इस साल के शुरूआती महीनों में स्विस बैंक की कार्यशैली एक बार फिर चर्चा में रही। प्रतिष्ठित स्विस बैंक ‘क्रेडिट सुइस’ से एक बड़े डेटा लीक ने दुनियाभर में खलबली मचा दी। दावा किया गया कि बैंक के 18,000 से अधिक खातों की जानकारी बाहर आ गई है। इससे पता चला कि यह बैंक गंभीर आपराधिक गतिविधियों में लिप्त लोगों का पैसा अपने सुरक्षित रख रहा था। हालांकि, क्रेडिट सुइस ने इस डेटा लीक की खबर से इन्कार किया।
यह बताता है कि कैसे स्विस बैंकों ने अपने ग्राहकों की जानकारी गोपनीय रखकर एक असमान वैश्विक वित्तीय प्रणाली बना रखी है। सदियों पुराने कोड ऑफ साइलेंस code of silence ने स्विट्जरलैंड को टैक्स चोरी करने वाले अमीर लोगों की सबसे पसंदीदा जगह बना दी है। आइए जानते हैं कि बैंकों द्वारा अपने ग्राहकों की जानकारी छुपाने की शुरुआत कहां से हुई।
साल 1713 में आया था बैंकिंग गोपनीयता का नियम
शुरुआत फ्रांसीसी राजाओं से हुई। उन्हें अपने धन को छुपाने के लिए एक उपयुक्त जगह की जरूरत थी। प्रोटेस्टेंट बैंकरों से अपने लेनदेन को छुपाने के लिए कैथोलिक राजपरिवार 18वीं शताब्दी में जिनेवा आए। साल 1713 में जिनेवा के अधिकारियों द्वारा बैंकरों को अपने ग्राहकों की जानकारी प्रकट करने से प्रतिबंधित करने के नियम लाए गए। यह सदियों पुराना कोड ऑफ साइलेंस बाद में स्विट्जरलैंड के कानून में शामिल किया गया। क्रेडिट सुइस के डेटा लीक की खबर के बाद यह कोड ऑफ साइलेंस एक बार फिर चर्चा में है। इस डेटा लीक से पता चला है कि बैंक के ग्राहक मादक पदार्थों की तस्करी, मनी लॉन्ड्रिंग, भ्रष्टाचार, यातना और अन्य गंभीर अपराधों में शामिल थे।
जब स्विट्जरलैंड ग्राहकों की जानकारी देने को हुआ था राजी
क्रेडिट सुइस डेटा लीक के बाद स्विट्जरलैंड में एक राष्ट्रीय बहस छिड़ गई। आपको बता दें कि साल 2014 में ‘बैंकिंग गोपनीयता का अंत जैसा की हम जानते हैं’ नाम से एक बड़ी बहस छिड़ी थी। उस समय 50 देशों के मंत्री पहली बार अपने करदाताओं की वित्तीय जानकारी के आदान-प्रदान पर सहमत हुए थे। उस साल पेरिस में मंत्रिस्तरीय बैठक हुई थी, जिसे ऐतिहासिक माना गया था। वह इसलिए क्योंकि बैंकिंग क्षेत्र के कुख्यात लोग अनिच्छा से ही सही इस क्लब में शामिल होने के लिए सहमत हो गए थे। स्विट्जरलैंड ने उस बैठक में भाग लिए दुनियाभर के कर अधिकारियों के साथ ग्राहक बैंक खातों की जानकारी साझा करने का वादा किया था।
एक ऐसा देश जिसने 80 से अधिक वर्षों से ग्राहकों की जानकारी को विदेशों के साथ साझा करना अपराध बना दिया था, उसके द्वारा तथाकथित सामान्य रिपोर्टिंग मानक (CRS) को अपनाना एक महत्वपूर्ण कदम था। इसका मतलब था कि स्विट्जरलैंड और साथी हस्ताक्षरकर्ता कर चोरी और धोखाधड़ी पर नकेल कसने के प्रयासों के तहत अपने देशों में बैंक खाते रखने वाले विदेशियों के बारे में जानकारी का आदान-प्रदान करेंगे।
स्विट्जरलैंड की जेबरा रणनीति
साल 2018 में स्विस सीआरएस डेटा के एक्सचेंज के बाद भी आलोचकों का कहना था कि सिस्टम के प्रति देश की प्रतिबद्धता ने एक “ज़ेबरा रणनीति” बनाई थी। एक तरफ स्विट्जरलैंड के बैंक औद्योगिक, विकसित देशों में ग्राहकों से “क्लीन” पैसा ले सकते थे, जो सूचना समझौतों के स्वचालित आदान-प्रदान का हिस्सा थे लेकिन विकासशील देशों के संभावित संदिग्ध ग्राहकों से धन स्वीकार करने के लिए दरवाजा बंद नहीं किया गया था, जहां कर चोरी की जांच करने वाले अधिकारियों के पास अपने नागरिकों के गुप्त स्विस खातों तक स्वचालित पहुंच नहीं थी।
-एजेंसी