क्या आप जानते है बर्फ का भी रेगिस्तान होता है…

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आपने राजस्थान के रेत के रेगिस्तान बारे में तो अवश्य जानते होंगे लेकिन जानते होंगे लेकिन यह जानते हैं कि बर्फ का भी रेगिस्तान होता है। जी हां… सही कहा आपने, ऐसे रेगिस्तान को कोल्ड डेजर्ट कहते हैं। इस तरह का कोल्ड डेजर्ट लद्दाख में पाया जाता है। इस वजह से वहां साल के 8 महीने तक खेती-बाड़ी मुश्किल है। यह रेगस्तान भले ही ढंडा है लेकिन वहां भी पानी की किल्लत उसी तरह की होती है जैसे हॉट डेजर्ट में।

कोल्ड डेजर्ट में भी पानी की किल्लत दूर हो, इसके लिए केंद्रीय जनजातीय कार्य मंत्रालय ने लद्दाख के गांव-गांव में आइस स्तूप या बर्फ के स्तूप बनाने का प्रोजेक्ट हाथ में लिया है। इस परियोजना के तहत हर साल 25 नए आइस स्तूप बनाने का लक्ष्य रखा गया है। हर आइस स्तूप में 25 से 30 लाख लीटर पानी स्टोर किया जा सकता है। इसी की सफलता ने इस साल मिनिस्ट्री आफ ट्राइबल अफेयर्स को प्रतिष्ठित स्कॉच पुरस्कार दिलवाया।

क्यों जरुरत पड़ी आइस स्तूप की

लद्दाख भारत के चरम उत्तर में एक हिमालयी पर्वतीय रेगिस्तान है, जिसमें 2,700 मीटर से लेकर 4,000 मी ऊंचाई तक स्थित गांव हैं। वहां सर्दियों के तापमान माइनस 30 डिग्री हो जाता है। इतनी सर्दी होते हुए भी वहां साल में महज 100 मिमी की औसत बारिश होती है इसलिए वहां मानव बस्तियां हमेशा से हिमनद धाराओं के आसपास स्थित होती हैं लेकिन अब ग्लोबल वार्मिंग का असर से लद्दाख भी अछूता नहीं है इसलिए वहां पानी की भीषण तंगी हो रही है। जब खेती नहीं होगी तो दूर-दराज के गांवों में रहने का क्या फायदा, इसलिए वहां गांवों से लोग पलायन कर रहे हैं और गांव वीरान हो रहे हैं। इसके समाधान के रूप में आया आइस स्तूप।

कहां होती है पानी की दिक्कत

लद्दाख के ज्यादातर गांवों को पानी की कमी का सामना करना पड़ता है। खास कर अप्रैल और मई के दो महीनों के दौरान जब नदियों में थोड़ा पानी ही रह जाता है। इस समय नई लगाई गई फसलों की सिंचाई करनी पड़ती है। यदि पानी नहीं हो तो फसल चौपट। फिर गांव में रह कर क्या करना। इसलिए लोग पलायन कर जाते हैं। वहां जून के मध्य तक पहाड़ों में बर्फ और ग्लेशियरों के तेजी से पिघलने के कारण पानी की अधिकता होती है और यहां तक कि बाढ़ भी आती है। वहां सितंबर तक सभी खेती की गतिविधियां समाप्त हो जाती हैं।

क्या है आइस स्तूप परियोजना

लद्दाखी गांवों के लिए अप्रैल और मई का महीना ही पानी के बिना काटना मुश्किल हो जाता है। केंद्रीय जनजातीय मंत्रालय की प्रवक्ता के मुताबिक उन ट्राइबल बस्तियों में लोग रहे, इसके लिए जरूरी था पानी की उपलब्धता सुनिश्चित करना। इसलिए गांव में एक स्ट्रेटेजिक प्लेस पर स्तूप के आकार में बर्फ जमा करने की परियोजना शुरू की गई। इस स्तूप में उतना बर्फ जमा हो सकता है, जिससे 25 से 30 लाख लीटर पानी मिल सके। इसका उपयोग उन्हीं दो महीनों के दौरान पेय जल, घर के दैनंदिन कामकाज करने और खेती-बाड़ी में होता है। इससे पेड़-पौधों की भी सिंचाई होती है।

मंत्रालय ने क्या निकाला समाधान

मंत्रालय ने दि हिमालयन इंस्टीट्यूट ऑफ अल्टरनेटिव्स, लद्दाख की और कुछ स्थानीय लोगों की सहायता से वहां बड़े पैमाने पर आइस स्तूप बनाने की योजना बनाई। इस पर नवंबर 2019 से काम हुआ और वर्ष 2019-20 के दौरान 26 आइस स्तूप बना दिए गए। इससे छह करोड लीटर से भी ज्यादा पानी के स्टोरेज का इंतजाम हो गया। इस साल भी कम से कम 25 आइस स्तूप बनाने हैं। मंत्रालय के मुताबिक पिछले साल जितने स्तूप बने थे, वह तो इस साल बनेंगे ही, इस साल अतिक्त 25 स्तूप बनेंगे। मतलब ग्रामीणों के लिए 12 करोड़ लीटर से भी अधिक पानी का इंतजाम हो जाएगा।

-एजेंसियां