आज ही के दिन यानी 19 नवंबर 1835 को झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का जन्म हुआ था। ऑस्ट्रेलिया के रहने वाले जॉन लैंग एक बैरिस्टर थे। जब ब्रिटिश हुकूमत की ओर से रानी लक्ष्मीबाई को किला छोड़कर राज महल में रहने का आदेश दिया गया तो उन्होंने अपना केस लंदन की कोर्ट में ले जाने का फैसला किया। इसके लिए जॉन लैंग को उनकी तरफ से वकील नियुक्त किया गया। उन दिनों जॉन लैंग आगरा में ही थे, जहां रानी के वित्त मंत्री ने उनसे भेंट की।
उन्होंने रानी लक्ष्मीबाई से अपनी मुलाकात की पूरी कहानी Wanderings in India — Sketches of Life in Hindostan में लिखी है।
जॉन लैंग लिखते हैं कि जब ब्रिटिश हुकूमत ने झांसी को ब्रिटिश साम्राज्य में विलय का आदेश दे दिया तो उसके एक महीने बाद उन्हें एक पत्र मिला। रानी लक्ष्मीबाई की ओर से भेजा गया यह पत्र ‘गोल्ड पेपर’ में था। पत्र की भाषा फारसी थी। रानी लक्ष्मीबाई ने उनसे भेंट का आग्रह किया था। जॉन लेंग के पास रानी का पत्र लेकर दो लोग गए थे। उनमें से एक रानी के पति के वित्त मंत्री थे और दूसरा रानी का प्रधान वकील था।
पालकी का वर्णन
जब रानी का पत्र मिला तो जॉन लैंग आगरा में थे और आगरा से झांसी का रास्ता दो दिनों का था। वह झांसी की रानी के निवास पर जाने की पूरी कहानी यूं लिखते हैं-
शाम को मैं अपनी पालकी पर सवार हुआ और अगले दिन सुबह ग्वालियर पहुंचा। छावनी से डेढ़ मील दूरी पर झांसी के राजा का एक छोटा सा मकान था। उस मकान को ठहरने के स्थान के तौर पर इस्तेमाल किया जाता था। वहां मुझे एक मंत्री और वकील ले गए जो मेरे साथ-साथ थे। मैंने नाश्ता किया और हुक्का पिया। उसके बाद करीब 10 बजे के करीब हमसे जाने के लिए कहा गया। दिन तो काफी गर्म था लेकिन रानी ने एक बड़ी और आरामदायक पालकी भेजी थी। वैसे वह पालकी कम, एक छोटा सा कमरा ज्यादा लगती थी। उसमें हर तरह की सुविधा थी। उसमें एक पंखा भी लगा था जिसे बाहर से एक आदमी खींचता था। पालकी में मेरे और मंत्री एवं वकील के अलावा एक खानसामा भी था जो मेरी जरूरत के मुताबिक खाने-पीने की चीजें मुहैया कराता। इस पालकी को दो घोड़े खींच रहे थे जो काफी ताकतवर और फुर्तीले थे। दोनों करीब 17 हाथ ऊंचे थे। दिन के करीब दो बजे हम झांसी के इलाके में पहुंचे। पालकी को एक जगह पर ले जाया गया जिसे ‘राजा का बाग’ कहा जाता था। जब मैं उतरा तो वकील, वित्त मंत्री और राजा के अन्य सेवक मुझे एक विशाल टेंट के अंदर ले गए। फिर रानी ने एक पंडित से मशविरा किया कि मेरे साथ बातचीत के लिए क्या उचित समय होगा। उनको बताया गया कि साढ़े पांच से साढ़े छह के बीच का समय उचित रहेगा। जब मुझे इस बारे में बताया गया तो मैंने संतोष व्यक्त किया।
जूते उतारने को कहा गया
इसके बाद मैंने रात के खाने का ऑर्डर दिया। उसी बीच वित्त मंत्री ने मुझसे कहा कि वह मुझसे किसी खास मामले पर बात करना चाहते हैं। फिर उन्होंने वहां मौजूद सभी लोगों को चले जाने का आदेश दिया। सबके चले जाने के बाद वित्त मंत्री ने मुझसे आग्रह किया कि क्या आप रानी के कमरे में जाते समय अपने जूते बाहर उतार सकते हैं। शुरू में तो मैं इसके लिए राजी नहीं था लेकिन लम्बी बहस के बाद मैं तैयार हो गया।
मिलने की घड़ी
मिलने की घड़ी आ गई थी। रानी की ओर से एक सफेद हाथी भेजा गया था। रानी का महल उस जगह से करीब आधे मील की दूरी पर था, जहां मैं ठहरा हुआ था। हाथी के दोनों तरफ घोड़े पर मंत्री सवार थे। शाम के समय हम महल के दरवाजे पर पहुंच गए थे। रानी को सूचना भेजी गई। करीब 10 मिनट बाद दरवाजा खोलने का आदेश मिला। मैंने हाथी पर सवार होकर प्रवेश किया और आंगन में उतरा। शाम का समय था और गर्मी काफी था। जैसे ही मैं उतरा चारों तरफ से लोगों ने घेर लिया। यह देखकर मंत्री ने सभी को दूर हटने को कहा। फिर थोड़ी देर बाद मुझे पत्थर की एक सीढ़ी पर चढ़ने को कहा गया जो काफी तंग थी। जब ऊपर पहुंचा तो वहां एक आदमी ने मुझे करीब छह-सात कमरे दिखाए। कुछ देर बाद एक कमरे के दरवाजे के करीब मुझे ले जाया गया। उस आदमी ने दरवाजे को खटखटाया। अंदर से एक महिला की आवाज आई, ‘कौन है?’
