एल हेलिकॉएड नामक इमारत कभी वेनेज़ुएला की आर्थिक समृद्धि और विकास का प्रतीक हुआ करती थी. आज इस इमारत में देश की सबसे भयावह जेल है जो अब लातिन अमरीकी शक्ति के केंद्र रहे इस देश के मौजूदा संकट की मूक गवाह भी है.
वेनेज़ुएला की राजधानी कराकस के केंद्र में आधुनिकता का प्रतीक मानी जाने वाली यह इमारत आसपास की झुग्गी-झोपड़ियों के बीच सिर उठाए खड़ी है.
इस इमारत को 1950 के दशक में बनाया गया था जब देश के पास तेल से आने वाली अथाह संपत्ति थी.
द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद देश की अर्थव्यवस्था उछाल पर थी और तानाशाह मार्कोस पेरेज़ जिमेनेज़ वेनेज़ुएला को आधुनिकता की मिसाल बनाना चाहते थे.
“डाउनवार्ड स्पाइरल: एल हेलिकॉएड्स डिसेन्ट फ्रॉम मॉल टू प्रिज़न” की सह-लेखिका और यूके के एसैक्स विश्वविद्यालय में लैटिन अमरीकन स्टडीज़ की निदेशक डॉ. लीज़ा ब्लैकमोर कहती हैं, “आधुनिकता के इस सपने में वाकई में काफ़ी पैसा लगाया गया था.”
1948 में इस देश में सैन्य शासन लग गया था और इस तरह की धारणा बन गई कि “निर्माण के साथ ही हम विकास की राह में आगे बढ़ सकते हैं.”
इस इमारत को देश के सबसे बड़े व्यवसायिक केंद्र के रूप में बनाया जा रहा था, जहां इस इमारत में 300 से अधिक दुकानों की जगह थी और 04 किलोमीटर का रैंप मौजूद था ताकि लोग अपनी कार से ऊपर तक जा सकें.
ये इमारत इतनी बड़ी थी कि कराकस शहर के किसी भी कोने से इसे देखा जा सकता था.
डॉ. ब्लैकमोर कहती हैं, “ये अपने आप में वास्तुकला का शानदार नमूना था. पूरे लातिन अमरीका में इस तरह की कोई दूसरी इमारत नहीं थी.”
इमारत को गुंबद का आकार दिया गया था और इसमें अत्याधुनिक तकनीक से सुसज्जित होटल, थिएटर और दफ्तरों की कल्पना की गई थी. साथ ही हेलिकॉपटर उतारने के लिए हैलिपैड और विएना में बने ख़ास लिफ्ट लगाए जाने थे.
लेकिन 1958 में पेरेज़ जिमेनेज़ की सत्ता पलट गई और उनका ये सपना अधूरा ही रह गया.
यहां बसाया गया डर का साम्राज्य
सालों तक ये इमारत सूनी पड़ी रही. इसमें जान फूंकने के लिए कई छोटी-बड़ी योजनाएं भी लाई गईं लेकिन अपने उद्देश्य में वो नाकाम रहीं.
1980 के दशक में सरकार ने फ़ैसला किया कि वो ख़ाली पड़े इस एल हेलिकॉएड में कुछ सरकारी दफ्तर खोलेगी. इन दफ्तरों में एक बोलिवारियन इंटेलिजेंस सर्विस भी थी, जिसे सेबिन के नाम से जाना जाता है.
इसके बाद से इस जगह को यातना और डर के प्रतीक के रुप में देखा जाता है. इस जगह में साधारण क़ैदियों के साथ-साथ राजनीतिक क़ैदियों को भी रखा जाता है.
एल हेलिकॉएड में जीवन कैसा था इसकी तस्वीर जानने के लिए बीबीसी ने यहां वक़्त बिता चुके पूर्व क़ैदियों, उनके परिवारों, उनके क़ानूनी सलाहकारों और ग़ैर-सरकारी संगठनों से बात की. बीबीसी ने दो ऐसे लोगों से भी बात की जो पहले जेल के पहरेदार के रूप में काम कर चुके थे.
अपने और अपने परिवारों के ख़िलाफ़ सरकारी कार्रवाई के डर के कारण उन्होंने बीबीसी से अपनी पहचान ना उजागर करने की गुज़ारिश की.
मई 2014 में रोस्मित मन्टिला एल हेलिकॉएड में लाए गए थे. देश में हुए सरकार विरोधी प्रदर्शनों में जिन 3000 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया गया था उनमें से एक मन्टिला भी थे.
