वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट-2023: सपने गढ़ने, बुनने और बेचने में बाजार से भी तेज है मोदी सरकार

अन्तर्द्वन्द
(लेखक विमल शंकर सिंह, डी.ए.वी.पी.जी. कॉलेज, वाराणसी के अर्थशास्त्र विभाग में प्रोफेसर और विभागाध्यक्ष रहे हैं)

शान्ति, सुख और समृद्ध भरे जीवन की कामना विश्व के सभी मनुष्य करते हैं। लेकिन आज के भौतिक जगत में, सुख और प्रसन्नता का आधार, आर्थिक विकास बना हुआ दिखाई देता है। सारा जहां विकसित और विकासशील देशों में विभाजित संसार है । भारत के नीति नियंता केवल जी.डी.पी. ग्रोथ की बात करते हैं। लेकिन क्या खुशहाल हिन्दोस्तान बनना, ग्रोथ शब्द का पर्यायवाची है? इसी सोच पर विश्व हैप्पीनेस (खुशहाली या प्रसन्नता) रिपोर्ट न केवल प्रश्नचिन्ह लगाती है अपितु बताती है कि हमारी तरक्की को जानने का आधार क्या होना चाहिए और हम विश्व बिरादरी में किस स्थान पर खड़े हैं। विश्व हैप्पीनेस रिपोर्ट, मानव समाज को खुशहाल करने के लिए, नीति नियंताओ को एक तरह से निर्देश देती है कि वे अपने नीतियों में किस तरह के सुधार करें कि जन मानस प्रसन्न और खुशहाल जीवन जी सके । आइये समझें इस रिपोर्ट को (विश्व हैप्पीनेस रिपोर्ट, 2023) और जानें खुशहाल जीवन और उसके आयामों को

कहते हैं कि आईना बोलता है और यही रिपोर्ट आईना बन जाती है जब हम खुशहाली के विषय पर बात करते हैं और समझते-समझाते हैं अपने जन मन को कि हम प्रसन्न हैं, खुशहाल हैं, बेहाल जीवन में भी । आइये समझें ।

‘सस्टेनेबल डेवलपमेंट सॉल्यूशन नेटवर्क’ जो कि संयुक्त राष्ट्र का एक संस्थान है, 2012 से हर साल यह बताती है कि विश्व का कौन सबसे खुशहाल देश है और किस देश के नागरिक सबसे निराशा का जीवन जी रहे हैं। यह रिपोर्ट कहती है कि किसी भी देश की आर्थिक और सामाजिक विकास या तरक्की को आंकना है तो हमें उसके नागरिकों की खुशहाली को पैमाना बनाना चाहिए । यह देखना चाहिए कि उनका जीवन प्रसन्नता से भरपूर है कि नहीं और वे कितने सन्तुष्ट हैं । वस्तुतः यूएन द्वारा जारी की जा रही यह रिपोर्ट जीवन के गुणात्मक पहलू को लक्ष्य करती है और विकास के परम्परागत पैमाने को अस्वीकार करती है ।

विकास को मापने का परम्परागत पैमाना क्या है ? हम सब मानते हैं कि जब जी.डी.पी.बढ़ती है, हमारी आय बढ़ती है तो विकास होता है। हम सब अच्छी सरकार होने का पैमाना, ग्रोथ होनें से मानते और पहचानते हैं । लेकिन हम यह सोच ही नहीं पाते हैं कि इन परिवर्तनों से हमारी आपकी प्रसन्नता अथवा जीवन में खुशहाली बढ़ी या नहीं, याकि उसमें कोई सकारात्मक परिवर्तन आया कि नहीं ? हैप्पीनेस रिपोर्ट कहती है कि जीवन की यही प्रसन्नता, विकास का मुख्य पैमाना होना चाहिए और वह प्रसन्न जीवन का आधार भी बताती और निर्धारित करती है ।

