सूर्य सिद्धान्त भारतीय खगोलशास्त्र का प्रसिद्ध ग्रन्थ है। कई सिद्धान्त-ग्रन्थों के समूह का नाम है। वर्तमान समय में उपलब्ध ग्रन्थ मध्ययुग में रचित ग्रन्थ लगता है किन्तु अवश्य ही यह ग्रन्थ पुराने संस्क्रणों पर आधारित है जो ६ठीं शताब्दी के आरम्भिक चरण में रचित हुए माने जाते हैं।
भारतीय गणितज्ञों और खगोलशास्त्रियों ने इसका सन्दर्भ भी लिया है, जैसे आर्यभट्ट और वाराहमिहिर आदि। वाराहमिहिर ने अपने पंचसिद्धांतिका में चार अन्य टीकाओं सहित इसका उल्लेख किया है
यह पुस्तक आज से हजारों वर्ष पहले लिखी गयी थी। इस पुस्तक को सूर्य देव के आदेश पर लिखा गया था जिसमें ज्योतिष शास्त्र, गणित, परग्रही, ब्रह्मांड जैसे विषयों के बारे में विस्तारपूर्वक बताया गया है किंतु समय के साथ-साथ इसके कुछ अंश विलुप्त हो गए व कुछ ही बचे।
इसके बाद छठीं शताब्दी में वराहमिहिर जी ने इस पुस्तक को फिर से पूर्ण रूप दिया तथा ब्रह्मांड से जुड़े कई अनसुलझे प्रश्नों का विस्तार से उत्तर दिया। वर्तमान में जो वैज्ञानिक खोजे हुई हैं उसके बारे में हिंदू धर्म में आज से सदियों पहले ही सटीक आंकलन कर लिपिबद्ध कर दिया गया था। आप इसी से हमारे पूर्वजों की महानता का आंकलन कर सकते हैं। आज हम आपको सूर्य सिद्धांत पुस्तक का संबंध, लेखक, अध्याय इत्यादि के बारे में विस्तार से जानकारी देंगे।
सूर्य सिद्धांत का संबंध
सूर्य सिद्धांत के लेखक कौन है
यह प्रश्न लगभग हर किसी के मन में उठता है कि सूर्य सिद्धांत पुस्तक किसकी रचना है। ऐसा कौन था जिसनें आज से हजारों वर्ष पूर्व ही इतनी महान खोज कर दी थी और ग्रहों, सूर्य, चंद्रमा की चाल, व्यास, गति, दूरी इत्यादि का सटीक आंकलन कर दिया था। तो इसे हम तीन भागों में विभाजित करके आपको बताएँगे।
#1. सूर्य सिद्धांत पुस्तक के लेखक स्वयं सूर्य देव
सनातन धर्म के अनुसार पृथ्वी के सबसे बड़े देवता सूर्य देव ही हैं और उन्हीं के कारण पृथ्वी पर जीवन हैं। सूर्य एक तारा है जो मंदाकिनी आकाशगंगा में स्थित है। सर्वप्रथम सूर्य देव के द्वारा ही सूर्य सिद्धांत पुस्तक की रचना की गयी थी लेकिन समय के साथ-साथ इस पुस्तक के कुछ अंश विलुप्त होते चले गए।
#2. वराहमिहिर के द्वारा सूर्य सिद्धांत की रचना
फिर भारतवर्ष के महान राजा विक्रमादित्य द्वितीय के शासनकाल में वराहमिहिर जैसे ज्ञानी पुरुष हुए। उन्हें ज्योतिष व खगोल विद्या में पारंगत माना जाता हैं। वे महाराज विक्रमादित्य के नवरत्नों में भी थे। उन्होंने ब्रह्मांड के रहस्यों के बारे मे गहन अध्ययन किया और उसे सूर्य सिद्धांत नामक पुस्तक के रूप में लिपिबद्ध किया। इसमें उन्होंने बहुत पहले ही मंगल ग्रह पर पानी व लौह तत्व होने के बारे में बता दिया था। इसके साथ ही ब्रह्मांड से जुड़े कई रहस्य भी इस पुस्तक में लिखे गए थे।
#3. वर्तमान में सूर्य सिद्धांत किसने दिया
