रेगिस्तान को भी उपजाऊ खेत में तब्दील कर सकती है नैनो क्ले तकनीक

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बीते साल मार्च में जब दुनिया भर में लॉकडाउन लग रहा था तब संयुक्त अरब अमीरात में एक बड़ा प्रयोग पूरा हो रहा था. केवल 40 दिनों के अंदर यहां बंजर ज़मीन का एक टुकड़ा मीठे रसीले तरबूजों से भर गया.

एक ऐसे देश के लिए जो ताज़े फल और सब्जियों की ज़रूरत का 90 फीसदी हिस्सा आयात करता है, यह असाधारण उपलब्धि है. सिर्फ़ मिट्टी और पानी मिलाने से अरब का सूखा तपता रेगिस्तान रसीले फलों से भरे खेत में तब्दील हो गया.
यह इतना आसान नहीं था. ये तरबूज तरल “नैनो क्ले” की मदद से ही मुमकिन हो पाए. मिट्टी को दोबारा उपजाऊ बनाने की इस तकनीक की कहानी यहां से 1,500 मील (2,400 किलोमीटर) पश्चिम में दो दशक पहले शुरू हुई थी.

1980 के दशक में मिस्र में नील डेल्टा के एक हिस्से में पैदावार घटने लगी थी. रेगिस्तान के क़रीब होने के बावजूद यहां हजारों साल से खेती हो रही थी.

यहां की बेमिसाल उर्वरता की वजह से ही प्राचीन मिस्रवासियों ने अपनी ऊर्जा एक ताक़तवर सभ्यता विकसित करने में लगाई, जिसकी तरक्की देखकर हजारों साल बाद आज भी दुनिया अचंभे में पड़ जाती है.
सदियों तक यहां के समुदायों की भूख मिटाने वाले खेतों की पैदावार, 10 साल के अंदर घट गई.

क्यों घटी पैदावार?

हर साल गर्मियों के आख़िर में नील नदी में बाढ़ आती है जो मिस्र के डेल्टा में फैल जाती है.
वैज्ञानिकों ने जब पैदावार घटने की जांच शुरू की तो पता चला कि बाढ़ का पानी अपने साथ खनिज, पोषक तत्व और पूर्वी अफ्रीका के बेसिन से कच्ची मिट्टी के कण लेकर आता था जो पूरे डेल्टा क्षेत्र में फैल जाता था.
कीचड़ के ये बारीक कण ही वहां की ज़मीन को उपजाऊ बनाते थे. लेकिन फिर क्या लो कण ग़ायब हो गए?

1960 के दशक में दक्षिणी मिस्र में नील नदी पर असवान बांध बनाया गया था. ढाई मील (चार किलोमीटर) चौड़ी यह विशालकाय संरचना पनबिजली बनाने और बाढ़ को नियंत्रित करने के लिए बनाई गई थी ताकि खेती का प्रबंधन आसान हो सके और फसलें बर्बाद न हों.

इस बांध ने बाढ़ के साथ आने वाले पोषक तत्वों को रोक दिया. एक दशक के अंदर-अंदर डेल्टा की पैदावर घट गई. मृदा वैज्ञानिकों और इंजीनियरों ने जब समस्या का पता लगा लिया तो इसका समाधान ढूंढ़ा जाने लगा.

क्या है नैनो क्ले तकनीक?

नैनो क्ले तकनीक का विकास करने वाली नॉर्वे की कंपनी डेज़र्ट कंट्रोल के मुख्य कार्यकारी ओले सिवर्त्सेन कहते हैं, “यह वैसा ही है जैसा आप अपने बगीचे में देख सकते हैं.”
“रेतीली मिट्टी पौधों के लिए ज़रूरी नमी बरकरार नहीं रख पाती. कच्ची मिट्टी सही अनुपात में मिलाने से यह स्थिति नाटकीय रूप से बदल जाती है.”

सिवर्त्सेन के शब्दों में, उनकी योजना नैनो क्ले के इस्तेमाल से बंजर रेगिस्तानी ज़मीन को “रेत से उम्मीद” की ओर ले जाने की है.

