नवीन कुमार को मीडिया जगत में तीन दशक से भी अधिक का अनुभव है। वर्तमान में वह दिल्ली बीजेपी के मीडिया प्रमुख पद की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं।
आपने तीन दशक से अधिक मीडिया में काम किया और अब आप राजनीति में हैं। अपने प्रारंभिक जीवन के बारे में कुछ बताइए।
मेरा जन्म मेरठ में हुआ है और शिक्षा दिल्ली में हुई। मेरे पिताजी फार्मासिस्ट थे और परिवार के बाकी लोग भी यही चाहते थे कि मैं सरकारी अधिकारी बनकर देश की सेवा करूं। मीडिया में आने का मेरा भी कोई प्लान नहीं था।
पढ़ाई के दिनों के दौरान ही मैं ‘अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद’ से जुड़ गया था और डिबेट में भाग लेने के कारण मेरी सामाजिक समझ विकसित हो रही थी। उस दौरान कई बड़े पत्रकारों से मिलना होता था और मुझे धीरे-धीरे समझ आया कि मेरी समझ के हिसाब से मुझे पत्रकारिता में जाना चाहिए और मैं पत्रकार बन गया।
शुरू के कुछ वर्ष बेहद कष्टदायक थे, लेकिन धीरे-धीरे मैं काम सीखता गया और आगे बढ़ता गया। साल 1990 में जब ‘दैनिक जागरण‘ दिल्ली से शुरू हुआ तो मुझे जुड़ने का मौका मिला और मैंने काफी कुछ उस संस्थान से सीखा। इसके बाद मुझे ‘राष्ट्रीय सहारा‘ में काम करने का मौका मिला लेकिन मेरे साथ वहां एक समस्या खड़ी हो गई।
दरअसल मैंने राजनीतिक रिपोर्टिंग की और वहां मुझे अपराध की खबरें कवर करने के लिए कहा गया। इसके अलावा मुझे यह भी कह दिया गया कि या तो आप चार महीने के अंदर क्राइम रिपोर्टर बन जाइए या फिर आप इस्तीफा सौंप दें, वरना आपको निकाल दिया जाएगा। मेरे पास कुछ महीनों का समय था और धीरे-धीरे मैंने काम करना और समझना शुरू किया।
एक दिन मैंने दिल्ली पुलिस कमिश्नर का इंटरव्यू फिक्स किया और दोपहर के तय समय से पहले ही मैं पहुंच गया और अपनी बारी का इंतजार करने लगा। तय समय से ढाई घंटा अधिक हो चुका था, लेकिन मुझे समय नहीं मिला था लेकिन उसी दौरान वहां एक बड़े अखबार के संपादक आए और उन्हें तुरंत समय मिल गया।
उस दिन मुझे अहसास हुआ कि बड़े पत्रकार का क्या रौब होता है और उस घटना ने मेरे जीवन को बदल दिया। इसके बाद मैं जी-जान से अपने काम में लग गया और उस घटना के एक महीने के अंदर मैं हमारे मुख्य क्राइम रिपोर्टर का भी बॉस बन गया। इसके अलावा मैं क्राइम चीफ रिपोर्टर भी बन गया।
उसके बाद मैंने पब्लिसिटी वाले इंटरव्यू करने बंद कर दिए और वास्तविक मुद्दों पर फोकस शुरू किया। ऐसे कई मामले थे जो आत्महत्या में दर्ज हुए, लेकिन मेरी तहकीकात के कारण उन्हें हत्या मानकर जांच की गई।
आपने प्रिंट में काफी अच्छा काम किया और उसके बाद आप टीवी से जुड़ गए। उस यात्रा के बारे में कुछ बताइए।
वर्ष 1997 में मुझे ‘जी‘ में काम करने का मौका मिला। उस समय वह ‘जी न्यूज‘ नहीं हुआ करता था और सिर्फ एक बुलेटिन आया करता था। अब टीवी से हम परिचित नहीं थे और न ही कुछ समझ में आ रहा था।
दरअसल, उत्साह में मैंने ‘सहारा‘ छोड़ दिया और कुछ लोगों की बातों में आकर गलत निर्णय ले डाले। जब मैं कुछ समय के लिए रोजगार विहीन हुआ तब मुझे समझ आ गया कि लोग आपको नहीं, आपकी कुर्सी को सलाम करते हैं।
मीडिया की दुनिया भी ऐसी ही दुनिया है। जब तक आपके संबंध हैं, तब तक आपको लोग प्रेम करते हैं, वरना बाकी रिश्ते तो ऑफिस तक ही खत्म हो जाते हैं। ‘सहारा‘ में मुझे तमाम सुविधाएं मिलीं, उस समय सिर्फ मैं अकेला क्राइम रिपोर्टर था, जिसके पास जिप्सी होती थी लेकिन एक गलत निर्णय से मुझे जीवन की सच्चाई समझ आई।
अब मेरा ‘जी‘ में सलेक्शन हो तो गया थे, लेकिन मन मेरा प्रिंट में ही था तो मैंने ‘जी‘ में काम करते हुए भी नौकरी खोजनी शुरू कर दी थी। जब मैं टीवी में काम कर रहा था तो दिन भर राजनीतिक खबरें करते थे और सोचते थे कि रात को न्यूज चलेगी, लेकिन जब रात को बुलेटिन आता था तो हमारी न्यूज कुछ सेकंड भर तक सिमट कर रह जाती थी।
उसके बाद आखिर मुझे ‘दैनिक हिंदुस्तान‘ में काम मिल गया। उसके बाद मैंने अपने बॉस को कहा कि ये टीवी अपने बस का तो है नहीं, हम प्रिंट में ही सही हैं, लेकिन उन्होंने मेरे इस निर्णय पर ऐसा कटाक्ष किया कि मैं अंदर तक हिल गया। इसके बाद मैंने ये निर्णय ले लिया कि अब टीवी में ही काम करना है और शानदार काम करना है।
