विश्व में कई संस्कृतियां उभरी और उनका लय हो गया परंतु प्राचीन हिंदू संस्कृति ही एकमात्र ऐसी संस्कृति है जो समय की कसौटी पर खरी उतरी है तथा आज भी टिकी हुई है और उसका दूर तक प्रसार भी हो रहा है। इसका एक उदाहरण है ‘योग’! भारतीय ऋषियों ने प्राचीन काल में योग-साधना सिखाई परंतु पिछले कुछ वर्षों में इसका प्रसार बहुत अधिक प्रमाण में बढ़ गया है और विश्व भर में मान्यता प्राप्त कर रहा है।
भारत में ऐसे कई महाभाग हैं जिन्होंने योग का अभ्यास करना तब आरम्भ कर दिया जब योग, योगा बनकर भारत में आया। आयुर्वेद के साथ भी यही स्थिति है , ऐसा कहा जाता है कि ‘जहां की पैदावार है वहाँ नहीं बिकती परंतु, हिन्दू संस्कृति मूलत: चैतन्य का उद्गम स्थान है इसमें बताए गए व्रत, त्यौहार व उत्सव चैतन्य से संबंधित हैं इसलिए हमेशा ही ये उत्सव व त्यौहार उत्साह का वातावरण निर्माण हैं ।
दीपावली हिन्दू संस्कृति का एक महत्वपूर्ण त्यौहार है। चूंकि हिंदू तेज तत्त्व के उपासक हैं, इसलिए दीपावली पर दीप जलाकर अग्नि नारायण की पूजा की जाती है। दीपावली के कालावधि में दक्षिणायन शुरू रहता है तथा सूर्यास्त जल्दी होने के कारण सर्वत्र अंधेरा फैल जाता है। इस अज्ञान रूपी अंधकार को नष्ट करने और ज्ञानरुपी तेज को प्रक्षेपित करने के लिए दीपावली पर सर्वत्र दीपक जलाए जाते हैं। दीपक के प्रकाश से वातावरण भी शुद्ध होता है। भारतीय पूरे विश्व में हैं इसके कारण यह संस्कृति भी पूरे विश्व में फ़ैली हुई है ।
दीपावली, इस त्योहार ने सात समुद्र की सीमाएं भी लांघी हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका के व्हाइट हाउस में दीपावली कई वर्षों से मनाई जाती रही है जबकि कई देशों के राष्ट्रपति, लोगों को दीपावली का संदेश भेज रहे हैं । 14 अक्टूबर 2009 को, पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने अपने राष्ट्रपति भवन के पूर्वी कक्ष में वैदिक मंत्रों का जाप करते हुए दीये जलाये थे। (संदर्भ:indianamericancommunitynews.com)
विश्व दीपावली, यह हिंदू संस्कृति का भूषण !
नेपाल – लेखिका कल्याणी गाडगिल ने देश-विदेश में मनाई जा रही दीपावली की जानकारी संकलित की है । इसमें वे लिखती हैं, ”नेपाल में दीपावली को ‘तिहार’ के रूप में मनाया जाता है. काग तिहार के दिन कौवे के लिए मिठाई घर की छत पर रखी जाती है। दूसरे दिन अर्थात, ‘कुकुर तिहार’ के दिन, कुत्ते के साथ मनुष्य के अविभाज्य संबंध के सम्मान में कुत्ते की आरती की जाती है। कुमकुम का टीला और गेंदे का हार पहनकर कुत्ते को मीठा खिलाते है। फिर ‘गायतिहार’ का अर्थ है गाय की पूजा और अंत में लक्ष्मी पूजन होती है ।
इंडोनेशिया – इंडोनेशिया के बाली द्वीप के मंदिरों में दीप जलाकर दीपावली मनाई जाती है।
सिंगापुर – सिंगापुर में सार्वजनिक आतिशबाजी पर प्रतिबंध है; हालाँकि, मोर, भारत का राष्ट्रीय पक्षी, दीपकों को सजाते समय व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है।
मलेशिया – मलेशिया में दीपावली पर छाया कठपुतली का खेल व्यापक रूप से दिखाया जाता है। इसके जरिए रामायण और महाभारत की कहानियां सुनाई जाती हैं।
थाईलैंड – थाईलैंड में दीपावली को ‘लुई क्रथोंग‘ के रूप में मनाया जाता है। केले के पेड़ की पत्तियों से बने हजारों दीये नदी में छोड़े जाते हैं।
फ़िजी – दीपावली पारंपरिक रूप से फिजी के प्रशांत द्वीप पर मनाई जाती है। इस दौरान विभिन्न प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैं। टूर्नामेंट की शुरुआत फिजी के प्रधान मंत्री द्वारा दीप प्रज्ज्वलित करके की जाती है।
इंगलैंड – दीपावली के बड़े जुलूस लंदन शहर से भी निकलते हैं। इसमें भारतीय परिधानों, नृत्यों और कपड़ों का सुंदर दर्शन होता है।
न्यूजीलैंड – न्यूजीलैंड के ऑकलैंड और वेलिंगटन में दीपावली से दो हफ्ते पहले मेला लगाया जाता है। इसका उद्घाटन सीधे प्रधानमंत्री के हाथों दीप जलाकर किया जाता है। संसद भवन ‘बी हाइव‘ के सामने एक विशाल रंगोली बनाई जाती है। वहां के भारतीय मंदिरों से अन्नकूट का आयोजन किया जाता है।’