उस आदमी ने जवाब दिया ‘साहिब’। दरवाजा खुला और उस आदमी ने मुझे अंदर जाने को कहा। साथी ही उसने कहा कि वह जा रहा है। वहां पर मैं जूते उतारकर अपार्टमेंट में पहुंचा। रूम के बीचों-बीच एक आर्मचेयर थी जो यूरोप में बनी हुई थी। कमरे में सुंदर सा कालीन बिछा हुआ था। कमरे के अंत में पर्दा था और उसके पीछे लोग बात कर रहे थे। मैं कुर्सी पर बैठा और अपनी टोपी उतार ली। मैंने एक महिला की आवाज सुनी जो बच्चे को मेरे पास आने के लिए कह रही थी लेकिन बच्चा आने को तैयार नहीं था। बच्चा डरते-डरते हुए मेरे पास आया। उसने जो आभूषण और पोशाक पहन रखे थे, उससे मुझे अंदाजा लग गया कि इसी बच्चे को राजा ने गोद लिया होगा। बच्चा काफी खूबसूरत था और अपने उम्र के मुकाबले काफी छोटा था। उसका कांधा चौड़ा था जैसा मैंने अकसर मराठा बच्चों का देखा था। मुझे बताया गया कि वही लड़का महाराजा है जिसका अधिकार भारत के गवर्नर जनरल ने छीन लिया है।
जब मैं बच्चे से बात कर रहा था तो पर्दे के पीछे से एक तेज और अजनबी आवाज आई। बाद में पता चला कि वह रानी की आवाज थी। फिर रानी ने मुझे पर्दे के करीब बुलाया और अपनी समस्या बताने लगीं।
रानी को देखने की उत्सुकता
मैंने वकील से सुन रखा था कि रानी काफी सुंदर महिला हैं और उम्र करीब 20 साल है। मैं उनकी एक झलक देखने के लिए उत्सुक था। जल्द ही मेरी यह इच्छा भी पूरी हो गई। लड़के ने पर्दे को खींच दिया जिससे मैं उनको साफ-साफ देख पाया। भले ही कुछ पल देख पाया लेकिन इतना काफी था कि मैं उनके बारे में विवरण कर सकूं। उनका शरीर ज्यादा भारी-भरकम नहीं था लेकिन दरमियाना जरूर था, यानी वह न ज्यादा मोटी और न ज्यादा पतली थीं। अभी उनके चेहरे पर चमक थी जिसे देखकर लगता था कि कम उम्र में वह काफी सुंदर रही होंगी। उनका रंग बहुत साफ नहीं था लेकिन डार्क भी नहीं था। बातचीत का अंदाज बहुत अच्छा था और बहुत तेज थीं। खासतौर पर आंखें काफी सुंदर थीं और नाक बेहद छोटी थी। उनका चेहरा गोल था। उनकी कानों में ईयर रिंग के अलावा कोई जेवर नहीं था।
उन्होंने लक्ष्मीबाई की सुंदरता को कुछ यूं बयान किया है, ‘जैसे मुझे उनको देखने का सौभाग्य मिला, अगर वैसे गवर्नर जनरल को भी उनसे मिलने का मौका मिलता तो शायद वह एक खूबसूरत रानी को झांसी वापस कर देते।’
फिर उनकी समस्या पर मेरी बातचीत हुई। मैंने उनको बताया कि गवर्नर जनरल के पास पावर नहीं है कि वह गोद लिए हुए पुत्र के अधिकार को मान्यता दे सके। मैंने उनको कहा कि सबसे बेहतर तरीका होगा कि आप पेंशन लेती रहें और अपना केस भी लड़ते रहें। इस पर वह तैयार नहीं हुईं और कहा कि ‘हम अपना झांसी नहीं देंगे।’ फिर मैंने उनको समझाया कि विरोध से कुछ फायदा हासिल नहीं होगा। रात के करीब 2 बजे मैं महल से रवाना हुआ। वह ब्रिटिश सरकार से किसी तरह की पेंशन नहीं लेने और अपने राज्य का विलय करने पर किसी तरह तैयार नहीं थीं।
अगले दिन मैं ग्वालियर के रास्ते आगरा लौट गया। उन्होंने मुझे उपहार के तौर पर एक हाथी, एक ऊंट, एक अरब घोड़ा, एक जोड़ा ग्रेहाउंड, कुछ सिल्क और एक जोड़ा भारतीय शॉल दिया। मैं ये चीजें लेना नहीं चाहता था लेकिन वित्त मंत्री ने कहा कि अगर मैंने लेने से मना कर दिया तो रानी को काफी तकलीफ होगी। रानी ने मुझे अपना एक चित्र भी दिया था जो वहां के एक स्थानीय व्यक्ति ने बनाया था।
-एजेंसियां
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