अर्नब मामले का सबसे अहम पहलू, बंद मामले की दोबारा तफ़्तीश कैसे?

अन्तर्द्वन्द

अर्नब मामले का वो सबसे अहम पहलू यह है कि ऐसे बंद केस की दोबारा तफ़्तीश कैसे, जिसे कोर्ट भी स्‍वीकार कर चुका हो?
अर्नब गोस्वामी की गिरफ़्तारी मामले में एक और बात अहमियत रखती है.
अन्वय नाइक ख़ुदकुशी मामले की जाँच पहले एक बार हो चुकी है, जिसके बाद 2019 में रायगढ़ पुलिस ने इस मामले को बंद कर दिया था. इस पूरे मामले में मजिस्ट्रेट ने पुलिस की 2019 की रिपोर्ट को स्वीकार भी कर लिया था.

ऐसे बंद पड़े मामले में पुलिस को अगर कोई नए सबूत मिलते हैं, तो क़ानून कहता है कि पुलिस को कोर्ट में जाकर उस मामले की दोबारा से जाँच करने की इजाज़त लेनी पड़ेगी. अनुमति मिलने पर ही दोबारा जाँच शुरू की जा सकती है.

बुधवार को अलीबाग़ के ज़िला न्यायालय में बहस के दौरान ये सवाल पुलिस से पूछा गया.
बीबीसी मराठी संवाददाता मयंक भागवत के मुताब़िक, “कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि पहली वाली जाँच को बंद करने की रिपोर्ट कोर्ट ने स्वीकार कर ली थी. ऐसे में पुलिस ने कोर्ट से दोबारा जाँच करने की माँग नहीं की, पिछली रिपोर्ट को किसी भी अदालत में चुनौती नहीं दी गई है. सिर्फ़ एक पत्र लिखकर कोर्ट को जाँच करने के आदेश से बारे में अवगत कराया गया था.”

रायगढ़ पुलिस ने कोर्ट को बताया कि उन्होंने 15 अक्तूबर को इस बारे में कोर्ट को चिट्ठी लिख कर अवगत कराया था.

दीपक आनंद के मुताबिक़ अन्वय नाइक ख़ुदकुशी मामले में दोबारा जाँच शुरू करने की कोर्ट की इजाज़त नहीं होने पर पूरे केस की बुनियाद ही ग़लत साबित हो सकती है. जाँच का ये पहलू इसलिए सबसे अहम हो जाता है.

ख़ुदकुशी के लिए ‘उक़साना’ कब और कैसी परिस्थितियों में माना जाएगा?

ख़ुदकुशी के लिए ‘उक़साना’ कब और कैसी परिस्थितियों में माना जाएगा, इसको आईपीसी के सेक्शन 107 में अलग से परिभाषित किया गया है.

इसके तहत तीन बातें आती हैं. पहला जब किसी ने सुसाइड करने में जानबूझ कर मदद की हो. यानी सुसाइड के लिए किसी को जानबूझ कर रस्सी देना, कुर्सी लगा देना, तेल छिड़क देना, माचिस देना आदि.

दूसरा ख़ुदकुशी के लिए षड्यंत्र में कोई शामिल हो. और तीसरा है सीधे तरीक़े से उकसाना.

इन तीनों तरीक़े में से किसी भी तरीक़े से अगर कोई व्यक्ति, दूसरे व्यक्ति की ख़ुदकुशी के लिए ज़िम्मेदार हैं, तो उस पर धारा 306 लग सकती है. मामला साबित होने पर इसके तहत 10 साल के क़ैद की सज़ा है और जुर्माना भी लगाया जा सकता है.

इसमें पुलिस बिना वारंट के अभियुक्त को गिरफ़्तार कर सकती है. ऐसे मामले में ज़मानत देने का अधिकार केवल कोर्ट को होता है, थाने को नहीं.

जबकि आईपीसी की धारा 34 उन पर लगाई जाती है, जिसमें कोई अपराधी दूसरों के साथ मिल कर एक सामान्य इरादे से किसी अपराध को अंजाम देता है. इस मामले में अर्नब के साथ दो अन्य अभियुक्त भी हैं.

-BBC