कीचड़ का इस्तेमाल करके पैदावार बढ़ाना कोई नई बात नहीं है. किसान हजारों साल से ऐसा करते आ रहे हैं लेकिन भारी, मोटी मिट्टी के साथ काम करना ऐतिहासिक रूप से बहुत श्रम-साध्य रहा है और इससे भूमिगत पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुंच सकता है.

हल जोतने, खुदाई करने और मिट्टी पलटने से भी पर्यावरण को क्षति होती है. मिट्टी में दबे हुए जैविक तत्व ऑक्सीजन के संपर्क में आ जाते हैं और कार्बन डाई-ऑक्साइड में बदलकर वायुमंडल में मिल जाते हैं.

एडिनबर्ग यूनिवर्सिटी की मृदा वैज्ञानिक सरन सोही का कहना है कि खेती से मिट्टी के जटिल बायोम में भी व्यवधान पड़ता है.

“मृदा जीवविज्ञान का एक अहम हिस्सा पौधों और फफूंद के बीच सहजीवी संबंध का है जो पौधों की जड़ प्रणाली के विस्तार के रूप में काम करते हैं.”

जड़ के पास जीवन है

सोही कहती हैं, “बाल से भी बारीक संरचनाएं, जिनको हाइफे कहा जाता है, वे पोषक तत्वों को पौधे की जड़ों तक पहुंचाने में मददगार होती हैं.”

इस प्रक्रिया में फफूंद मिट्टी के खनिज कणों से जुड़ते हैं. वे मृदा संरचना बनाए रखते हैं और क्षरण सीमित करते हैं.
मिट्टी खोदने या खेती करने से ये संरचनाएं टूट जाती हैं. इनके दोबारा तैयार होने में समय लगता है. तब तक मिट्टी को नुकसान पहुंचने और पोषक तत्व ख़त्म होने की आशंका रहती है.

रेत में कच्ची मिट्टी का घोल बहुत कम मिलाएं तो उसका प्रभाव नहीं पड़ता. अगर इसे बहुत अधिक मिला दें तो मिट्टी सतह पर जमा हो सकती है.

वर्षों के परीक्षण के बाद नॉर्वे के फ्लूड डायनेमिक्स इंजीनियर क्रिस्टियन पी ओल्सेन ने एक सही मिश्रण तैयार किया जिसे रेत में मिलाने से वह जीवन देने वाली मिट्टी में बदल जाती है.
वह कहते हैं, “हर जगह एक ही फॉर्मूला नहीं चलता. चीन, मिस्र, संयुक्त अरब अमीरात और पाकिस्तान में 10 साल के परीक्षण ने हमें सिखाया है कि हर मिट्टी की जांच ज़रूरी है, जिससे हम सही नैनोक्ले नुस्खा आजमा सकें.”

मिट्टी के घोल का संतुलन

नैनो क्ले रिसर्च और विकास का बड़ा हिस्सा ऐसा संतुलित तरल फॉर्मूला तैयार करने में लगा जो स्थानीय मिट्टी के बारीक कणों (नैनो कणों) में रिसकर पहुंच सके, लेकिन वह इतनी तेज़ी से न बह जाए कि पूरी तरह खो जाए. इसका मकसद पौधों की जड़ से 10 से 20 सेंटीमीटर नीचे की मिट्टी में जादू का असर दिखाना है.

सौभाग्य से, जब रेत में कीचड़ मिलाने की बारी आती है तो मृदा रसायन विज्ञान का एक नियम काम आता है, जिसे मिट्टी की धनायन विनिमय क्षमता (Cationic Exchange Capacity) कहा जाता है.

सिवर्त्सेन कहते हैं, “कीचड़ के कण निगेटिव चार्ज होते हैं, जबकि रेत के कण पॉजिटिव चार्ज होते हैं. जब वे मिलते हैं तो एक दूसरे से जुड़ जाते हैं.”

