एंग्जाइटी एक ऐसी मानसिक समस्या है जो आजकल तेजी से बढ़ रही है। हर उम्र के लोग इसकी चपेट में आ रहे हैं। परेशान करने वाली बात यह है कि हमारे टीनेजर भी बड़ी संख्या में इस बीमारी की चपेट में आ रहे हैं और आमतौर पर माता-पिता उनकी दिक्कत को समझ नहीं पाते हैं। ऐसे में जरूरी है कि आपको पता होना चाहिए कि कब और किस तरीके से आप तब तक खुद को संभाल पाएं, जब तक डॉक्टर के पास नहीं पहुंच पाते।
एंग्जाइटी के लेवल के आधार पर साइकायट्रिस्ट पेशेंट को ट्रीटमेंट देते हैं। कुछ लोगों को सिर्फ दवाइयों से आराम हो जाता है जबकि कुछ लोगों को दवाइयों के साथ थेरपी की भी जरूरत होती है। कई प्रकार की थेरपीज में एक थेरपी होती है, जिसमें काउंसलर पेशंट को उनके हैपी मोमेट्स याद करने के लिए कहते हैं। यह कॉग्नेटिव विहेवियरल थेरपी का ही एक पार्ट होता है। हाल ही येल यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने अपने शोध में पाया है कि जब भी तनाव होने पर लोग अपनी लाइफ के हैपी मोमेट्स को याद करें तो उन्हें तनाव के साथ डील करने बहुत अधिक राहत मिल सकती है।
हैपी मोमेंट्स को याद करने से एंग्जाइटी डायवर्जन होता है, जिससे दिमाग की मसल्स पर तनाव कम होता है। इतना ही नहीं, इससे ब्रेन में हैपी हॉर्मोन्स का फ्लो बढ़ता है और एंग्जाइटी लेवल धीरे-धीरे नीचे आने लगता है। ऐसे में एंग्जाइटी से बाहर आने के लिए ‘सेफ्टी सिग्नल’ यानी वह थॉट प्रॉसेस जिसकी मदद से हम तनाव से बाहर आए, वह तो एक ही होता है लेकिन उस थॉट को बार-बार याद करके खुश होने से हमें एंग्जाइटी से बाहर आने में मदद मिलती है।
हर इंसान के लिए जरूरी नहीं कि लाइफ का कोई लम्हा ही सेफ्टी सिग्नल्स की तरह काम करे। कुछ लोगों में कोई खास म्यूजिकल रिद्म, सॉन्ग या फूड भी इस तरह का काम कर सकता है। वहीं, जिन लोगों को नेरो स्पेस या छोटी जगहों से घबराहट होती है, उनमें एक्सपोजर थेरपी बहुत कारगर होती है। इसे हर पेशंट को देने का डॉक्टर का तरीका अलग हो सकता है। यह शोध हाल ही जर्नल प्रोसीडिंग ऑफ नेशनल अकैडमी ऑफ साइंसेज में प्रकाशित हुआ।
-एजेंसियां
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