उसी समय ‘जी‘ का ही एक एंटरटेनमेंट लिमिटेड नाम से चैनल आता था और सूर्यकान्त बाली जी वहां के संपादक थे और वो भी प्रिंट से ही आए थे तो मैंने उनसे कहा कि एक करंट अफेयर्स पर और एक विश्लेषण को लेकर कार्यक्रम किया जाए और हमने वो कार्यक्रम बनाना शुरू कर दिया।
धीरे-धीरे वो हिट होने लगा और हमने एक से एक अच्छे प्रोजेक्ट किए। उसके बाद हमने सुबह का बुलेटिन भी करना शुरू कर दिया। उसी समय मेरी एक मुलाकात विजय जिंदल जी से हुई, जो कि उस समय ग्रुप सीईओ थे और उनके सहयोग से उस चैनल का नाम ‘जी इंडिया‘ हो गया और उसके बाद वही ‘जी न्यूज‘ हुआ।
उस दौरान टीवी पर क्राइम फिक्शन की शुरुआत करने वाला मैं एकलौता मीडियाकर्मी था। संसद हमले पर जो मैंने डॉक्यूमेंट्री बनाई, उसको तो आडवाणी जी ने सभी सांसदों को न्यौता देकर दिखाई और मुझे कई राज्यों से अवार्ड मिले।
टीवी पर क्राइम शो को शुरू करने वाली मेरी टीम थी। मेरे शो के कुछ महीनों बाद देश के बड़े न्यूज चैनल्स ने फिर अपने शो लांच किए।
आपने पंजाब, कश्मीर और पूर्वोत्तर के आतंक को भी कवर किया है। कई आतंकियों के इंटरव्यू लिए हैं। उन अनुभवों के बारे में बताएं।
जी, मैंने पंजाब के आतंक को काफी नजदीक से कवर किया है। एक बार मैं एक आतंकी से मिलकर आया और ‘सहारा‘ में जब खबर छपी तो बाद में मुझे पता चला कि केपीएस गिल साहब की टीम ने सात आतंकी मारे हैं और उनमें एक आतंकी वो भी था।
मुझ पर आतंकी हमला तक हुआ। गनीमत रही कि मेरी जान बच गई, लेकिन मैंने अपना काम नहीं छोड़ा। मैंने कश्मीर में भी बहुत काम किया है। माजिद डार जो हिजबुल का कमांडर हुआ करता था, उसका इंटरव्यू मैंने किया। बाद में उसका भी एनकाउंटर हो गया।
इसके अलावा गाजीबाबा, डॉक्टर नईम जैसे कई आतंकी हैं, जिनको मेरे इंटरव्यू करने के बाद मार दिया गया था। अफजल गुरु का भी मैंने इंटरव्यू किया था। पूर्वोत्तर की बात करें तो कई आतंकियों के मैंने स्टिंग किए और सेना ने मेरी सराहना भी की।
बाहुबली अमरमणि त्रिपाठी का भी मैंने जेल में स्टिंग किया था और उसे अपनी ही सुपारी दे दी थी। बबलू श्रीवास्तव नाम का दाऊद का आदमी नेपाल में वहीं के एक अधिकारी के साथ रहता था और उसका खुलासा मैंने ही किया था। मैंने जर्मनी जाकर बब्बर खालसा के लोगों का स्टिंग किया था।
आप जब मीडिया में इतना अच्छा काम कर रहे थे तो राजनीति में कैसे आ गए? बीजेपी से जुड़ाव कैसे हुआ?
दरअसल, मीडिया में रहते हुए ही मुझ पर आतंकी हमला हुआ था और उसके बाद काफी लंबे समय तक मुझे जेड सुरक्षा दी गई थी। उस सुरक्षा घेरे के कारण मैं कई जगह नहीं जा पाता था।
जब मैं ‘जी‘ में था तब साल 2003 में मैंने बीजेपी से दिल्ली विधानसभा का चुनाव लड़ा था। उसके बाद भी मैंने मीडिया में काम किया, लेकिन मेरी छवि बीजेपी नेता की हो गई थी और साल 2013 के बाद मैं पूर्णकालिक रूप से बीजेपी में ही शामिल हो गया।
पहले मुझे पार्टी ने प्रवक्ता की जिम्मेदारी थी और अब मुझे मीडिया प्रमुख की जिम्मेदारी दी गई है। मैं दिल्ली के सीएम अरविन्द केजरीवाल को एक्सपोज करने में लगा हुआ हूं और मुझे इस कार्य में लोगों का सहयोग भी मिल रहा है। दिल्ली के जल बोर्ड में 57 हजार करोड़ का घोटाला हुआ है, कहीं अस्पताल नहीं बने और कोई बाइक एम्बुलेंस नहीं है।
आपको सोशल मीडिया पर लोगों का अच्छा समर्थन मिल रहा है। क्या भविष्य में केजरीवाल के सामने खड़ा होने की या पार्टी का चेहरा बनने की योजना है?
देखिए, चेहरा तो कमल का फूल है। हम सब उसके तने और शाखाएं हैं, लेकिन जड़ वही है। चेहरा कोई भी हो, मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है। मैंने तो हमेशा कहा है कि मेरी चुनाव लड़ने की कोई इच्छा नहीं है।
मैं तो बस हमेशा पार्टी के संगठन में काम करना चाहता हूं और पार्टी को मजबूत करने की इच्छा है। हर कार्यकर्ता की तरह मेरी भी यही कामना है कि दिल्ली में बीजेपी की सरकार बने और दिल्ली का विकास हो
साभार: samachar4media.com
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