इसके कई सदियों के बाद भारतवर्ष पर अफगान व मुगल आक्रांताओं के हमले बढ़ते चले गए। भारत के दो सबसे बड़े गुरुकुल तक्षशिला व नालंदा को पूरी तरह से तहस-नहस कर दिया गया व लाखों पंडितों, विद्वानों व ऋषि-मुनियों की निर्मम तरीके से हत्या कर दी गयी। यह भी कहते हैं कि मुगलों की सेना ने नालंदा के पुस्तकालय में आग लगा दी थी जो लगभग छह माह तक जलती रही थी। यह केवल भारत के लिए ही नही अपितु संपूर्ण विश्व के लिए एक अपूर्णीय क्षति थी।
इसी दौरान सूर्य सिद्धांत पुस्तक भी या तो चोरी हो गयी थी या उसे नष्ट कर दिया गया था। फिर बाद के विद्वानों व ऋषि-मुनियों ने सूर्य सिद्धांत पुस्तक की बातों को याद कर, उस पर अध्ययन कर व कई जगह से जानकारी जुटाकर इसे फिर से लिपिबद्ध किया। वर्तमान में सूर्य सिद्धांत नाम से जो पुस्तक उपलब्ध है वह यही है जिसका विश्व की लगभग हर भाषा में अनुवाद हो चुका है। देश-विदेश के सभी वैज्ञानिक अपने-अपने अध्ययन में इस पुस्तक से जानकारी लेना नहीं भूलते।
सूर्य सिद्धांत पुस्तक के अध्याय
सूर्य सिद्धांत किताब में कुल 14 अध्याय हैं जो संस्कृत भाषा में लिखे हुए हैं। हर अध्याय में श्लोक के माध्यम से खगोल विद्या को समझाने का प्रयास किया गया है। इन 14 अध्यायों में कुल 500 श्लोक लिखे गए हैं। यह पुस्तक स्वयं में समस्त सौरमंडल, ग्रह, पृथ्वी, राशियाँ, गणित इत्यादि के बारे में गूढ़ बातों को समेटे हुई हैं।
इन 14 अध्यायों के नाम इस प्रकार हैं:
#1. ग्रहों की चाल
#2. ग्रहों की स्थिति
#3. दिशा, स्थान व समय
#4. चंद्रमा व ग्रहण
#5. सूर्य व ग्रहण
#6. ग्रहणों का पूर्वानुमान या आकलन
#7. ग्रहीय संयोग
#8. तारों के बारे में
#9. तारों (सूर्य) का उदय व अस्त होना
#10. चंद्रमा का उदय व अस्त होना
#11. सूर्य व चंद्रमा के एकई अहितकर पक्ष
#12. ब्रह्मांड का निर्माण, सृजन, भूगोल इत्यादि के आयाम
#13. सूर्य घड़ी का दंड
#14. विभिन्न लोकों की गति व मानव का क्रिया-कलाप
सूर्य सिद्धांत के सूत्र
आज के वैज्ञानिक शोध से हजारों वर्षों पूर्व ही सूर्य सिद्धांत में ऐसी बातें बता दी गयी थी जो आज के संदर्भ में एक दम सटीक बैठती हैं। इसी कारण इस पुस्तक का लगभग विश्व की हर भाषा में अनुवाद हो चुका है। साथ ही देश-विदेश के विभिन्न वैज्ञानिकों, शोधकर्ताओं, इतिहासकारों द्वारा किसी खोज की शुरुआत व उसे पूर्ण रूप देने के लिए इस पुस्तक का सहारा लिया जाता हैं।
ऐसी कौन-कौन सी गूढ़ व मुख्य बातें हैं जो इस पुस्तक को सबसे अद्भुत बनाती हैं? आज हम एक-एक करके उन्ही के बारे में जानेंगे। नीचे दिए गए बिंदु इस पुस्तक में निहित कुछ मूल सिद्धांत हैं जिसका विस्तार से वर्णन इस पुस्तक में ही निहित हैं। आइये जानते हैं:
ब्रह्मांड की उत्पत्ति व प्रलय