दीपावली का गुप्त अर्थ – भगवान कृष्ण ने राक्षस नरकासुर का वध किया और लोगों को काम, वासना, अनैतिकता और बुरी प्रवृत्तियों से मुक्त किया और उन्हें प्रभु विचार (दिव्य विचार) देकर उन्हें सुखी किया। यह दीपावली हम वर्षों से एक परंपरा के रूप में मना रहे हैं। आज उसका अर्थ लुप्त हो गया है। इस गुप्त अर्थ को ध्यान में रखते हुए यदि इससे अस्मिता जागृत हो जाए तो अज्ञानी अन्धकार का, साथ ही भोग और अनैतिक, आसुरी प्रवृत्ति कम हो जाएगी और सज्जन शक्ति पर उनका प्रभुत्व कम हो जाएगा। दीपावली के अवसर पर जीव द्वारा किए गए धर्माचरण और साधना के कारण जीव का आत्मा से अनुसंधान जुड़कर आत्मतेज प्रकट होगा । इस आत्मतेज के कारण ही जीव को आत्मानंद की अनुभूति आती है।
हिंदू संस्कृति के पदचिन्ह ! – विदेशों में प्राचीन हिंदू संस्कृति का अस्तित्व न केवल त्योहारों के अवसर पर देखा जा सकता है, बल्कि प्राचीन मंदिरों और रीति-रिवाजों में भी देखा जा सकता है। यह इस बात को रेखांकित करता है कि अन्य संप्रदायों के उदय से पहले सनातन वैदिक हिंदू धर्म ही एकमात्र धर्म था। महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय की ओर से सद्गुरु (श्रीमती) अंजलि गाडगिल सहित चार व्यक्तियों ने दक्षिण पूर्व एशिया का भ्रमण व अध्ययन किया। इस भ्रमण के दौरान उन्हें विदेशों में प्राचीन हिंदू संस्कृति के पदचिन्ह देखने को मिले।
इंडोनेशिया – हालांकि इंडोनेशिया एक द्वीप समूह और मुस्लिम बहुल राष्ट्र है, लेकिन महान हिंदू संस्कृति ने वहां गहरी जड़ें जमा रखी हैं। ‘भारत से 4,000 किमी दूर इंडोनेशियाई द्वीप पर हिंदू संस्कृति पहले से मौजूद थी, इसका एक उदाहरण पेट्रोल पंप पर द्वारपाल के रूप में स्थापित श्री गणेश की मूर्ति है! 15वीं शताब्दी तक इंडोनेशिया में हिंदू राजाओं का शासन था। जावा द्वीप कई सदियों से रामायण की घटनाओं पर आधारित अपने नृत्य नाटक के लिए प्रसिद्ध है। योग्यकर्ता शहर से 17 किमी की दूरी पर ‘प्रंबनन’ नाम का एक गांव है। यहां मंदिरों का एक समूह है जिसे ‘चंडी प्रबंनन’ कहा जाता है। ‘चंडी’ का अर्थ है मंदिर और ‘प्रबंनन का अर्थ है परब्रह्मण’। इसका अर्थ है ‘परब्रह्म मंदिर समूह’। कभी दुनिया के सबसे ऊंचे मंदिर रहे इस मंदिर में हजारों की संख्या में श्रद्धालु और पर्यटक आते हैं। इस मंदिर के भव्य परिसर में प्रतिदिन शाम 7 बजे से रात 9 बजे तक रामायण की घटनाओं पर आधारित नृत्य नाटिका का प्रदर्शन किया जाता है।
श्रीलंका – श्रीलंका के कोलंबो से 10 किमी दूर केलानिया गांव में विभीषण का एक प्राचीन मंदिर है।
जापान – जापान में आज भी श्री सरस्वती, श्री लक्ष्मी, ब्रह्माजी और श्री गणेशजी की पूजा श्रद्धा से की जाती है। जापानी जीवन में, भगवान गणेश के रूप को ज्ञान और अपनत्व के गुणों से व्याप्त शक्ति का प्रतीक माना जाता है। 11वीं सदी का ‘श्री गणेश मंदिर’ यहां का सबसे पुराना मंदिर है। 806 ईसा पूर्व में एक जापानी संत कोबोदेशी ने चीन की यात्रा की और वहां से जापान में मंत्रयान इस पंथ के ग्रंथ, विभिन्न मूर्तियां और धार्मिक ग्रंथों को लेकर आए । इन्हीं संत ने जापान में हिंदू देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना शुरू कर दी। 1832 में, जर्मन विचारक फिलिप फ्रांज वैन शिबोल्ड ने देवी सरस्वती के 131 मंदिरों और टोकियो (अब जापान की राजधानी) में भगवान गणेश के 100 मंदिरों की गिनती की। जापान के कुसा में 12वीं सदी का ‘श्री गणेश मंदिर’ एक राष्ट्रीय धरोहर माना जाता है। जापान के सांस्कृतिक सलाहकार शिगेयुकी शिमानोरी ने एक भारतीय वृत्तपत्र को बताया कि “जापान बुद्धिजीवियों को हिंदू देवताओं का अध्ययन करने के लिए प्रोत्साहित करने का प्रयास कर रहा है।”
ऊपर वर्णित उदाहरण केवल प्रातिनिधिक स्वरूप का है। अध्ययन के अंत में, सनातन हिंदू धर्म की विश्वव्यापकता को दुनिया भर में फैली हिंदू संस्कृति और इसकी विशेषताओं तथा पूजा में समानता को देखकर महसूस किया जा सकता है। धर्म संस्थापना के देवता भगवान श्री कृष्ण के चरणों में प्रार्थना करें कि सनातन धर्म का ध्वज ब्रह्मांड में लहराता रहे, त्योहार और उत्सव धर्मशास्त्र के अनुसार मनाए जाएं और सभी धर्माचरण का आनंद लें सके।
– कु. कृतिका खत्री,
सनातन संस्था, दिल्ली
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