जहां पूरी योजना के साथ मुस्‍लिम महिलाओं से किया जाता है गैंगरेप

Cover Story

‘री-एजुकेशन’ कैंपों में महिलाओं के साथ पूरी योजना के साथ रेप किया जा रहा है. उन्हें यौन प्रताड़ना का शिकार बनाया जा रहा है और भीषण यातनाएं दी जा रही हैं.
बीबीसी की पड़ताल में ये नई बातें सामने आई हैं. बलात्कार, यातनाओं और बुरी तरह प्रताड़ित करने के ये वाकये आपको विचलित कर देंगे.

वे लोग (पुरुष) हमेशा मास्क पहने रहते थे. कोरोना का डर हो न हो, वे हमेशा मास्क पहने ही दिखते थे. वे सूट पहने दिखते थे. वे पुलिस की वर्दी में नहीं होते थे.

आधी रात के बाद किसी भी वक्त वे सेल में आ जाते और कुछ औरतों को उठा ले जाते थे. ये लोग उन्हें कॉरिडोर से घसीटते हुए ‘ब्लैक रूम’ में ले जाते थे. वहां कोई सर्विलांस कैमरा नहीं होता था.

जियावुदुन ने बताया, “कई रातों को यहां से इसी तरह महिलाओं को उठाकर ले जाया गया.”

वह कहती हैं, “शायद ही मैं अपनी ज़िंदगी के इन डरावने हादसों को भूल पाऊंगी. अब तो मुंह से इन घटनाओं के बारे में एक शब्द नहीं निकालना चाहती. मेरे लिए इनका ज़िक्र तक करना मुश्किल है.”

दस लाख महिला-पुरुषों को क़ैद रखने वाले कैंप

तुरुसुने जियावुदुन वीगर मुसलमानों को कैद कर रखने के लिए बनाए गए विशाल शिविरों के गुप्त नेटवर्कों में नौ महीने रह चुकी हैं. ये कैंप शिनजियांग प्रांत में बनाए गए हैं. स्वतंत्र आंकलनों के मुताबिक़ चीन सरकार की ओर बनाए गए बड़े इलाकों में फैले इन शिविरों में दस लाख से अधिक महिला-पुरुषों को कैद कर रख गया है. चीन का कहना है कि ये शिविर वीगर लोगों और दूसरे अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को दोबारा शिक्षित करने यानी ‘री-एजुकेट’ करने के लिए बनाए गए हैं.

मानवाधिकार संगठनों का कहना है कि चीन की सरकार ने धीरे-धीरे वीगर लोगों की धार्मिक और दूसरी आज़ादियां छीन ली हैं. अब उन पर सामूहिक रूप से निगरानी रखी जाती है. उन्हें हिरासत में ले लिया जाता है. उनके विचार बदलने की कोशिश की जाती और यहां तक कि उनकी जबरदस्ती नसबंदी भी कर दी जाती है.

वीगर लोगों के ख़िलाफ़ चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने यह अभियान शुरू किया था. 2014 में शिनजियांग में वीगर अलगाववादियों की ओर से चरमपंथी हमले हुए थे. न्यूयॉर्क टाइम्स की ओर से लीक किए दस्तावेज़ों से ज़ाहिर होता है कि इसके बाद ही उन्होंने अधिकारियों को बिल्कुल भी ‘दया न दिखाने’ का निर्देश दिया था.

पिछले महीने अमेरिकी सरकार ने कहा था चीन की कार्यवाही नरसंहार की तरह है. जबकि चीन का कहना है कि उसके ऊपर लोगों को सामूहिक रूप से कैंपों में बंद रखने और ज़बरदस्ती नसंबदी करने के लगाए जा रहे आरोप बिल्कुल झूठे और बकवास हैं.

कैंप में महिलाओं के साथ सामूहिक बलात्कार के आरोप

इन कैंपों के अंदर जो रहा है उनका सीधा आंखों देखा ब्योरा तो बहुत कम है लेकिन यहां रखे गए कई लोगों और एक सुरक्षा गार्ड ने बीबीसी को बताया कि यहां व्यवस्थित तरीकों से महिलाओं के साथ रेप हो रहे हैं. वे यौन प्रताड़नाओं की शिकार बनाई जा रही हैं. उन्हें यातनाएं दी जा रही हैं.

