चीन के लिए मौजूदा समय हर तरह से मुश्किल है। अर्थव्यवस्था कमजोर स्थिति में है, बेरोजगारी अपने चरम पर है, प्रॉपर्टी सेक्टर संकटों से जूझ रहा है और कोविड लॉकडाउन एक खत्म होता है तो अगला शुरू हो जाता है जिसकी वजह से न सिर्फ कई व्यवसाय नेपथ्य में चले गए बल्कि लोगों की जिंदगी भी एक बोझ बनती जा रही है। दिक्कतें सिर्फ घरेलू मोर्चों पर ही नहीं हैं। भारत और अमेरिका जैसी कई वैश्विक शक्तियों के साथ भी चीन के संबंध ‘अच्छे’ नहीं हैं। किसी के साथ खराब तो किसी के साथ ‘बहुत खराब’ हैं।
दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था की समस्याओं की सूची काफी लंबी है। लंबे समय से चली आ रहीं कई चुनौतियां पिछले एक दशक में और ज्यादा गंभीर हो गईं। चीन में पिछले एक दशक में बहुत कुछ बदल गया, यह दशक था, शी जिनपिंग का। वही शी जिनपिंग, जो संकट की ओर पीठ करके सत्ता पर अपनी पकड़ मजबूत करने में लगे हुए हैं।
पिछले एक दशक में शी जिनपिंग के चीन पर शासन को देखते हुए उनकी तुलना माओत्से तुंग से की जाने लगी। कुछ लोगों ने तो उन्हें माओ से भी ज्यादा ‘सत्तावादी’ शासक करार दिया। जिनपिंग के पास शक्तियों का भंडार है। वह देश के, चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के, सशस्त्र बलों के और कई समीतियों के प्रमुख हैं। अब वह राष्ट्रपति के रूप में तीसरा कार्यकाल हासिल करने जा रहे हैं जिसके बाद संभवतः वह जिंदगीभर के लिए चीन पर राज करेंगे। लेकिन मुश्किलों से घिरे चीन के लिए यह कोई खुशी की बात नहीं हो सकती। शक्तियां बढ़ने के साथ जिम्मेदारी भी बढ़ती है। विश्लेषकों ने चेतावनी दी है कि जैसे-जैसे समस्याएं बढ़ेंगी, जिनपिंग के लिए दोष से बचना मुश्किल हो जाएगा।
अपने सबसे बड़े दुश्मन होंगे शी जिनपिंग
लंदन में SOAS चाइना इंस्टीट्यूट के निदेशक स्टीव त्सांग ने कहा, ‘मुझे लगता है कि चीन पर शी जिनपिंग के लंबे शासन के सबसे बड़े दुश्मन खुद शी जिनपिंग हैं।’ उन्होंने कहा कि एक बड़ी नीतिगत गलती चीन में तबाही का कारण बन सकती है जो संभावित रूप से शी जिनपिंग की सत्ता पर पकड़ को कमजोर करने की प्रक्रिया शुरू कर सकता है।
साल 2012 में चीन की अर्थव्यवस्था फलफूल रही थी क्योंकि वह दुनिया के बाकी हिस्सों से ‘जुड़ा’ हुआ था। चार साल पहले 2008 में चीन ने बीजिंग समर ओलंपिक का आयोजन कर पूरी दुनिया को चौंका दिया और फिर आते हैं शी जिनपिंग।
तानाशाही को लेकर वापस आए जिनपिंग
जिनपिंग के अनुसार पार्टी में कई तरह की समस्याएं थीं, जैसे अंदरूनी कलह, अक्षमताएं और भ्रष्टाचार। समाधान के तौर पर वह तानाशाही शासन को वापस लेकर आए। उन्होंने भ्रष्टाचार विरोधी अभियान के रूप में अपने राजनीतिक विरोधियों को दबा दिया, राष्ट्रपति कार्यकाल की सीमाएं खत्म कर दीं और पार्टी के संविधान में ‘शी जिनपिंग के विचारों’ को शामिल किया। विश्लेषकों का मानना है कि सत्ता के दुरुपयोग और गलत फैसले लेने के चलते कई तानाशाहों को अंत हुआ क्योंकि उन तक सही सलाह नहीं पहुंच पाती।
कोविड लॉकडाउन पड़ रहे भारी
जीरो कोविड पॉलिसी के चलते जिनपिंग लगातार आलोचनाओं के शिकार हो रहे हैं। एक के बाद एक लॉकडाउन ने चीन की अर्थव्यवस्था ने देश की ‘विकास की रफ्तार’ को नाटकीय रूप से कम कर दिया है।
विशेषज्ञों का कहना है कि महंगी टेस्टिंग साइट्स और क्वारंटीन सेंटर्स के निर्माण के बजाय टीकाकरण दरों को बढ़ाने के लिए संसाधनों को बेहतर करने पर ध्यान देना चाहिए। चीन ने अभी भी किसी भी विदेशी एमआरएनए वैक्सीन को मंजूरी नहीं दी है, जो ओमीक्रॉन के खिलाफ चीन के टीकों की तुलना में अधिक प्रभावी हैं।
खत्म हो चुकी है आंतरिक नीतिगत बहस
विश्लेषकों ने यूक्रेन के खिलाफ व्लादिमीर पुतिन के युद्ध की ओर इशारा करते हुए कहा कि रूसी राष्ट्रपति के समान जिनपिंग की शक्ति एक दिन विनाशकारी परिणाम दे सकती है। त्सांग ने कहा कि हम देख रहे हैं कि बड़ी गलतियां हो रही हैं क्योंकि आंतरिक नीतिगत बहस को इसके दायरे में कम कर दिया गया है, या वास्तव में खत्म कर दिया गया है। कम्युनिस्ट पार्टी का दावा है कि उसके नेतृत्व ने लाखों लोगों को गरीबी से बाहर निकालने में मदद की लेकिन वास्तव में चीन की आर्थिक चुनौतियां जिनपिंग के कार्यकाल में और गंभीर हो गई हैं।
Compiled: up18 News