गुजरात के अहमदाबाद में वर्ष 2008 में हुए सीरियल बम ब्लास्ट के मामले में विशेष अदालत ने 49 दोषियों में से 38 को फांसी की सजा सुनाई जबकि 11 को ताउम्र कैद में रखा जाएगा। इस ब्लास्ट में 56 लोगों कह मौत हुई थी। 8 फरवरी को सिटी सिविल कोर्ट ने 78 में से 49 आरोपियों को UAPA (गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम) के तहत दोषी करार दिया था।
कोर्ट ने सजा सुनाते समय बताया कि आतंकियों के निशाने पर तब गुजरात के सीएम नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार में मंत्री अमित शाह भी निशाने पर थे। प्लान ऐसा था कि धमाकों के बाद जब वे अस्पताल में लोगों से मिलने आएंगे, तब उन पर हमला किया जाएगा।
निशाने पर थे नरेंद्र मोदी, अमित शाह
शनिवार को जारी अपने आदेश में विशेष अदालत ने कहा कि देश में सामूहिक हत्याओं के लिए पहली बार अस्पतालों को निशाना बनाया गया था। अदालत ने कहा कि गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और तत्कालीन राज्य सरकार में मंत्री अमित शाह सहित राजनीतिक नेताओं को निशाना बनाने के लिए दो अस्पतालों में विस्फोटों की योजना बनाई गई थी। 26 जुलाई 2008 को शहर में हुए 20 विस्फोटों में से सबसे शक्तिशाली विस्फोट एशिया के सबसे बड़े सिविल अस्पताल असरवा में हुआ जिसमें 37 लोग, मुख्य रूप से डॉक्टर, स्वास्थ्य कार्यकर्ता, सामाजिक कार्यकर्ता और घायलों के परिजन मारे गए थे। एलजी अस्पताल में एक और विस्फोट में कोई हताहत नहीं हुआ। कुल मिलाकर, 56 लोग मारे गए और 240 घायल हो गए।
अस्पतालों में राजनीतिक नेताओं को मारने का था प्लान
विशेष न्यायाधीश एआर पटेल ने आदेश में कहा, ‘देश में अब तक बम विस्फोट की कई घटनाएं हुई हैं। लेकिन यहां सामूहिक हत्या और अधिकतम मौतों के मकसद से शहर के दो बड़े अस्पतालों में विस्फोट से लदे वाहनों से बम विस्फोट किए गए। अस्पतालों में इस तरह के बम विस्फोट देश में पहले कभी नहीं हुए थे और न ही कभी सुने गए थे।’ अदालत ने कहा कि मोदी, शाह और आनंदीबेन पटेल, नितिनभाई पटेल, प्रदीप सिंह परमार, विधायक प्रदीप सिंह जडेजा जैसे अन्य मंत्री भी उनके निशाने पर थे। अदालत ने कहा, ‘यह स्पष्ट है कि उनका इरादा अस्पतालों में राजनीतिक नेताओं को मारने का था।’
अदालत ने कहा कि हमलावरों को पता था कि विस्फोटों के बाद सामाजिक कार्यकर्ता और राजनीतिक नेता घायलों की मदद और सांत्वना देने के लिए अस्पतालों में पहुंचेंगे! उन्हें वहां मारने की योजना थी। अदालत ने इस योजना के बारे में तीन दोषियों के कबूलनामे का भी हवाला दिया।
अधिक से अधिक हिंदुओं को मारने की थी योजना
अदालत ने यह भी कहा कि योजना अधिक से अधिक हिंदुओं को मारने की थी। ऐसे क्षेत्रों में हड़तालें हुईं। न्यायाधीश ने यह भी बताया कि उन्होंने दोषियों के इस तर्क को खारिज क्यों किया कि उन्हें मामले में झूठा फंसाया गया था क्योंकि वे मुस्लिम हैं। आदेश में कहा गया है, ‘कई आरोपियों ने कहा कि वे मुस्लिम हैं, उन पर झूठे आरोप लगाए गए और झूठे मामलों में फंसाया गया लेकिन इस तरह के बयान को स्वीकार नहीं किया जा सकता। भारत में करोड़ों मुसलमान अच्छे नागरिकों की तरह रहते हैं। जांचकर्ताओं ने इन आरोपियों को ही क्यों गिरफ्तार किया? अगर वे कई और लोगों को फंसाना चाहते तो ऐसा कर सकते थे लेकिन ऐसा नहीं हुआ है।
अदालत ने कई दोषियों के अशोभनीय व्यवहार पर ध्यान दिया। उनमें से एक जोड़े ने कहा कि उन्हें भारत सरकार, उसके कानूनों और अदालतों में विश्वास नहीं है और केवल अल्लाह में विश्वास है। भारत में कोई भी जेल नहीं है जो उन्हें हमेशा के लिए रख सकती है इसलिए देश या सरकार को उन्हें जेल में रखने की आवश्यकता नहीं है।
अदालत ने कहा, फिर भी अगर उन्हें समाज में रहने दिया जाता है, तो यह समाज के बीच एक आदमखोर तेंदुए को निर्दोष लोगों का शिकार करने के लिए छोड़ देने जैसा होगा। अदालत ने न्यायिक कार्यवाही के दौरान आरोपी के लापरवाह और आकस्मिक व्यवहार पर भी विचार किया।
-एजेंसियां