जानिए! आखिर कैसी थी मिट चुके ईरानी शहंशाहों की ज़िंदगी ?

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हाल ही में ईरान जाना हुआ. हालांकि ये सफ़र एक धार्मिक यात्रा थी लेकिन ईरान जाएं और ईरान के शाह के महल की सैर न की जाए तो ऐसा मुमकिन नहीं है.

तेहरान के लिए एक दिन समर्पित कर सादाबाद कॉम्प्लेक्स की सैर की योजना बनाई.

सादाबाद कॉम्प्लेक्स 110 हेक्टेयर में बना हुआ है और तेहरान के सुदूर उत्तर में स्थित है. इस कॉम्प्लेक्स में 18 महल हैं जहां काचार और पहलवी शाही ख़ानदान रहते थे.

ये कॉम्प्लेक्स शाही ख़ानदान ने 19वीं सदी में बनवाया था. बाद में इसमें विस्तार किया गया और पहलवी शाही ख़ानदान के रज़ा शाह पहलवी इसमें 1920 के दशक तक रहे जबकि 1970 के दशक में उनके बेटे मोहम्मद रज़ा पहलवी इसमें रहे.

ईरानी क्रांति के बाद इस कॉम्प्लेक्स को संग्रहालय बना दिया गया.

महलों के इस कॉम्प्लेक्स में दाख़िल होने के आठ दरवाज़े हैं लेकिन सिर्फ़ दो दरवाज़े जनता के लिए खुले हैं, जिनके नाम दारबंद स्क्वॉयर और ज़फ़्रीना दरवाज़े हैं.

हर पैलेस के लिए अलग टिकट

महलों के इस कॉम्प्लेक्स के अंदर दाख़िल होने से पहले आपको टिकट लेना होता है और महल का अलग टिकट है इसलिए आपको पहले ही से ये फ़ैसला करना होता है कि आप कहां जाना चाहते हैं.

सबसे महंगे टिकट गार्डन म्यूज़ियम, मिल्लत महल म्यूज़ियम जिसका व्हाइट पैलेस भी कहा जाता है और ग्रीन पैलेस म्यूज़ियम के हैं.

लेकिन एक महल के अंदर भी कई अलग-अलग सेक्शन बनाए गए हैं और हर सेक्शन का अलग टिकट है.

मैंने फ़ैसला किया कि व्हाइट पैलेस यानी मिल्लत ही जाया जाए. सादाबाद कॉम्प्लेक्स में मैं दरबंद स्क्वॉयर के दरवाज़े से दाख़िल हुआ. यहां विशाल सड़कों और बाग़ों ने हमारा स्वागत किया.

व्हाइट पैलेस सादाबाद कॉम्प्लेक्स में सबसे बड़ी इमारत है. इस इमारत का इस्तेमाल रस्मों-रिवाज और सरकारी कामों के अलावा पहलवी ख़ानदान के दूसरे बादशाह मोहम्मद रज़ा शाह पहलवी और देश की रानी फ़राह दीबा गर्मियों का वक़्त बिताने के लिए करते थे.

पहलवी ख़ानदान के पहले बादशाह रज़ा शाह ने 1932 में इस महल को बनवाने का आदेश दिया था जो 1937 में पूरा हुआ लेकिन इसको 1940 से इस्तेमाल किया गया.

इस महल को डिज़ाइन खुरसंदी ने किया. इस महल का रक़बा पांच हज़ार प्रति स्क्वॉयर मीटर और तहख़ाने के अलावा दो मंज़िलें हैं. इस इमारत में 54 कमरे हैं जिनमें किसी ख़ास उत्सव के लिए 10 अलग कमरे हैं और इसमें सबसे बड़ा ड्राइंग रूम है जो 220 वर्ग मीटर है.
व्हाइट पैलेस के सामने आरश कमानगीर की मूर्ति है जो ईरानी कहानियों का बहादुर चरित्र है.

महल में बिलियर्ड्स रूम देखने को मिलता है. इसकी दीवारें लकड़ी की हैं जबकि इस कमरे की लाइटें 19वीं सदी के आख़िर में इंग्लैंड से मंगवाई गई थीं. इस कमरे में दुनिया के नक्शे का ग्लोब भी है. 19वीं सदी की ताश खेलने की मेज़ के साथ-साथ चेकोस्लोवाकिया के बने हुए वाइन ग्लास भी मौजूद हैं.