इसी तरह के एक कैंप से रिहा होने के बाद तुरुसुने जियावुदुन शिनजियांग से भागकर अमेरिका पहुंच गईं. उन्होंने कहा कि महिलाओं को ‘हर रात’ सेल से उठा लिया जाता था. इसके बाद उनके साथ मास्क पहना कोई आदमी बलात्कार करता था. महिलाओं के साथ सामूहिक बलात्कार भी होता था. खुद जियावुदुन के साथ यह सब हुआ. जियावुदुन ने कहा कि उन्हें प्रताड़ित किया गया. उनके साथ तीन बार सामूहिक बलात्कार हुआ. हर बार दो या तीन पुरुषों ने उनके साथ बलात्कार किया.

जियावुदुन इसके पहले भी मीडिया को यह बता चुकी हैं लेकिन इस तरह के ब्योरे उन्होंने कज़ाकिस्तान से दिए थे. हर वक़्त वापस चीन भेज दिए जाने के डर के बीच वह कज़ाकिस्तान में रह रही थीं. उन्होंने कहा कि अगर उन्होंने इन कैंपों में यौन प्रताड़नाओं, यातनाओं और बलात्कार का ज़्यादा ज़िक्र किया होता तो शिनजियांग लौटने पर उन्हें और ज़्यादा यातनाएं मिलतीं. उन्हें यह सब कहते हुए शर्म आ रही थी.

जियावुदुन जो कह रही हैं, उसकी पूरी तरह जांच करना तो मुश्किल है क्योंकि चीन में रिपोर्टरों पर भारी पाबंदी है. हालांकि उन्होंने बीबीसी को जो यात्रा दस्तावेज और इमिग्रेशन रिकॉर्ड मुहैया कराए हैं, उनसे उनके ब्योरे की टाइमलाइन मिलाई गई है. उन्होंने शिनजुआन काउंटी ( वीगर में इसे कुनेस काउंटी कहा जाता है) में इन शिविरों के जो ब्योरे दिए हैं वे उन सेटेलाइट तस्वीरों से मेल खाते हैं, जिनका बीबीसी ने विश्लेषण किया है. जियावुदुन ने कैंप के अंदर की ज़िंदगी और वहां यातनाओं, प्रताड़नाओं के जो ब्योरे दिए हैं वे दूसरे कैदियों के ब्योरे से मिलते हैं.

बीबीसी को 2017 और 2018 के कुनेस काउंटी की न्याय व्यवस्था से जुड़े कुछ आंतरिक दस्तावेज मिले थे. बीबीसी को ये दस्तावेज एद्रियन जेंज ने मुहैया कराए थे, जो शिनजियांग में चीन की नीतियों के बड़े विशेषज्ञ हैं. इन दस्तावेजों में कुछ ‘प्रमुख समूहों’ को ‘शिक्षा के ज़रिये बदलने’ की विस्तृत योजनाओं और इन पर आने वाले ख़र्च का ज़िक्र है. चीन में वीगरों के विचारों को बदलने के लिए प्रमुख समूहों’ को ‘शिक्षा के ज़रिये बदलने’ जैसे जुमलों का इस्तेमाल किया जाता है. चीन प्रशासन के मुताबिक़ इसका मतलब “वीगरों के ब्रेन वॉश, हृदय-परिवर्तन, न्याय परायणता को मज़बूत करने और बुराइयों को हटाने’ की प्रक्रिया से है.”

बीबीसी ने चीन के इन शिविरों में 18 महीने तक रही एक कजाख महिला से बात की थी. उन्होंने कहा था कि उन्हें वीगर महिलाओं के कपड़े उतारने और उन्हें हथकड़ी लगाने के लिए बाध्य किया गया. उस दौरान वहां चीनी पुरुष थे. इसके बाद उन्हें कमरों को साफ़ करना पड़ा था.

गुलरिजा औलखान नाम की इस महिला ने कहा, “मेरा काम उनके कमर से ऊपर के कपड़ों को उतारने और उन्हें हथकड़ी लगाने का था ताकि वह हिल-डुल न सकें. उन्होंने यह बताने कि लिए अपनी कलाइयों को सिर के पीछे किया. महिलाओं के कपड़े उतारने के मामलों की जानकारी देते हुए उन्होंने कहा, “मैं उन्हें कमरे में छोड़ कर निकल आती थीं, इसके बाद एक आदमी वहां आता था. फिर बाहर से कुछ लोग या पुलिसकर्मी आते थे. मैं चुपचाप दरवाजे पर बैठी रहती थी. जब कमरे में घुसे लोग चले जाते थे तो महिलाओं को नहलाने के लिए ले जाती थी.”

