
आगरा: ताजमहल दुनिया की नजरों में बेमिसाल है, लेकिन इस शहर की रूह, यमुना नदी, सरकारी लापरवाही और खोखले वादों की भेंट चढ़ रही है। कभी तीर्थयात्रियों, नाविकों और व्यापारियों की चहल-पहल से गूंजने वाले यमुना के घाट आज वीरान और प्रदूषित पड़े हैं। यह नदी, जो शहर की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक धरोहर की प्रतीक थी, अब मरघट बन चुकी है। सरकार की उदासीनता ने यमुना को जहर का दरिया बना दिया है, और इसके घाटों की शान खामोश कब्रों में तब्दील हो गई है।
सुबह-शाम आरतियों की गूंज, स्नान की रस्में और धार्मिक आयोजन इन घाटों की रौनक थे। नाविकों की कश्तियां माल ढोती थीं, और तीर्थयात्री यहां सुकून तलाशते थे। लेकिन वर्ष 1975 में आपातकाल के दौरान संजय गांधी के आदेश पर इन घाटों को बेरहमी से ध्वस्त कर दिया गया। यह शहर की सांस्कृतिक विरासत पर गहरा आघात था। वर्ष 2003 में मायावती सरकार ने रिवर फ्रंट की योजना बनाई, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप ने इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया। तब से हर सरकार ने यमुना की बहाली के बड़े-बड़े दावे किए, मगर नतीजा सिफर रहा।
प्रदूषण का जहर, गाद का बोझ बढ़ रहा है। यमुना की हालत बद से बदतर होती जा रही है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की 2024 की रिपोर्ट के मुताबिक, जिले में यमुना का पानी इतना जहरीला है कि नहाने, पीने या जलचरों के लिए भी खतरनाक है। नदी की तलहटी में 6 से 8 फुट गाद जमा है, जो पानी के बहाव को रोक रही है। बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड (BOD) 30 mg/L से अधिक है, जबकि स्वस्थ नदी के लिए यह 3 mg/L से कम होना चाहिए है। फैक्ट्रियों का कचरा, बिना ट्रीट किया सीवेज, और अनियंत्रित औद्योगिक अपशिष्ट यमुना को मौत के कगार पर ले आए हैं।
ताजमहल के डाउनस्ट्रीम बैराज, जो नदी में पानी का स्तर बनाए रख सकता है, दशकों से कागजी योजनाओं में अटका है। वर्ष 2014 से 2025 तक केंद्र और राज्य सरकारों ने यमुना की सफाई के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया।
नमामि गंगे मिशन यहां पूरी तरह नाकाम रहा। गाद हटाने, सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाने या ताजा पानी की आपूर्ति की कोई कारगर योजना नहीं बनी।
यमुना की बहाली के लिए रिवर कनेक्ट कैंपेन जैसे संगठन सालों से जद्दोजहद कर रहे हैं।
योगी सरकार ने हाल में यमुना घाटों और आरती की परंपरा को पुनर्जनम देने की कोशिश की, लेकिन स्थानीय प्रशासन की सुस्ती ने इन प्रयासों को कागजी साबित किया।
यमुना सिर्फ नदी नहीं, शहर की जान है। इसके घाटों की बहाली खोखले वादों से नहीं, ठोस कदमों से संभव है।
सरकार को तत्काल ये कदम उठाने चाहिए:
घाटों का पुनर्निर्माणः एत्माद्दौला और अन्य प्रमुख स्थानों पर पक्के घाट बनाए जाएं।
नदी की सफाई: गाद हटाने, सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट स्थापित करने और फैक्ट्रियों के कचरे पर सख्ती हो। डाउनस्ट्रीम
बैराजः ताजमहल के नीचे बैराज का निर्माण जल्द शुरू हो।
नाव परिवहनः प्रदूषण-मुक्त जल परिवहन को बढ़ावा देकर पर्यटन और अर्थव्यवस्था को रफ्तार दी जाए।
जल आपूर्तिः ओखला और हथिनीकुंड बांधों से कच्चे पानी की नियमित आपूर्ति सुनिश्चित हो।
रेतिया निकालनाः नदी की तलहटी से गाद हटाने का नियमित अभियान शुरू हो।
प्रदूषण पर सख्तीः सुलभ शौचालयों के बाद भी यमुना में शौच करने वालों पर जुर्माना लगे।
अवैध कब्जों का खात्माः यमुना तट पर अनधिकृत कब्जे और अराजकता का बोलबाला है। पुलिस और राजनीतिक संगठन घाटों और पार्कों को नुकसान पहुंचा रहे हैं। इन कब्जों को तत्काल हटाया जाए। साथ ही, धोबियों और पशुपालकों के लिए नदी तट पर विशेष स्थान तय किए जाएं ताकि प्रदूषण पर नियंत्रण हो।
बारिश का पानी, भविष्य की पूंजी है।
बारिश के पानी को संग्रह करने के लिए कीठम झील जैसे और जलाशय बनाए जाएं। इससे यमुना का जलस्तर बनाए रखने में मदद मिलेगी। साथ ही, जायद की फसलों में कीटनाशकों और रासायनिक खादों का न्यूनतम उपयोग हो, और फसल के बाद सफाई अनिवार्य हो। यमुना के घाट आगरा की धड़कन हैं, और इसकी दुर्दशा शहर की आत्मा को कमजोर कर रही है। ताजमहल से वाटर वर्क्स चौराहे तक ट्रैफिक नियंत्रण, पैदल यात्रियों के लिए सुविधाएं, और वन-वे ट्रैफिक व्यवस्था लागू हो।
यमुना सिर्फ आगरा की धरोहर नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए अमानत है। अगर इसे बचाना है, तो ऐलानबाजी छोड़कर जमीनी कार्रवाई की जरूरत है। यमुना के घाटों की बहाली न केवल आगरा की सांस्कृतिक शान को लौटाएगी, बल्कि एक स्वच्छ और जीवंत नदी का तोहफा भी देगी। सरकार अब और देर न करे। यमुना की पुकार को अनसुना करना आगरा की आत्मा को खोने जैसा है।