इस पुस्तक में ब्रह्म अर्थात ब्रह्मा की संज्ञा दी गयी है जिन्हें इस ब्रह्मांड व सृष्टि का सृजनकर्ता बताया गया हैं। इसमें बताया गया हैं कि इस ब्रह्मांड में केवल हमारी पृथ्वी ही नही अपितु असंख्य तारें विद्यमान हैं जिनमे सूर्य भी एक तारा हैं। इसी प्रकार सूर्य से बड़े या छोटे करोड़ों तारे इस ब्रह्मांड में विद्यमान हैं जो एक समय के बाद प्रलय में समा जाते हैं अर्थात ब्रह्म में लीन हो जाते हैं।
इसमें प्रलय का अर्थ वस्तु के पुनः निर्माण से हैं अर्थात एक ग्रह या तारा अपना कालखंड समाप्त करने के बाद ब्रह्म में लीन हो जाता हैं व उसके बाद उसका किसी और रूप में निर्माण संभव हो पाता हैं।
ग्रहों की गति व दिशा
इसमें हमारे सौरमंडल की विस्तृत व्याख्या की गयी हैं। उस समय की अद्भुत व चमत्कारिक शक्तियों के द्वारा उन्होंने ना केवल पृथ्वी की गति व स्थिति का सटीक अनुमान लगाया अपितु सूर्य के चारों ओर चक्कर लगा रहे अन्य ग्रहों के समय व गति का अनुमान भी लगाया।
इसमें सूर्य के केवल 6 ग्रह माने गए हैं जो हैं बुद्ध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल, बृहस्पति व शनि। पृथ्वी को छोड़कर इन्ही 5 ग्रहों, चंद्रमा व सूर्य के नाम पर सप्ताह के सात दिनों के नाम रखे गये हैं। अरुण, वरुण व यम को ग्रह की संज्ञा नही दी गयी हैं।
इस पुस्तक में कौन सा ग्रह किस गति से सूर्य के चक्कर लगा रहा हैं, कौनसा ग्रह अब किस दिशा में हैं, सौरमंडल में उसका स्थान कहां व किसके बाद आता हैं, किस ग्रह में कितने दिन होते हैं, इत्यादि का सटीक अनुमान लगाया गया हैं जो आज के वैज्ञानिक शोध से एक दम मेल खाता हैं।
समय
इसमें समय को एक महत्वपूर्ण कारक बताया गया है। साथ ही यह भी बताया गया है कि समय की गति सब जगह एक जैसी नही होती हैं अर्थात जिस गति से समय पृथ्वी पर दौड़ रहा है, वह समय बुद्ध ग्रह में अलग व बृहस्पति ग्रह में अलग गति से दौड़ रहा है। इसी के आधार पर इस पुस्तक में विभिन्न ग्रहों के वर्ष में होने वाले कुल दिन, समय की गति, दिशा आदि का विवरण दिया गया हैं।
इसका उल्लेख विभिन्न धार्मिक घटनाओं में भी किया गया हैं। जैसे कि स्वर्ग लोक का एक दिन पृथ्वी के एक वर्ष के बराबर है। उसी प्रकार ब्रह्म लोक, पाताल लोक इत्यादि में समय की गति को अलग-अलग बताया गया हैं।
दूरी व व्यास
इसमें विभिन्न ग्रहों के बीच की दूरी को भी आँका गया हैं। पृथ्वी की चंद्रमा से दूरी, पृथ्वी की सूर्य से दूरी, सूर्य व चंद्रमा के बीच की दूरी, पृथ्वी का व्यास, चंद्रमा का व्यास, सूर्य का व्यास इत्यादि का वर्णन इसमें दिया गया हैं। सभी की दूरी व व्यास के बीच में तुलनात्मक अध्ययन भी किया गया हैं। इन्हीं तुलनात्मक अध्ययनों से निकले निष्कर्ष के कारण ही हिंदू धर्म में 108 व 9 को शुभ अंक माना गया हैं।
ग्रहण का लगना व उसका आंकलन
सूर्य ग्रहण व चंद्र ग्रहण क्यों लगता हैं, उस समय क्या स्थिति बनती हैं, इसका क्या प्रभाव हमारी पृथ्वी व मानव जाति पर पड़ता हैं, उस समय हमे क्या करना चाहिए व क्या नही करना चाहिए इत्यादि जैसी बातों का विस्तार से उल्लेख इसमें किया गया हैं। इसी के साथ सूर्य व चंद्रमा के उदय व अस्त होने के कारण भी बताये गये हैं।