उन्होंने कहा “वहां आने वाले चीनी पुरुष उन महिला कैदियों में से सबसे युवा और सुंदर महिलाओं को पेश करने के लिए पैसे देते थे.”

इन शिविरों में रहने वाले कुछ कैदियों ने भी बताया था कि उन्हें भी इन सुरक्षा-गार्ड्स की मदद के लिए बाध्य किया गया. ऐसा न करने पर सज़ा की धमकी दी जाती थी. औलखान ने कहा कि वह लाचार थीं. न वह विरोध करती सकती थीं और न इन मामलों में दख़ल देने की ताक़त उनके पास थी.

उनसे पूछा गया कि क्या वहां व्यवस्थित ढंग से रेप करने का सिस्टम था? उन्होंने कहा, हां… रेप होता था.

उन्होंने कहा, “उन लोगों ने मुझे कमरे में जाने के लिए मजबूर किया. उन्होंने मुझे उन महिलाओं के कपड़े उतारने को बाध्य किया और उनके हाथ बांधने को कहा. इसके बाद मुझे कमरे से जाने के लिए कहा गया. ”

जियावुदुन ने बताया कि कुछ महिलाओं को सेल से रात को कहीं और ले जाया गया और फिर वे लौट कर नहीं आईं. जिन महिलाओं की सेल में वापसी हुई थी, उन्हें कहा गया था कि उनके साथ जो हुआ, वो किसी को न बताएं.

उन्होंने कहा, किसी को यह बताने की इजाज़त नहीं थी कि उनके साथ क्या हुआ. आप सिर्फ़ वहां चुपचाप पड़े रह सकते थे. यह सब वहां हर शख़्स की आत्मा को कुचलने के लिए किया जा रहा था.

बीबीसी की रिपोर्ट अब तक का सबसे खौफ़नाक सबूत

जेंज ने बीबीसी की इस रिपोर्ट के लिए जुटाए गए सुबूतों को अब तक का सबसे ख़ौफ़नाक सुबूत बताया है. उन्होंने कहा कि वीगरों पर जब से अत्याचार शुरू हुए हैं तब से अब तक के ये सबसे भयावह सुबूत हैं.

जेंज ने कहा, “इन सबूतों से यह साफ़ हो गया है हम सब अब तक सबसे ख़ौफ़नाक यातनाओं के बारे में सुनते आए हैं, वो सही हैं. अब महिलाओं के ख़िलाफ़ यौन दुर्व्यवहार और यातनाओं के आधिकारिक और विस्तृत सुबूत मिल चुके हैं. हम जो सोचते थे उससे भी भयावह अत्याचार हुए हैं.”

वीगर लोग ज़्यादातर मुस्लिम तुर्की अल्पसंख्यक समुदाय से ताल्लुक़ रखते हैं. उत्तर-पश्चिम चीन के शिनजियांग प्रांत में उनकी आबादी एक करोड़ दस लाख है. कज़ाकिस्तान से लगे इस इलाक़े में जातीय कजाख लोग भी रहते हैं. 42 साल की जियावुदुन वीगर हैं. उनके पति कजाख हैं.

जियावुदुन कज़ाकिस्तान में पांच साल रहने के दौरान 2016 के आख़िर में पति के साथ शिनजियांग लौटी थीं. यहां पहुंचने पर उनसे पूछताछ की गई. दोनों के पासपोर्ट ज़ब्त कर लिए गए. कुछ महीनों के बाद पुलिस ने उन्हें एक मीटिंग में आने को कहा. वहां और भी वीगर और कजाख लोगों को बुलाया गया था. इन सभी लोगों लेकर जाकर बंद कर दिया गया.

पहले डिटेंशन सेंटर में उनकी ज़िंदगी थोड़ी आसान थी. खाना अच्छा मिलता था और फ़ोन की भी सुविधा थी लेकिन एक महीने बाद उन्हें पेट में अल्सर हो गया. इसके बाद उन्हें छोड़ दिया गया. उनके पति का पासपोर्ट लौटा दिया और वे काम करने कज़ाकिस्तान लौट गए लेकिन अधिकारियों ने जियावुदुन को शिनजियांग में ही रोके रखा.

