक है कि लोग भावनात्मक रूप से आहत हों, खासकर जब हाल ही में पहलगाम में हुए हमले जैसे घटनाक्रम सामने आए हों। लेकिन क्या यह उचित है कि केवल आवेश में आकर किसी निर्णय की निंदा की जाए? आइए, इस पूरी स्थिति को थोड़े गहराई से समझते हैं।
1. परमाणु हमले का संभावित खतरा: पिछले कुछ दिनों में पाकिस्तान में लगातार भूकंप जैसी गतिविधियों की खबरें आईं। क्या यह केवल भूगर्भीय घटना है, या उस कायरता का प्रतीक, जो निराशा में अपना अंतिम दांव चलने को मजबूर है? अगर यह सत्य है, तो यह संकेत है कि पाकिस्तान, भारत के खिलाफ परमाणु हमले की तैयारी में था। यह केवल एक भौतिक संघर्ष नहीं, बल्कि सभ्यताओं का संघर्ष है, जो मानवता की नींव को हिला सकता है।
2. मिसाइल परीक्षण और सिरसा घटना: 9 मई की रात को हरियाणा के सिरसा के ऊपर एक मिसाइल को इंटरसेप्ट किया गया। यह केवल एक धातु का गोला नहीं, बल्कि भय और बर्बादी का संदेश था। क्या यह संभव है कि पाकिस्तान ने परमाणु हथियार ले जाने वाली मिसाइल के परीक्षण की कोशिश की थी, जो केवल विनाश की गूंज पैदा कर सकता था?
3. अंतरराष्ट्रीय दबाव और कूटनीति: ऐसे समय में केवल तलवारें खींचना ही पर्याप्त नहीं होता। अमेरिकी उपराष्ट्रपति ने भी इस मुद्दे पर भारत से संपर्क किया, और स्थिति की गंभीरता को समझते हुए युद्धविराम की सलाह दी। यह केवल एक सैन्य निर्णय नहीं, बल्कि सभ्यताओं के संघर्ष से बचने की एक गहरी कूटनीतिक चाल थी।
4. भारतीय सेना की त्वरित कार्रवाई: पहलगाम हमले के जवाब में भारतीय सेना ने आतंकी कैंपों पर हमला कर सैकड़ों आतंकियों को मार गिराया और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) में कई ठिकानों को नष्ट कर दिया। यह दर्शाता है कि भारत ने अपने घावों का जवाब दिया, लेकिन साथ ही उसने पूरी दुनिया को विनाश की आग में झोंकने से भी रोका।
5. संतुलित रणनीति का महत्व: भारत के लिए सबसे महत्वपूर्ण है अपने नागरिकों की सुरक्षा और भविष्य की स्थिरता। केवल आवेश में आकर परमाणु युद्ध की ओर बढ़ना आत्मघाती हो सकता है। इसलिए, मोदी सरकार ने एक संतुलित और रणनीतिक कदम उठाया, जो केवल युद्ध का समाधान नहीं, बल्कि मानवता की रक्षा का प्रण था।
निष्कर्ष: युद्धविराम का निर्णय केवल कायरता या दबाव का परिणाम नहीं है, बल्कि एक गहरी समझ, मानवीय संवेदना और रणनीतिक सोच का प्रतीक है। यह निर्णय केवल भारत की रक्षा के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व की स्थिरता के लिए भी महत्वपूर्ण है। ऐसे में केवल व्यक्तिगत आलोचना से परे जाकर व्यापक दृष्टिकोण से इस निर्णय का मूल्यांकन करना चाहिए।
अगले समय में भी ऐसे कई मौके आएंगे जब दुश्मनों का निर्णायक अंत किया जा सकेगा, लेकिन यह तभी संभव है जब हम संयम, समझ और रणनीति के साथ आगे बढ़ें।