रूस द्वारा यूक्रेन पर हमले के छह माह हो चुके हैं, एक हजार किलोमीटर लंबे मोर्चे पर मौत और विनाश का अंतहीन सिलसिला जारी है। उसके पीछे भीषण आर्थिक टकराव की आग सुलग रही है। पश्चिमी देशों ने 143 लाख करोड़ रुपए की रूसी अर्थव्यवस्था को ध्वस्त करने के लिए आर्थिक प्रतिबंध लगाए हैं। इस प्रतिबंध के प्रभाव पर यूक्रेन युद्ध का नतीजा निर्भर करेगा। यह चीन सहित अन्य देशों के खिलाफ उदार लोकतांत्रिक देशों की क्षमता और ताकत की झलक भी दिखाएगा लेकिन प्रतिबंध के परिणाम उम्मीदों के मुताबिक नहीं निकले हैं। फरवरी के बाद अमेरिका, यूरोप और उनके सहयोगियों ने हजारों रूसी कंपनियों और व्यक्तियों पर असाधारण प्रतिबंधों की झड़ी लगा रखी है।
रूस के 46 लाख करोड़ रुपए कैश का आधा हिस्सा यानी 23 लाख करोड़ रुपए बेकार पड़े हैं। अधिकतर बड़े बैंक ग्लोबल पेमेंट सिस्टम से बाहर हैं। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के अनुसार 2022 में रूस के जीडीपी में 6% की गिरावट आएगी। वैसे मार्च में 15% की कमी का अनुमान था।
पश्चिमी देशों में जनमत को संतुष्ट करने के साथ इन उपायों के सामरिक उद्देश्य हैं। शुरूआती लक्ष्य था कि रूस में नगद पैसे का संकट खड़ा होगा तो उसके लिए युद्ध का खर्च उठाना मुश्किल जाएगा। लंबी अवधि का लक्ष्य है कि व्लादीमीर पुतिन भविष्य में किसी अन्य देश पर हमला नहीं कर सकेंगे। अंतिम लक्ष्य अन्य देशों को युद्ध से रोकने से जुड़ा है। शुरुआती झटकों के बाद रूस का वित्तीय सिस्टम स्थिर हो गया है। उसे चीन सहित कई देशों से सामान की सप्लाई हो रही है। दूसरी ओर ऊर्जा संकट के कारण यूरोप में मंदी आ सकती है।
रूस के सप्लाई कम करने से इस सप्ताह प्राकृतिक गैस के मूल्य 20% बढ़े हैं। जाहिर है, प्रतिबंध के हथियार में खामियां हैं। टेक्नोलॉजी तक पहुंच रोकने का प्रभाव कई वर्ष में नजर आता है। तानाशाही सरकारें साधन जुटाने की वजह से प्रारंभिक दौर में प्रतिबंध सहन कर लेती हैं। सबसे बड़ी खामी है कि 100 से अधिक देशों ने पूर्ण या आंशिक प्रतिबंध लागू नहीं किए हैं। रूसी तेल की सप्लाई एशिया में हो रही है। दुबई में रूसी पैसा जमकर आ रहा है। मास्को के लिए एमीरेट्स और अन्य एयरलाइंस की उड़ानें हर दिन उपलब्ध हैं।
बड़े और मजबूत तानाशाह देश चीन का सामना प्रतिबंधों से करना तो और ज्यादा मुश्किल होगा। ताइवान पर हमला रोकने के लिए पश्चिमी देश चीन के 239 लाख करोड़ रुपए कैश को जाम कर सकते हैं। उसके बैंकों पर रोक लगा सकते हैं। लेकिन रूस के समान चीन की अर्थव्यवस्था भी नहीं ढहेगी। जबकि चीन की बदले की कार्यवाही से कई देशों में जरूरी सामान की कमी हो जाएगी। चीन पश्चिमी देशों को इलेक्ट्रॉनिक्स, बैटरियों और दवाइयों सहित अन्य सामान की सप्लाई बंद कर देगा। यूक्रेन युद्ध का सबक है कि आक्रामक तानाशाह सरकारों का मुकाबला करने के लिए सैनिक सहित कई मोर्चों पर कार्रवाई जरूरी है। अच्छी खबर है कि हमले के 180 दिन बाद यूक्रेन में हथियारों की सप्लाई बढ़ी है। यूरोप गैस के नए स्रोतों की तलाश कर रहा है। अमेरिका चीनी टेक्नोलॉजी पर निर्भरता घटा रहा है। ताइवान को अपनी सुरक्षा व्यवस्था मजबूत करने कहा गया है। वहीं चीन सहित अन्य तानाशाह देश भी रूस से चल रही आर्थिक प्रतिबंधों की लड़ाई का अध्ययन कर कुछ सबक सीख रहे हैं।
पाबंदी के नतीजे तीन से पांच साल में आएंगे
रूस पर प्रतिबंधों के नतीजे तीन से पांच साल में सामने आएंगे। 2025 तक कलपुर्जों की कमी के कारण 20% विमान उड़ने लायक नहीं रह जाएंगे। टेलीकॉम नेटवर्क के अपग्रेड में देर होगी। लोगों को पश्चिमी ब्रांड नहीं मिलेंगे। पश्चिमी देशों की कार फैक्टरियों, मेकडॉनल्ड के स्टोर जैसी चीजों पर कब्जा होने से सरकार समर्थक पूंजीपति मजबूत होंगे। देश के चीन का पिछलग्गू बनने और तानाशाही बढ़ने से असंतुष्ट कुछ प्रतिभाशाली लोग रूस छोड़ सकते हैं। प्रतिबंधों का रूस पर बहुत नुकसानदेह प्रभाव दिखाई नहीं पड़ा है। दूसरी ओर तेल, गैस, कोयला की बिक्री से इस साल रूस को 21 लाख करोड़ रुपए की अतिरिक्त आय होगी।
-एजेंसी
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