जानिए! ऋषि पंचमी का महत्व, व्रत की विधि और उससे जुड़ी अन्य जानकारी

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ऋषि या मुनि ये शब्द कहते ही, हमारे हाथ अपने आप जुड़ जाते हैं और हमारा सिर आदर से झुक जाता है। इस भारत खंड में अनेक ऋषियों ने विभिन्न योग विधियों के अनुसार साधना करके भारत को तपोभूमि बनाया है। उन्होंने धर्म और अध्यात्म पर विस्तार से लिखा है और समाज में धर्माचरण और साधना का प्रसार कर समाज को सभ्य बनाया है।

आज का मनुष्य प्राचीन काल के विभिन्न ऋषियों का वंशज है लेकिन चूंकि मनुष्य यह भूल गया है, वह ऋषियों के आध्यात्मिक महत्व को नहीं जानता है। साधना करने से ही ऋषियों के महत्व और शक्ति को समझा जा सकता है।

भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को ‘ऋषि पंचमी’ कहा जाता है, इस वर्ष यह 11 सितम्बर को है। इस दिन ऋषियों की पूजा करने का व्रत धर्मशास्त्र में बताया गया है।

सनातन संस्था द्वारा संकलित इस लेख में ऋषि पंचमी का महत्व, व्रत की विधि और उससे जुड़ी अन्य जानकारी बताई जा रही है।

ऋषि: कश्यप, अत्रि, भारद्वाज, विश्वामित्र, गौतम, जमदग्नि और वशिष्ठ सप्तर्षि हैं

उद्देश्य – अपने तपोबल से विश्व में मानव पर अनंत उपकार करने वाले, मानव जीवन को सही दिशा दिखाने वाले ऋषियों को इस दिन याद किया जाता है। इस व्रत और गोकुलाष्टमी के व्रत से भी स्त्रियों पर मासिक धर्म, अशुद्धता और स्पर्श का प्रभाव कम होता है। क्षौरादि तपस्या से अथवा प्रायश्चित कर्म से पुरुषों पर प्रभाव कम होता है और वास्तु पर का प्रभाव उदकशांती से कम होता है।

व्रत की विधि- इस दिन महिलाओं को प्रातः अघाडा पौधे की लकड़ी के दातुन से दांतों की सफाई करनी चाहिए। स्नान करने के बाद पूजा के पूर्व मासिक धर्म के समय अनजाने में स्पर्श के कारण जो दोष लगते हैं उसके निराकरण हेतु अरुंधति सहित सप्तऋषियों को प्रसन्न करने के लिए मैं यह व्रत कर रही हूँ, ऐसा संकल्प करें।

लकड़ी के पाट पर चावल के छोटे छोटे आठ भाग बनाकर रखें और उसपर आठ सुपारी रखें, कश्यपादि सात ऋषि व अरुंधति इनका आव्‍हान करके षोडशोपचार पूजन करें।

इस दिन कंदमूल का ही आहार लें और बैल के द्वारा किए गए श्रम का कुछ भी न खाएं। ऐसे बताया गया है। दूसरे दिन चावल के आठ भाग के रूप में कश्यपादि सात ऋषि और अरुंधति का विसर्जन करना चाहिए। बारह वर्ष के बाद या पचास वर्ष की आयु के बाद इस व्रत का उद्यापन कर सकते हैं। इस व्रत को उद्यापन के बाद भी शुरू रखा जा सकता है।

महत्व: ऋषि पंचमी का दिन ‘वेददिन’ माना जाता है। इस दिन का महत्व यह है कि जिन प्राचीन ऋषियों ने समाज का धारण और पोषण सुव्यवस्थित हो, इसलिए अपने संपूर्ण जीवन का त्याग कर वेदों जैसे अमर वाड्मय निर्माण किया, संशोधनात्मक कार्य किया । उनके प्रति ऋणी रहकर कृतज्ञता के साथ स्मरण करने का यह दिन है ।

ऋषिपंचमी को लेकर अन्य जानकारी

नागों को ऋषि कहा जाता है। एक ओर स्त्री और दूसरी ओर पुरुष द्वारा हल को खींचकर उससे जो अनाज तैयार होता है, वो अनाज ऋषिपंचमी को खाया जाता है। ऋषिपंचमी के दिन जानवरों की मदद से बना अनाज नहीं खाना चाहिए। जब मासिक धर्म बंद हो जाता है तो महिलाएं अपना ऋषि ऋण चुकाने के लिए ऋषि पंचमी का व्रत रखती हैं। व्याह्रुति का अर्थ है जन्म देने की क्षमता। वे 7 व्याह्रतियों को पार करने के लिए 7 वर्ष तक उपवास करते हैं। फिर व्रत का उद्यापन करते हैं।

– कु. कृतिका खत्री,
सनातन संस्था, दिल्ली