रिपोर्टों के मुताबिक़ लोग इन सबके ख़िलाफ़ ज़्यादा न बोलें इसलिए उन्हें रोके रखा जाता है. उनके रिश्तेदारों को एक ख़ास किस्म की ट्रेनिंग से गुज़ारा जाता है. 9 मार्च 2018 जियावुदुन को स्थानीय पुलिस थाने में रिपोर्ट करने को कहा गया. उस दौरान उनके पति कज़ाकिस्तान में ही थे. जियावुदुन ने कहा कि उन्हें ‘और एजुकेशन’ की जरूरत है.

री-एजुकेशन के नाम पर यातनाओं का सिलसिला

जियावुदुन के मुताबिक़ उन्हें फिर उसी जगह भेज दिया गया है, जहां पहले कैद कर रखा गया था यानी कुनेस काउंटी में. लेकिन उस जगह को अब काफी बदल दिया गया था. इलाक़े को काफी बढ़ा दिया गया था. इस जगह पर बसों की लाइनें लगी थीं और इनसे लगातार हिरासत में लिए गए लोगों को उतारा जा रहा था.

महिलाओं से उनके गहने उतरवा कर रख लिए जा रहे थे. जियावुदुन के कान की बालियां खींच कर निकाल ली गई थीं. उनके कान से खून बहने लगा. उन्हें वहां से लेकर जा कर एक कमरे में ठूंस दिया गया, जहां पहले से ही कुछ महिलाएं कैद थीं. इनमें एक बुजुर्ग महिला थीं. जियावुदुन की बाद में उनसे दोस्ती हो गई.

कैंप के सुरक्षा गार्ड्स ने उस महिला के सिर पर बंधे कपड़े को खींच कर निकाल दिया. महिला ने लंबी ड्रेस पहन रखी थी और चीनी सुरक्षा गार्ड उन पर चिल्ला रहे थे. लंबी ड्रेस पहनना वहां धार्मिक रीति-रिवाज का हिस्सा है. लेकिन उस साल वीगरों को उसके लिए गिरफ़्तार किया जा रहा था. चीन सरकार की नज़र में यह अपराध था.

जियावुदुन ने कहा कि उस बुजुर्ग महिला के सारे कपड़े उतरवा दिए गए. उनके शरीर पर सिर्फ इनरवेयर रह गए थे. उन्होंने अपने हाथ से अपने शरीर को ढकने की कोशिश की.
“उन लोगों की यह हरकत देखकर मैं खूब रोई. उन बुजुर्ग महिला के तो आंसू थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे. ”

महिलाओं से कहा गया कि वे अपने जूते और बटन और इलास्टिक लगे सभी कपड़े सौंप दें. इसके बाद उन्हें उन्हें अलग-अलग ब्लॉक में बने सेल में ले जाया गया. किसी भी छोटे चीनी इलाक़े में ऐसी बिल्डिंग की कतार आपको दिख जाएगी.

पहले एक दो महीने कुछ नहीं हुआ. उन्हें सेल में चीन के प्रोपेगैंडा कार्यक्रम देखने को बाध्य किया जाता था. उनके बाल जबरदस्ती काट कर छोटे कर दिए गए थे.

फिर एक दिन पुलिस ने जियावुदुन से उनके पति के बारे में पूछना शुरू कर दिया. पुलिस वालों ने उन्हें ज़मीन पर गिरा दिया. विरोध करने पर उनके पेट पर लात मारी गई.

जियावुदुन ने बताया, “पुलिस वालों के जूते बेहद भारी और कड़े थे. इसलिए शुरू-शुरू में मुझे लगा कि वह किसी दूसरी भारी चीज़ से मुझे मार रहे हैं. लेकिन बाद में पता चला कि वह मेरे पेट को कुचलने की कोशिश कर रहे हैं. मैं लगभग बेहोश हो गई. ऐसा लगा रहा था मेरे अंदर से कोई गर्म लहर गुज़र गई होगी.”

कैंप के एक डॉक्टर ने कहा कि हो सकता है मेरे शरीर के अंदर खून का थक्का जमा हो गया हो गया. जब मेरी कोठरी में मेरे साथ रहने वाली महिला ने बताया कि मुझे रक्तस्राव हो रहा है तो जवाब मिला यह सामान्य बात है. महिलाओं को तो रक्तस्राव तो होता ही है.

जियावुदुन के मुताबिक़ हर सेल में 14 महिलाओं को रखा जाता था. दो मंजिला बिस्तर थे. खिड़कियों पर छड़ें लगाई गई थीं. और ज़मीन में गड्ढे वाला एक शौचालय था. जब पहली बार उन्होंने एक महिला को बाहर ले जाते देखा तो समझ नहीं पाई कि क्या हो रहा है. उन्हें लगा कि उन महिलाओं को वहां से हटा कर कहीं और कैद में रखने के लिए ले जाया जा रहा है.