हैप्पीनेस रिपोर्ट छह निर्धारकों का उपयोग करती है और बताती है कि विश्व के देश खुशहाली के किस पायदान पर खड़े हैं और संसार के देशों के नागरिक कितने खुश हैं? खुशहाली के कारक हैं कि प्रति व्यक्ति जीडीपी कितनी है जो बताती है कि अर्थव्यवस्था का आकार कितना है और वह कैसा प्रदर्शन कर रही है । संकट के समय यदि आपको किसी की मदद मिलती है,वे आपके सहयोगी हों या आपके रिस्तेदार अथवा समाज का कोई भी व्यक्ति सहायता करता है तो सामाजिक सहयोग सौहार्दपूर्ण होता है जिसकी की सर्वाधिक आवश्यकता होती है खुशहाल जीवन के लिए ।जीवन प्रत्याशा बढ़ती है, आप लम्बी उम्र पाते हैं यदि आप शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ्य हैं । मानसिक स्वास्थ्य हमारे व्यवहार, तौर तरीके और परिणाम को बहुत कुछ प्रभावित करती है । इसी तरह आप की स्वयं के बारे में निर्णय लेनें की स्वतंत्रता, खुशहाली को द्विगुणित कर देती है। ह्यूमन राइट्स (मानव अधिकार) भी इसी का अंग है ।इसमें बिना भेदभाव के जीवन जीने और विचार रखने, शिक्षा और कार्य करने की स्वतंत्रता आदि शामिल हैं । साथ ही गुलामी और अत्याचार से मुक्ति भी इसी का अंग है ।उदारता और दान, समुदायों की सकारात्मक सोच और क्रिया को दर्शाती, प्रभावित करतीं हैं और साथ ही उनकों एक साथ रखने, जोड़ने का कार्य भी करतीं हैं ।इसी भांति, भ्रष्टाचार सम्बन्धी धारण, आम जन में सरकार के प्रति विश्वास या अविश्वास को प्रभावित करतीं हैं । स्पष्ट है कि केवल आर्थिक समृद्धि ही किसी समाज में खुशहाली नहीं ला सकती है।

इन निर्धारक कारकों से सम्बंधित देशों के प्रकाशित आकड़ों का उपयोग करके और प्रश्नावली के आधार पर सम्बद्ध देशों के नागरिकों से यह जानने की कोशिश की गई कि विभिन्न देश खुशहाली के किस पायदान पर खड़े हैं? प्रश्नावली में अनेक प्रश्न शामिल होते हैं । जैसे समाज के बीच सद्भाव तथा सामंजस्य सम्बंधित प्रश्न था कि ‘यदि आप किसी समस्या से ग्रसित हुए तो क्या किसी रिस्तेदार अथवा मित्र नें आपकी सहायता की थी या नहीं’ ? इसी भांति, खुद के जीवन के सम्बन्ध में निर्णय लेने की स्वतंत्रता सम्बंधित प्रश्न था कि ‘क्या आप अपने जीवन सम्बन्धी निर्णय लेने की स्वतंत्रता से संतुष्ट हैं या असंतुष्ट ‘? उदारता सम्बन्धी प्रश्न था कि ‘क्या आपने पिछले महीने कुछ धन दान दिया था कि नहीं’? इसी तरह, भ्रष्टाचार सम्बंधित समझ को बनाने एवं जानने के लिए दो प्रश्न किये गए ।

एक, ‘क्या देश की सरकार में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार है या नहीं’? और ‘क्या आपके देश के ब्यवसायिक क्षेत्र में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार है अथवा नहीं’? इसी तरह देश, सकारात्मक ऊर्जा या कि नकारात्मक ऊर्जा से ज्यादा संचालित हो रहा है को जानने के लिए पूछा गया कि ‘क्या आपने पिछले दिन कोई दिलचस्प काम सीखा या किया’? इसी भांति, यदि आपने पिछले दिवस को हॅसने, आनंद मनाने अथवा कोई दिलचस्प काम करने या सीखने में लगाया है तो आप सकारात्मक ऊर्जा से भरपूर है । इसके विपरीत यदि आपका पिछला दिन चिंता, उदासी अथवा क्रोध से भरा था तो आपका जीवन नकारात्मकता भरा है ।

तो प्रश्न थे आपसी सद्भाव, सहायता, उदारता, स्वतंत्रता, जीवंतता और ऊर्जा भरे जीवन सम्बन्धी । भ्रष्टाचार भरे जीवन की नकारात्मकता भी यह उजागर करती है ।
आइये अब देखें कि विश्व के देशों की स्थिति हैप्पीनेस इंडेक्स में कैसी है(तीन वर्षों,2020-2022 का औसत) और भारत उनके बीच कहाँ खड़ा है?