राशियाँ व उनके प्रभाव
मनुष्य के जन्म, कुल, तिथि, वार इत्यादि के आधार पर उसकी राशि व नाम कैसे निर्धारित किया जाता हैं, इसके बारे में भी बताया गया हैं। हर मनुष्य की उसके जन्म के अनुसार नक्षत्रों व ग्रहों की दिशा को देखकर कुंडली बनाई जाती हैं। मनुष्य की राशियों के आधार पर ही राशिफल निकाला जाता हैं जिसमे विभिन्न ग्रहों की दिशा, उनकी स्थिति इत्यादि के आधार पर आंकलन करके मनुष्य को सचेत किया जाता हैं व उसे उसी प्रकार का आचरण व व्यवहार करने को कहा जाता हैं।
सूर्य सिद्धांत पंचांग
सूर्य सिद्धांत में समय की गति के बारे में उल्लेख हैं व साथ ही उसको किस प्रकार मापा जाए व संग्रहित किया जाए, उसका भी विस्तार से उल्लेख किया गया हैं। इसी संदर्भ में नाड़ी, दिन, मास, वर्ष इत्यादि का उल्लेख मिलता हैं। इसी के अनुसार कैलेंडर, ऋतुएं, मुहूर्त, त्यौहार, पर्व इत्यादि की तिथियाँ निर्धारित होती हैं। हिंदू धर्म में हर चीज़ का समय निर्धारित करने में पंचांग का मुख्य महत्व हैं।
त्रिकोणमिति
हमने स्कूल में त्रिकोणमिति या ट्रिगनोमेट्री पढ़ी होगी जिसमे हमें ज्या (sine), कुज्या (cosine) व स्पर्शज्या (tan) इत्यादि के विभिन्न सूत्र पढ़ाये गये जाते हैं। इन सभी सूत्रों या फ़ॉर्मूलों का उल्लेख इसी पुस्तक में दिया गया हैं। त्रिकोणमिति का उपयोग असामान्य दूरी मापने में किया जाता हैं।
सामान्यतया हम दूरी मापने के लिए मीटर, किलोमीटर जैसे मापदंडो का सहारा लेते हैं किंतु कुछ क्षेत्रों में ये मापदंड असहाय हो जाते हैं। उदाहरण के तौर पर वृक्ष की धरातल से दूरी, ग्रहों के बीच की दूरी इत्यादि। उस समय यह दूरी या तो असपष्ट होती है या उसका निम्नलिखित मापदंडो से गणना करना असंभव होता हैं। ऐसे समय में सूर्य सिद्धांत में लिखे गए त्रिकोणमिति के सूत्रों के द्वारा विभिन्न कोणों, त्रिभुज इत्यादि का सहारा लेकर दूरी की गणना की जाती हैं।
गुरुत्वाकर्षण बल
न्यूटन की खोज से हजारों वर्ष पूर्व ही इस पुस्तक में पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण बल के बारे में लिखा हुआ हैं। इसमें बताया गया हैं कि पृथ्वी के खालीपन में एक ऊर्जा हैं जो नीचे से निकलती हैं। यह ऊर्जा अलग-अलग ग्रहों, तारों व आपस में भिन्न-भिन्न हो सकती हैं। इसी ऊर्जा के कारण कोई भी वस्तु पृथ्वी या अन्य ग्रहों की ओर खींचे चली जाती हैं।
पृथ्वी की रेखाओं व ध्रुवों का विवरण
इसमें पृथ्वी की सरंचना, उसका भूगोल, आधार, पाताल-आकाश, विभिन्न जीव-जंतुओं, पेड़-पौधों व मानव जाति का आपसी संतुलन का भी विवरण मिलता हैं। अक्षांश व देशांतर रेखाओं के अनुसार पृथ्वी पर समुंद्र, पहाड़, मरुस्थल इत्यादि का उल्लेख भी इसमें दिया गया हैं। इसमें पृथ्वी के दोनों ध्रुवों उत्तरी ध्रुव व दक्षिणी ध्रुव का भी उल्लेख मिलता हैं।
-एजेंसी