फिर 2018 को मई में किसी समय (जियावुदुन का कहना था तारीख़ ठीक से याद नहीं, क्योंकि क़ैद में तारीख़ का पता नहीं चलता) जियावुदुन और उनके सेल में रहने वाली 20-25 साल की महिला को बाहर ले जाया गया. उन्हें पहले मास्क पहने एक चीनी पुरुष के सामने पेश किया गया. उनके साथ रहने वाली महिला को दूसरे कमरे में ले जाया गया.

“जैसे ही वह अंदर गई वहां से चिल्लाने की आवाज़ आने लगी. मैं बता नहीं सकती आपको क्या कहूं. मैंने सोचा कि वे लोग उसे यातना दे रहे हैं लेकिन यह नहीं सोचा था कि वे उस महिला के साथ बलात्कार कर रहे हैं.”

जो महिला जियावुदुन को सेल से यहां लाई थी, उसने चीनी पुरुषों को उसके रक्तस्राव के बारे में बताया लेकिन वो लोग महिला को गाली देने लगे. मास्क पहले चीनी आदमी ने मुझे डार्क रूम में भेजने के लिए कहा.

“महिला मुझे अगले कमरे में ले गई. वह लड़की भी वहीं थी. उनके हाथ में एक बिजली की छड़ी थी. मुझे नहीं पता था कि क्या चीज़ थी लेकिन उन्होंने इसे मेरे जननांग में घुसेड़ दिया. इसमें करंट था.”

जो महिला मुझे यहां पकड़ कर ले आई थी, उसने जब कहा कि मेरी हालत खराब हो रही है और मुझे मेडिकल मदद की ज़रूरत है, तब जाकर उस रात डार्क रूम में मेरी यातनाओं को सिलसिला खत्म हुआ. मुझे मेरे सेल में ले जाया गया. लगभग एक घंटे के बाद मेरे साथ की लड़की को भी ले आया गया.

वो लड़की पूरी तरह बदल गई थी. वह किसी से बात नहीं कर रही थी. वह चुपचाप बैठ कर शून्य में देखा करती थी. जियावुदुन ने कहा, “वहां कई ऐसे लोग थे जो अपना दिमागी संतुलन खो बैठे थे.”

सबक याद न करने पर खाना बंद

इन कैंपों में बने सेल के अलावा एक और अहम चीज़ थी. और वह थे उनके क्लासरूम. यहां शिक्षकों को इन कैदियों को ‘री-एजुकेट’ करने के लिए नियुक्त किया गया था.

मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि यह वीगर और दूसरे अल्पंख्यक लोगों की संस्कृति, भाषा और धर्म छीन लेने और उन्हें मुख्यधारा की चीनी संस्कृति में दक्ष करने की प्रक्रिया है.

शिनजियांग में रहने वाली उज़बेक महिला केलबिनुर सादिक चीनी भाषाओं की उन टीचरों में शामिल हैं जिन्हें ज़बरदस्ती इन कैदियों को पढ़ाने के लिए लाया गया था लेकिन सादिक भाग गईं और सार्वजनिक तौर पर यहां के अनुभवों को बारे में बताने लगीं.

सादिक ने बीबीसी को बताया कि इन कैंपों पर काफी कड़ा नियंत्रण रहता है. वह रेप के बारे में सुन रही थीं. उन्हें रेप की अफ़वाह और चिह्न दिखे थे.

एक दिन सादिक नज़र बचा कर वहां एक चीनी महिला पुलिसकर्मी के पास पहुंच गईं. सादिक ने पूछा, “मैं यहां रेप के भयावह मामलों के बारे में सुन रही हूं. तुम्हें इसके बारे में कुछ पता है? उस महिला कर्मचारी ने कहा कि वह लंच के वक़्त बताएगी.”

सादिक ने बताया, “फिर मैं कैंप के आंगन में चली गई. वहां बहुत ज्यादा कैमरे नहीं लगे थे. उस महिला पुलिसकर्मी ने बताया, “वहां रेप रूटीन बन गया है. रेप नहीं गैंगरेप होता है. चीनी पुलिस वाले न सिर्फ़ उन महिलाओं का रेप करते है बल्कि बिजली का करंट भी देते थे. उन पर भयावह अत्याचार हो रहे हैं.”