इस रिपोर्ट ने पाया कि फ़िनलैंड (7.804), डेनमार्क(7.586), आइसलैंड (7.530), इसराइल (7.473), नीदरर्लैंड (7.403), स्वीडेन (7.395), नार्वे (7.315),स्विट्ज़रलैंड (7.240), क्रमानुसार सबसे खुशहाल और प्रसन्न देशों में से हैं जो उनके अंकों से स्पष्ट है । स्पष्ट है कि इन देशों नें न केवल आर्थिक तरक्की को ही महत्व दिया है वरन खुशमिजाजी के अन्य आयामों को भी पर्याप्त महत्व दिया ।

फ़िनलैंड जैसे देश, एक स्थिर, सुरक्षित और सुशासन वाले देश के रूप मेँ ही नहीं उभरे हैं बल्कि उन्होंने सामाजिक रूप से एक प्रगतिशील देश के रूप मेँ भी अपनी पहचान बनाई है । हर नागरिक की मुफ्त चिकित्सा नें उसके नागरिकों के जीवन को खुशहाल बनाने मेँ भारी योगदान दिया है । वस्तुतः, इन देशों नें अपनी जनता के जीवन को खुशनुमा बनाने के लिए विभिन्न सक्षम संस्थाओं का निर्माण कर रखा है जो बहुत प्रभावी हैं ।

तो क्या आप ऐसे ही समाज, देश का निर्माण नहीं करना चाहेंगे ? दूसरी तरफ, कोमोरोस (3.545), मलावी (3.495), बोत्सवाना (3.435), कांगो (3.207), जिम्बाब्वे(3.204), सिएरा लियॉन (3.138), लेबनान (2.392) और अफगानिस्तान(1.859) क्रमसः सबसे कम खुशहाल देशों में सम्मिलित हैं ।

हैप्पीनेस रिपोर्ट में भारत (4.036) की स्थिति बड़ी दयनीय है । चीन (5.818), नेपाल (5.360), बांग्लादेश (4.282), पाकिस्तान (4.555), श्रीलंका (4.442) जैसे देश भी हमसे काफी खुशहाल स्थिति में हैं । तो यह खुलाशा हमारे अहंकार को सुहाता नहीं । हम समझ भी नहीं पाते हैं कि खुशहाली, विनम्रता से रिपोर्ट को स्वीकार और अंगीकार करने में है, नकारने में नहीं। खुशहाली, जीडीपी ग्रोथ की गुलाम नहीं होती है । सामाजिक सद्भाव,जीवन में सकारात्मकता, उदारता और भ्रष्टाचार रहित समाज इसकी ख़ुशी को द्विगुणित करती है।

आइये समझें कि क्या हिन्दोस्तान की आवाम इन सकारात्मक निर्धारकों रहित जीवन जीने के लिए मजबूर है और यदि ऐसा है तो क्यों है? हैप्पीनेस रिपोर्ट के आंकड़े तो यही बताते हैं ।न137 देशों की लिस्ट में भारत 126 स्थान पर है । योग, अध्यात्म और अनेक धर्मों को जन्म देनें वाला देश भारत, विश्व गुरु बन जानें की उद्घोषणा करने वाला भारत, आज एक अप्रसन्न जीवन जीने के लिए अभिशप्त है तो क्यों? आइये समझें ।

भारत ने एक ऐसी आर्थिक प्रणाली अपना ली है जिसमें जीवन संतोष रहित होगा। नव उदारवादी अर्थ व्यवस्था, बाजार आधारित अर्थव्यवस्था है और वह तेज आर्थिक विकास पर जोर देती है जिसमें भौतिक सुविधाओं का तो अम्बार होगा किन्तु जीवन रसहीन होगा । मोदी नीति भी इसी जीवन का गुणगान और प्रचार करती है । वह ग्रोथ, ग्रोथ और ग्रोथ की बात करती है और प्रचारित करती है कि देश एक स्वर्णिम दौर से गुजर रहा है। लेकिन एक सत्य यह भी है कि उसके आठ- नौ वर्षों के कार्यकाल में विकास दर नें संतोष तो नहीं दिया है । वस्तुतः बाजार नित-रोज नए सपने गढ़ता है । मोदी सरकार सपने गढ़ने, बुनने और बेचने में बाजार से भी तेज है-यह रहस्य नहीं है । वह ‘ग्रोथ’ को, अर्जुन की ‘चिड़िया की आंख’ की तरह मानती है और उसी का संधान कर रही है। वह अगल-बगल नहीं देखती है कि गरीबी है, असमानता है। भूख से बेहाल जनता है। बेरोजगार युवक हैं।