रेत के हर कण के चारों ओर मिट्टी की 200 से 300 नैनोमीटर मोटी परत चढ़ जाती है. रेत कणों का यह फैला हुआ क्षेत्र पानी और पोषक तत्वों को उससे चिपकाए रखता है.

सिवर्त्सेन कहते हैं, “कच्ची मिट्टी जैविक तत्वों की तरह काम करती है. यह नमी बनाए रखने में मदद करती है. जब ये कण स्थिर हो जाते हैं और पोषक तत्व उपलब्ध कराने में सहायक होने लगते हैं तब आप सात घंटों के अंदर फसल बो सकते हैं.”

यह तकनीक क़रीब 15 साल से विकसित हो रही है, लेकिन व्यावसायिक स्तर पर पिछले 12 महीने से ही इस पर काम हो रहा है, जब दुबई के इंटरनेशनल सेंटर फ़ॉर बायोसेलाइन एग्रीकल्चर (ICBA) ने स्वतंत्र रूप से इसका परीक्षण किया.

सिवर्त्सेन कहते हैं, “अब हमारे पास इसके असरदार होने से वैज्ञानिक प्रमाण हैं. हम 40 फीट (13 मीटर) के कंटेनर में कई मोबाइल मिनी फैक्ट्रियां बनाना चाहते हैं ताकि हम जितना मुमकिन हो उतनी तब्दीली ला सकें.”

“ये मोबाइल इकाइयां जहां ज़रूरत होगी वहां स्थानीय तौर पर तरल नैनोक्लो तैयार करेंगी. हम उसी देश की मिट्टी का इस्तेमाल करेंगे और उसी क्षेत्र के लोगों को काम पर रखेंगे.”
इस तरह की पहली फैक्ट्री एक घंटे में 40 हजार लीटर तरल नैनो क्ले तैयार कर देगी जिसका इस्तेमाल संयुक्त अरब अमीरात के सिटी पार्कलैंड में होगा. इस तकनीक से 47 फीसदी तक पानी की बचत होगी.

लागत घटाने की चुनौती

फिलहाल प्रति वर्ग मीटर करीब 2 डॉलर (1.50 पाउंड) की लागत आती है जो समृद्ध यूएई के छोटे खेतों के लिए स्वीकार्य है.

मगर सब-सहारा अफ्रीका में जहां यह असल में मायने रखता है वहां इसे प्रभावी बनाने के लिए सिवर्त्सेन को लागत घटाने की ज़रूरत है.

अफ्रीका के ज़्यादातर किसानों के पास इतना पैसा नहीं है कि वे अपनी ज़मीन को इस तरह से ठीक करा सकें. इस तरह से ज़मीन के उपचार का असर लगभग 5 साल तक रहता है. उसके बाद मिट्टी का घोल दोबारा डालना पड़ेगा.

सिवर्त्सेन को लगता है कि बड़े पैमाने पर काम करने से लागत कम होगी. उनका लक्ष्य प्रति वर्ग मीटर ज़मीन के लिए लागत 0.20 डॉलर (0.15 पाउंड) तक लाना है.
इसकी जगह उपजाऊ ज़मीन खरीदनी पड़े तो उसकी लागत 0.50 डॉलर से 3.50 डॉलर (0.38 पाउंड से 2.65 पाउंड) प्रति वर्ग मीटर तक बैठती है. भविष्य में खेत खरीदने की जगह इस तरह से बंजर ज़मीन को उपजाऊ बनाना सस्ता पड़ेगा.

सिवर्त्सेन ग्रेट ग्रीन वॉल प्रोजेक्ट में भी मदद कर रहे हैं. इसके लिए वह यूएन कन्वेंशन टू कॉम्बैट डेजर्टिफ़िकेशन के साथ काम कर रहे हैं. उत्तरी अफ्रीका में रेगिस्तान का विस्तार रोकने के लिए पेड़ों की दीवार खड़ी की जा रही है.