32 साल के मन्टिला राजनीतिक कार्यकर्ता तो थे ही साथ में एलजीबीटी अधिकारों के बारे में भी मुखर थे.
उनकी क़ैद के दौरान उन्हें वेनेज़ुएला की राष्ट्रीय असेंबली के लिए चुना गया था और इसके लिए चुने जाने वाले देश के पहले समलैंगिक नेता थे.
आर्थिक और राजनीतिक संकट
वेनेज़ुएला में धीरे-धीरे महंगाई बढ़ने लगी और इसके साथ ही खाने के सामान और दवाई जैसी मूलभूत सुविधाओं का भी अभाव होने लगा. देश की सार्वजनिक सेवाएं भी चरमराने लगीं, जिस कारण आम लोगों के लिए यहां बसर करना मुश्किल होता गया.
एल हेलिकॉएड के लिए ये दौर अव्यवस्था का दौर था. बसों में भर भर कर रोज़ाना सैंकड़ों क़ैदी यहां लाए जाते थे.
इन क़ैदियों में छात्र, राजनीतिक कार्यकर्ता और आम लोग भी शामिल थे, जो सिर्फ़ इसलिए गिरफ़्तार कर लिए गए क्योंकि वो ग़लत समय पर ग़लत जगह पर मौजूद थे.
मन्टिला पर आरोप है कि वो सरकार विरोधी प्रदर्शनों के लिए धन जुटाते थे. वो इन आरोपों से इनकार करते रहे हैं.
जेल के पूर्व पहरेदार मैनुएल को अब भी मन्टिला अच्छी तरह से याद हैं.
मैनुएल कहते हैं, “वो उन क़ैदियों में से एक थे जिन्हें वहां होने की कोई ज़रूरत ही नहीं थी.”
‘लोगों के दिलों में डर बैठाना’
जेल के पूर्व पहरेदार मैनुएल ने बीबीसी को बताया, “अधिक लोगों को पकड़ कर वो लोगों के दिलों में डर बैठाना चाहते है.”
“और मुझे लगता है कि वो ऐसा करने में कुछ हद तक सफल भी हुए. क्याोंकि आजकल जब कोई सरकार विरोधी प्रदर्शन होता है तो वेनेज़ुएला के कई लोग गिरफ्तारी के डर से इसमें हिस्सा नहीं लेना चाहते.”
एल हेलिकॉएड में आने वाले क़ैदियों को सुनवाई के लिए हफ्तों, महीनों इंतज़ार करना पड़ता था.
मैनुएल बताते हैं, “सेबिन एक ऐसी एजेंसी है जिसका मिशन ख़ुफ़िया जानकारी इकट्ठा करनी है. लेकिन कुछ वक़्त वो अपनी इस भूमिका में थी ही नहीं. उसकी भूमिका सत्ता को बचाना या आप कहें तानाशाही को बचाना बन गया था.”
ढाई साल जेल में बिता चुके मन्टिला कहते हैं कि इस दौरान वो हमेशा डर के साये में रहते थे.
हालांकि वो कहते हैं कि उनकी इच्छा थी कि वो एल हेलिकॉएड में लाए जाने वाले क़ैदियों को रोज़ाना दी जाने वाली यातना के बारे में लिखें.
‘ग्वांतानामो’
मन्टिला याद करते हैं कि साल 2014 में जब वो एल हेलिकॉएड पहुंचे थे तो यहां केवल 50 क़ैदी ही थे. लेकिन दो साल में इसकी संख्या बढ़ कर 300 हो गई.
जैसे-जैसे क़ैदियों की संख्या बढ़ी जेल के पहरेदारों को उन्हें रखने की उचित व्यवस्था करनी पड़ी.
इमारत में मौजूद दफ्तर, सीढ़ियां, टॉयलेट और खाली पड़ी जगह की घेराबंदी की गई ताकि जेल के सेल के रूप में इनका इस्तेमाल किया जा सके.
जेल के क़ैदियों ने इन कमरों के नाम भी दिए थे, जैसे- फिश टैंक, लिटिल टाइगर और लिटिल हॉल. लेकिन इनमें सबसे बुरा कमरा था ग्वांतानामो.
एल हेलिकॉएड में जेल के पहरेदार के रूप में काम कर चुके विक्टर कहते हैं, “पहले ये कमरा सबूतों को रखने के काम में लाया जाता था. ये 12 मीटर बाई 12 मीटर का कमरा था, जिसमें 50 क़ैदियों को रखा जाता था.”