दूसरी मंज़िल पर रानी का बेडरूम

इसमें एक शाही बैठक का हॉल है जिसकी दीवारों पर कपड़ा चढ़ा हुआ है, क्रिस्टल का फ़ानूस है, 20वीं सदी में तैयार कालीन और जर्मनी का रंगीन टीवी है. हालांकि, व्हाइट पैलेस को बाहर से देखने में यह महल नहीं लगता लेकिन इसके अंदर क़ीमती चीज़ें इसे शाही महल का भाव देती हैं.

सभी कमरे बंद हैं और शीशों के दरवाज़ों से आप शाही ठाठबाट का नज़ारा कर सकते हैं.

महल की दूसरी मंज़िल पर रानी का बेडरूम, ग्रैंड डाइनिंग हॉल, म्यूज़िक हॉल, बैठक का हॉल और बादशाह का कमरा है.

दूसरी मंज़िल में दाख़िल होते ही मेहमनों के बैठने की जगह है जिसमें बिछा कालीन काशान में तैयार किया गया था. चारों तरफ़ बड़ी-बड़ी ऑयल पेंटिंग हैं जो हुसैन ताहिर ज़ादी बहज़ाद की हैं जो शाहनामा फ़िरदौसी की कहानी बयान करती है.

शाहनामा एक बड़ी नज़्म है जो इस्लाम के आने से पहले ईरान के बारे में है. यह 62 कहानियां 990 अध्याय में बयान की गई हैं.

एक ख़ास मौक़ों के लिए हॉल हैं जहां पर सरकारी मीटिंग्स होती थीं और राजदूत अपने दस्तावेज़ बादशाह मोहम्मद रज़ा शाह पहलवी को पेश करते थे.

छत पर प्लास्टर के ऊपर पतली सी सोने की परत है.
शाही डाइनिंग हॉल में हर वक़्त के खाने की मेज़ें अलग-अलग हैं. हर मेज़ पर लिखा हुआ है कि शाही ख़ानदान नाश्ता एक मेज़ पर करता था और दोपहर का खाना दूसरी और शाम की चाय तीसरी तो रात का खाना किसी और मेज़ पर खाता था.

रानी फ़राह दीबा के बेडरूम में बिस्तर के कवर और पर्दे क्रिस्चन ड्योर के हैं जो हाथ से बने हुए हैं. कमरे में फ़्रांस की बनी हुई बिजली से चलने वाली मसाज मशीन भी है और कमोबेश तमाम सामान फ़्रांस या इंग्लैंड का है.

बादशाह के दफ़्तर की तमाम खिड़कियों के शीशे बुलेटप्रूफ़ थे और उत्सवों के लिए बने ख़ास हॉल की तरह इस कमरे की छत पर सोने की बारीक परत लगी हुई है.

मेज़ पर मोहम्मद रज़ा शाह की घोड़े पर सवार एक मूर्ति रखी है जिसको डेनो एडेटरी ने बनाया था. इस मूर्ति पर लिखा है ‘शाह और लोगों के इंक़लाब कोई समुद्र, पहाड़ या नदी का किनारा नहीं हैं.’

व्हाइट पैलेस के ग्रैंड डाइनिंग हॉल में आख़िरी डिनर अमरीका के 39वें राष्ट्रपति जिमी कार्टन और जॉर्डन के बादशाह हुसैन के सम्मान में दिया गया था.

इस हॉल के दाईं ओर एक शीशे का दरवाज़ा है जहां से शाह-ए-ईरान और रानी दीबा हॉल में दाख़िल होते थे. हॉल में चीनी मिट्टी से बने दो गुलदान भी हैं जिन पर सोने का पानी चढ़ा हुआ है.

ग्रैंड वेटिंग हॉल के शीशे भी बुलेट प्रूफ़ हैं और दीवारों पर कपड़ा चढ़ा हुआ है. इस हॉल में मोहम्मद रज़ा शाह, फ़राह दीबा और उत्तराधिकारी की कांसे की मूर्ति है जिस पर लिखा है, ‘शाहरुख़ शाह बाज़ी ने स्कल्पचर में ग्रेजुएट किया.’

इसके अलावा कांसे की दो और मूर्तियां भी हैं जो 1976 में बनाई गईं. एक मोहम्मद रज़ा शाह की है और एक रानी फ़राह दीबा की.

बादशाह के कमरे की ख़ास बात ये है कि इनका बिस्तर जोज़फ़ीन के बिस्तर के स्टाइल का है. जोज़फ़ीन नेपोलियन की पत्नी थीं.

रज़ा हमदानी -बीबीसी