पैदावार बढ़ाने के अन्य उपाय

उत्तरी अफ्रीका और मध्यपूर्व की रेतीली ज़मीन में कच्ची मिट्टी का घोल मिला देंगे, मगर बाकी दुनिया में क्या करेंगे?
वैश्विक स्तर पर मिट्टी में जैविक तत्व 20 से 60 फीसदी तक घट गए हैं. नैनोक्ले सिर्फ़ रेतीली मिट्टी को उपजाऊ बनाने के अनुकूल है.

अगर आपके पास खारी, ग़ैर-रेतीली मिट्टी हो तो आप क्या करेंगे? यहां बायोचार आपकी मदद कर सकता है.
कार्बन का यह स्थायी रूप जैविक पदार्थों को पायरोलिसिस विधि से जलाकर तैयार किया जाता है. इस प्रक्रिया में कार्बन डाई-ऑक्साइड जैसे प्रदूषक बहुत कम निकलते हैं क्योंकि दहन प्रक्रिया से ऑक्सीजन को बाहर रखा जाता है.

नैनोक्ले

इससे छिद्रयुक्त और हल्का चारकोल-जैसा पदार्थ बनता है. सोही का कहना है कि पोषक तत्वों से रहित मिट्टी को यही चाहिए.

वह कहती हैं, “मिट्टी की जैविक सामग्री हमेशा बदलती रहती है, लेकिन स्वस्थ मिट्टी में स्थायी कार्बन का एक निश्चित स्तर मौजूद रहता है.”

“बायोचार स्थायी कार्बन हैं जो पौधों के विकास के लिए अहम पोषक तत्वों पर पकड़ बनाए रखने में मदद करते हैं. मिट्टी में स्थायी कार्बन तत्व विकसित होने में दशकों लग जाते हैं, लेकिन बायोचार से यह तुरंत हो जाता है.”

“बायोचार जैविक खाद जैसे अन्य कार्बनिक पदार्थों के साथ मिलकर मिट्टी की संरचना को ठीक कर सकता है जिससे पौधों का विकास होता है.”

इससे अति-कृषि या खनन या संदूषण की वजह से जैविक तत्वों की कमी वाली मिट्टी को दोबारा बहाल करने में मदद मिल सकती है, बशर्ते कि मिट्टी में मौजूद ज़हरीले तत्वों का उपचार कर लिया जाए.

मिट्टी सुधारने की अन्य तकनीकों में शामिल है- वर्मीक्युलाइट का इस्तेमाल. यह एक फाइलोसिलिकेट खनिज है जिसे चट्टानों से निकाला जाता है. गर्म करने से यह फैल जाता है.
स्पंज जैसा होने से यह अपने वजन से तीन गुणा ज़्यादा पानी सोख सकता है और उसे लंबे समय तक बनाए रख सकता है.

पौधों की जड़ के पास इसे डाल देने से वहां नमी बनी रहती है, लेकिन इसके लिए मिट्टी खोदना पड़ता है जो इसका नकारात्मक पक्ष है.

पोषक तत्वों की जांच

संयुक्त अरब अमीरात में स्थानीय समुदाय के लोग रेगिस्तान को उपजाऊ ज़मीन में बदलने के फायदे उठा रहे हैं.
नैनो क्ले के सहारे उगाई गई सब्जियां और फल कोविड-19 लॉकडाउन में बड़े काम के साबित हुए. 0.2 एकड़ (1,000 वर्ग मीटर) ज़मीन में करीब 200 किलो तरबूत, ज़ूकीनी और बाजरे की फसल तैयार हुई जो एक घर के लिए काफी है.
सिवर्त्सेन कहते हैं, “संयुक्त अरब अमीरात में लॉकडाउन बहुत सख़्त था जिसमें आयात घट गया था. कई लोगों को ताज़े फल और सब्जियां नहीं मिल पा रही थीं.”

“हमने ताज़े तरबूज और ज़ूकीनी तैयार करने के लिए ICBA और रेड क्रेसेंट टीम के साथ काम किया.”
सिवर्त्सेन इस तरह से तैयार फसलों में पोषक तत्वों का परीक्षण भी करना चाहते हैं, लेकिन इसके लिए अगली फसल तक इंतज़ार करना होगा.

-BBC


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