‘ विटामिन ’ शब्द में ‘वाइटैलिटी’ का बोध निहित है। ‘वाइटैलिटी’ मतलब जैवीयता यानी विटामिन नहीं मिले तो शरीर नहीं चल सकेगा। उनका कोई विकल्प नहीं। उन्हें हम अपने शरीर में बना नहीं सकते। ऐसे में बाहर से विटामिन लेने के सिवाय कोई चारा नहीं। जरूरी नहीं हर विटामिन जो आपके लिए हो, वह हर जीव के लिए भी विटामिन ही हो। बहुत से जानवर अपने शरीर में विटामिन-सी का निर्माण कर लेते हैं अतः यह उनके लिए विटामिन नहीं है लेकिन मनुष्य का शरीर विटामिन-सी नहीं बना सकता। उन्हें उसे बाहर से भोजन में लेना ही होगा। अगर नहीं मिला तो उसकी कमी से स्कर्वी रोग हो सकता है।
विटामिन बी-12 संरचना के तौर पर सबसे जटिल है। इसमें एक दुर्लभ तत्त्व कोबाल्ट होता है। यह ऐसा विटामिन है जो कोई जीव-जन्तु या पेड़-पौधे बना ही नहीं सकते। इसका निर्माण कुदरत ने केवल जीवाणुओं को सिखाया है। वे ही इसे बनाते हैं और सब तक यह पहुंचते हैं। गाय का ही उदाहरण लेते हैं। गाय घास खाती है। वह अधचबाई घास उसके उस पेट (आमाशय) में जाती है। जिसके चार कक्ष हैं। फुर्सत में वह उसी घास की जुगाली करती है। दिलचस्प यह है कि गाय के पेट में अरबों जीवाणु होते हैं जो विटामिन बी-12 बनाते हैं। पाचक-रसों में सने घास के निवाले आंतों में पहुंचते हैं। वहीं से रक्त में अवशोषित हो जाते हैं। अब अपनी-हमारी बात। अव्वल तो आप और हम हर पत्ती-पौधा-फल धोकर खाते हैं। इससे सतह के जीवाणु साफ हो जाते हैं। फिर हमारे आमाशय में जीवाणुओं की वैसी व्यवस्था नहीं। ऐसे में जब भोजन पचकर छोटी आंत पहुंचता है तो उसमें विटामिन बी-12 नहीं होता। प्रकृति के सभी सदस्यों ने अपने बचाव के लिए कोई न कोई युक्ति गढ़ ली है। केवल इंसान को अपना इंतजाम करना है।
किसी पौधे-पत्ते-बूटे-फल-सलाद को खाकर आपको बी-12 नहीं मिल सकता लेकिन जानवरों से मिलने वाली वस्तुओं में इसकी मौजूदगी होती है। आप मांस, अंडा, दूध, दही, पनीर, छाछ, खीर कुछ भी ले सकते हैं लेकिन बी-12 लेना तो पड़ेगा ही। वरना बड़ी समस्या हो सकती है।
बी-12 बी-कॉम्प्लेक्स परिवार के आठ सदस्यों में से एक है। हमारा और कई जानवरों का शरीर इसे यकृत ( लिवर ) में स्टोर रखता है। यही कारण है कि पशुओं के कलेजे यह विटामिन पाने के अच्छे स्रोत में से एक माने जाते हैं लेकिन बहुत से लोग यह नहीं खा सकते। उन्हें बी-12 की गोलियां या कैप्सूल लेने होंगे। इस बाबत वे अपने डॉक्टर से बात कर सकते हैं।
बड़े काम का बी-12
शरीर में डीएनए निर्माण में विटामिन बी-12 की अहम भूमिका होती है। साथ ही यह वसा, प्रोटीन आदि के उपचय में भी खास भूमिका निभाता है। ऐसे में मनुष्य के शरीर की हर कोशिका इस विटामिन पर निर्भर है। हर कोशिका में डीएनए है। उसमें वसा है। प्रोटीन भी है। इन सबके संग होती तमाम रासायनिक क्रियाएं बिना इस विटामिन के पूरी नहीं हो सकेंगी। नतीजन नाभिक (न्यूक्लियस ) पूरी तरह से विकसित नहीं हो पाएगा। कोशिका बड़ी तो होती जाएगी लेकिन उसका केंद्रक नहीं बढ़ेगा। जैसे किसी बुजुर्ग के शरीर में बच्चे का मन हो।
कमी से यह नुकसान
विटामिन बी 12 की कमी से ब्लड के निर्माण में फर्क पड़ता है। इसके अभाव से लाल रक्त कोशिकाएं, श्वेत रक्त कोशिकाएं व प्लेटलेट्स कम हो सकते हैं। हीमोग्लोबिन गिरने से कमजोरी आ सकती है। शरीर टूटता रहता है। कार्यक्षमता घट जाती है। बी-12 की कमी से होने वाला यह अनीमिया मेडिकल-जगत में मेगैलोब्लास्टिक अनीमिया के नाम से जाना जाता है। तन्त्रिका-तन्त्र पर पड़ता दुष्प्रभाव तन्त्रिकाओं (नर्व्स) को नुकसान पहुंचाता है जिससे हाथ-पैरों में झुनझुनी व सुन्नपन हो सकता है। ये सब आगे चलकर मांसपेशीय कमजोरी में बदल जाते हैं। फिर चाल में बदलाव के साथ डगमगाहट हो सकती है और याद्दाश्त पर भी बुरा असर पड़ सकता है। देखना-सुनना-बोलना सब धीरे-धीरे कमजोर हो सकता है।
-एजेंसियां
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