ऑक्सफैम की रिपोर्ट है जो बताती है कि खरबपतियों की संख्या सन 2022 में 142 से बढ़कर 166 हो गई। देश की 10 प्रतिशत सबसे सम्पत्तिवान वर्ग के पास देश की 72 प्रतिशत सम्पति है । इसके विपरीत देश की ही 50 प्रतिशत सबसे गरीब आबादी के पास मात्र 3 प्रतिशत सम्पति है। तो क्या असंतोष नहीं होगा? वस्तुतः, असत्यता के बादल नें सत्यता के सूर्य को ढक लिया है । तो सत्य क्या है ? सत्य तो यह है कि हम मॉब लिंचिंग के दौर से गुजर रहे हैं। यह दौर है सामाजिक तनाव का, धार्मिक असहिश्रुणता, उन्माद और भ्रष्टाचार का । यह दौर है नागरिकों की अस्मत की कीमत पर अपनी किस्मत जगाने का । यह दौर है जन आकांछाओं को झुठलाने का और तनाव में जीवन जीने का। तो क्या ऐसा दौर खुशमिजाजी को बढ़ाएगा ? लेकिन प्रश्न तो यह भी है कि क्या देश में कुछ भी ठीक नहीं है ? निश्चय ही है । चिंता, उदासी और निराशा के इस दौर में एक बड़ा वर्ग भी है जो आशा का दीप जलाये रखे है । क्या कोरोना काल में आम हिंदुस्तानिओं नें दान नहीं किया? एक दूसरे की सहायता नहीं की? क्या लंगर नहीं लगे, सरकारी कर्मचारियों ने वेतन नहीं कटवाया, उद्योगपतिओं ने पीएम् रिलीफ फण्ड में दान नहीं किया ? क्या भारत के उन लोगों नें जिनसे हैप्पीनेस रिपोर्ट नें वस्तुस्थिति जानने की कोशिश की थी, देश की सही स्थिति नहीं बताई? क्या वे बधाई और धन्यवाद के पात्र नहीं हैं ?

वस्तुतः सत्य तो यह है कि आम भारतीय कुछ सकारात्मकता और ज्यादा नकारात्मकता भरा जीवन जीने के लिए विवश हैं । फिर भी हम सब को तनाव रहित जीवन जीने और हॅसने की कला सीखनी होगी ।हमें सामाजिक-आर्थिक विकृतियों से बचना होगा । खुशहाली रिपोर्ट हमकों, देश को यह समझाती दिखती है कि ईर्ष्या सरदर्द बढ़ाती है । नफ़रत से तनाव बढ़ता है। किन्तु बातचीत से विश्वास और दोस्ती बढ़ती है।

शांति से सुख और समृद्धि, समृद्ध होती है ।अब यह हम पर निर्भर करता है कि हम क्या चाहते हैं ? सामाजिक समरसता या कि वैमनस्ता, प्रसन्नता या अप्रसन्नता ? लेकिन क्या हमारे नीति नियंता इसको जानने, सीखने और अपनाने जा रहे हैं ? सत्य तो यह है कि प्रजा तो राजा की अनुगामिनी होती है । क्या इस सत्य को वे समझेंगे ?

(लेखक का आभार उन लेखकों, प्रकाशकों एवं संस्थाओ को है जिनकी रिपोर्टो एवं लेखन सामग्री का उपयोग इस आलेख को तैयार करने में किया गया है)

(लेखक विमल शंकर सिंह, डी. ए. वी. पी. जी. कॉलेज, वाराणसी के अर्थशास्त्र विभाग में पूर्व प्रोफेसर और विभागाध्यक्ष थे)