ये गर्म कमरा था जहां हवा भी मुश्किल आती थी.
मन्टिला कहते हैं, “ना यहां रोशनी थी, ना टॉयलेट, ना सफाई और ना ही सोने का इंतज़ाम. कमरे की दीवारें ख़ून और इंसान के मल से सनी हुई थीं.”
उन्होंने बीबीसी को बताया कि यहां लाए जाने वाले क़ैदियों को हफ्तों बिना नहाए रहना पड़ता था. उन्हें प्लास्टिक की बोतलों में पेशाब करना होता था और प्लास्टिक के छोटे बैग में मल त्याग करना पड़ता था. इस छोटे बैग को वो ‘लिटिल शिप’ कहते थे.
यातना का सिलसिला
लेकिन एल हेलिकॉएड के साथ सिर्फ़ क़ैद में जाने का डर नहीं जुड़ा था.
जेल में कुछ वक़्त बिता चुके कार्लोस कहते हैं, “उन्होंने मेरे मुंह को एक बैग से ढक दिया था. मुझे बहुत मारा गया और मुझे सिर के हिस्से में, गुप्तांगों और पेट में बिजली के झटके दिए गए.”
“मैंने शर्म, अपमान और आक्रोष का अनुभव किया और मुझे लगा मैं नपुंसक हो जाऊंगा.”
जेल में क़ैदी के तौर पर रहे लुई ने बताया, “मेरे सिर को भी उन्होंने ढका था लेकिन मैंने सेबिन के एक अधिकरी को ये कहते हुए सुना था कि चलो बंदूक़ ले कर आते हैं. हम तुम्हें मारने वाले हैं.”
“वो लोग हंस रहे थे. कह रहे थे कि एक ही गोली है, देखते हैं भाग्य है तुम्हारा कितन साथ देता है. मैं महसूस कर सकता था कि मेरे सिर पर बंदूक़ रखी हुई थी और फिर मुझे ट्रिग्गर खींचने की आवाज़ सुनाई दी. ऐसा मेरे साथ कई बार हुआ.”
मन्टिला कहते हैं कि उन्होंने क़ैदियों से बात कर उनके अनुभवों के बारे में जानकारी इकट्ठा करनी शुरू की तो उन्हें पता चला कि क़ैदियों को यातना देने के लिए एक ही तरह के तरीक़ों का बार-बार इस्तेमाल कया जाता था.
वो कहते हैं, “युनिवर्सिटी का एक छात्र का मुंह उन्होंने के बैग से ढक दिया, बैग में इंसान का मल भरा हुआ था. वो छात्र सांस नहीं ले पा रहा था.”
“मैंने ये भी सुना है कि खुरदरी चीज़ों को गुप्तांग में डाल कर कई लोगों के साथ यौन हिंसा की गई है, कईयों को बिजली के झटके दिए गए हैं और कईयों के आंखों पर तब तक पट्टी बांध कर रखा गया जब तक वो बेहोश नहीं हो गए.”
मानवाधिकारों का उल्लंघन
जेल के दोनों पूर्व पहरेदारों ने किसी क़ैदी को यातना देनी की प्रक्रिया में ख़ुद शामिल होने से इनकार किया, लेकिन बताया कि उन्होंने अपनी आंखों से ये सब होते देखा है.
विक्टर कहते हैं, “मैंने देखा है कि लोगों को पीटा गया है, उन्हें उनके हाथ बांध कर छत से लटकाया गया है.”
मैनुएल कहते हैं, “वो एक बैटरी चार्जर का इस्तेमाल करते थे जिससे दो तार जुड़े होते थे. इसे वो क़ैदियों के शरीर पर बंध देते थे और उन्हें बिजली के झटके दते थे. ”
वो कहते हैं, “यातना देना यहां रोज़ाना का हिसाब था, ये साधारण बात थी.”
इनमें से कई मामलों का दस्तावेज़ीकरण अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों ने किया है. फ़रवरी 2018 में इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट ने इस मामले में मानवाधिकारों के उल्लंघन और अपराध की प्रारंभिक जांच शुरू की.
वेनेज़ुएला ने उस वक़्त कहा था कि वो इस जांच में पूरा सहयोग करेगा.
मन्टिला की रिहाई की मांग
एल हेलिकॉएड जेल में ढाई साल बिताने के बाद अक्तूबर 2016 में मन्टिला गंभीर रूप से बीमार हो गए. जेल अधिकारियों ने सर्जरी के लिए उनका दूसरी जेल में स्थानांतरण कर दिया.
इस प्रक्रिया को एक जज की सहमति भी मिल गई थी लेकिन आख़िरी घड़ी पर सेबिन के अधिकारियों ने इस मामले में दख़ल दिया. मन्टिला को अस्पताल से जबरन घसीट कर ले जाया गया और एल हेलिकॉएड में एक अलग कमरे में फेंक दिया गया.
“मेरी हालत कुछ ऐसी थी कि शायद मैं ज़्यादा वक़्त तक ज़िंदा ना रहूं. मुझे एक कमरे में अकेले बंद कर दिया गया था. मुझे बता दिया गया था कि मुझे कभी रिहा नहीं किया जाएगा. ये कुछ ऐसा था जैसे मुझे मौत की सज़ा सुना दी गई हो.”
मन्टिला को जबरन सेबिन की गाड़ी में बिठाने की कोशिश और इस दौरान मान्टिला के चीख़ने-चिल्लाने का वीडियो इंटरनेट पर वायरल हो गया. इसके बाद कई अंतरराषट्रीय मानवाधिकार संगठनों ने उनकी रिहाई की मांग की.
दस दिन के बाद अधिकारियों पर दबाव का असर दिखा और मन्टिला को पहले एक सैन्य अस्पताल में भर्ती कराया गया और फिर एक दूसरे अस्पताल ले जाया गया जहां उनका ऑपरेशन किया गया.
आधिकारिक तौर पर मन्टिला को नवंबर 2016 में रिहा कर दिया गया और कुछ दिनों के भीतर ही कांग्रेसमैन के रूप में उन्होंने शपथ ली. इसके बाद से उन्होंने एल हेलिकॉएड में जो देखा और अनुभव किया उसके बारे में गवाह के रूप में पेश होना शुरू कर दिया.
वो कहते हैं, “मानवता के ख़िलाफ़ किए गए अपराध की कोई एक्सपायरी डेट (क़ानूनी सीमा) नहीं होती.”
लेकिन मन्टिला कहते हैं कि रिहाई के बाद से कभी उन्होंने ख़ुद को सुरक्षित महसूस नहीं किया. जुलाई 2017 में आख़िरकार उन्होंने वेनेज़ुएला छोड़ कर फ्रांस जा कर बसने का फ़ैसला किया. उन्हें मई 2018 में शरणार्थी का दर्जा मिल गया.
अपने नए घर से वो अब भी वेनेज़ुएला में हो रही गतिविधियों पर बारीक नज़र रखते हैं और उम्मीद करते हैं कि एक दिन वो अपनी सरज़मीन पर फिर पैर रख सकेंगे. लेकिन उनके जीवन पर पड़ी एल हेलिकॉएड की परछाईं अब भी उनके जीवन का हिस्सा है.
वो कहते हैं, “मैं अब कभी भी पहले जैसा नहीं बन सकता. यह जटिल है क्योंकि एल हेलिकोइड ढाई साल के लिए मेरा घर बन गया था. मैं लाख बार इसे नकारने की कोशिश करुं, लेकिन ये मेर सच्चाई से जुड़ा है.”
मैनुएल और विक्टर दोनों भी अब वेनेज़ुएला छोड़ चुके हैं और विदेश में अपनी ज़िंदगी गुज़ार रह रहे हैं.
मई 2018 में एल हेलिकॉएड में बंद क़ैदियों ने वहां के हालातों को मुद्दा बना कर विरोध शुरु किया. इसके बाद यहां से कई क़ैदियों को रिहा कर दिया गया और स्थिति में सुधार करने के कई वायदे भी किए गए.
लेकिन जेल के भीतर गए कई लोगों के अनुसार एल हेलिकॉएड में कैदियों की स्थिति सुधारने के लिए कुछ अधिक नहीं किया गया है.
बीबीसी ने कई बार वेनेज़ुएला के अधिकारियों से इस मामले में संपर्क किया और एल हेलिकॉएड के बारे में उन पर लगे आरोपों के बारे में जानने की कोशिश की.
बीबीसे ने कराकस में मौजूद संचार मंत्रालय और ब्रिटेन में मौजूद वेनेज़ुएला सरकार के प्रतिनिधियों से संपर्क किया लेकिन अब तक इस संबंध में उनसे कोई उत्तर नहीं मिला है.
-BBC
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