उस रात सादिक सो नहीं पाईं. उन्होंने कहा, “रात भर मैं विदेश में पढ़ रहीं अपनी बेटियों के बारे में सोच कर रोती रही.”

सेटेलाइट तस्वीरों में शिनजियांग के नज़दीक दबानचेंग में तेज़ी से एक बड़े कैंप का निर्माण होते हुए दिख रहा है.
वीगर ह्यूमन राइट्स प्रोजेक्ट को सादिक ने बताया था कि उन्होंने बिजली के करंट वाली छड़ी के बारे में सुना है.

महिलाओं को यातनाएं देने के लिए यह छड़ी उनके जननांगों में घुसेड़ दिया जाता है. यह बात जियावुदुन के बयानों से मिलती है. उन्होंने बिजली के करंट वाली छड़ी के इस्तेमाल की बात बताई थी.

सादिक ने कहा, “महिलाओं की चीख से पूरी बिल्डिंग गूंजती रहती थी, लंच और कभी-कभी मैं जब क्लास में होती थी तब भी ये चीखें सुनाई पड़ती थीं.”

कैंप में काम करने लिए मजबूर की गईं एक और महिला टीचर सायरागुल सॉतबे ने बीबीसी से कहा, रेप तो आम हो गया था. गार्ड जिन लड़कियों और महिलाओं को अपने साथ ले जाना चाहते थे, उठाकर ले जाते थे.”

सॉतबे कहती हैं कि कैंप में एक 20-21 साल की महिला का सबके सामने गैंगरेप होते उन्होंने ख़ुद देखा था. लगभग 100 क़ैदियों के सामने यह ख़ौफ़नाक हादसा हुआ था. उस महिला से सबके सामने गलती मानने को कहा गया.

सॉतबे ने बताया, “गलती मान लेने के बाद पुलिसवालों ने सबके सामने बारी-बारी से उसका रेप किया. जब वो ये सब कर रहे थे तो हर किसी को यह देखने के लिए बाध्य किया गया. जिसने भी विरोध किया, उसकी कलाइयां बांध दी गईं. आंखों पर पट्टी डाल दी गई. दूसरी ओर देखने के लिए कहा गया और सज़ा देने के लिए ले जाया गया. यह बेहद भयावह था. मुझे लगा मैं मर जाऊंगी. वास्तव में तो मर ही चुकी थी.”

नसबंदी, टीके और बेहोश करने वाली दवाएं

उधर, कुनेस के कैंप में जियावुदुन को रहते हुए पहले हफ़्तों और फिर महीनों होने लगे. यहां रहने वाले क़ैदियों के बाल काट कर छोटे कर दिए गए थे. उन्हें क्लास में जाना पड़ता था. मेडिकल टेस्ट कराना पड़ता. इसके बारे में कुछ भी नहीं बताया जाता था कि ये टेस्ट क्यों कराए जा रहे हैं. हर 15 दिन पर ज़बरदस्ती गोलियां खिला दी जाती थीं. टीका लगवाना पड़ता था, जिससे बेहोशी छा जाती थी और शरीर के अंग सुन्न पड़ जाते थे.

महिलाओं को ज़बरदस्ती आईयूडी (गर्भनिरोधक उपकरण) लगा दी जाती था या फिर उनकी नसबंदी करा दी जाती थी. एक 20 साल की महिला के साथ भी ऐसा ही हुआ. हमने उसकी ओर से दया की भीख मांगी.”

एसोसिएटेड प्रेस की खोजी रिपोर्ट के मुताबिक, शिनजियांग में बड़े पैमाने पर लोगों की नसबंदी की जा रही है लेकिन चीन की सरकार ने बीबीसी से कहा कि ये सरासर बेबुनियाद आरोप हैं.

लोगों को जबरदस्ती दवा देने, नसबंदी करने और टीका लगाने के अलावा जियावुदुन के कैंप में कैदियों से घंटों देशभक्ति गीत गवाए जाते थे. राष्ट्रपति शी जिनपिंग से जुड़े देशभक्ति टीवी कार्यक्रम देखने को बाध्य किया जाता था.

जियावुदुन ने कहा,”हम कैंप के बाहर की दुनिया के बारे में सोचना भूल चुके थे. मुझे पता नहीं कि उन्होंने हमारा ब्रेनवॉश किया या फिर यह टीकों और दवाओं का असर था. भरपेट खाने के अलावा हम कुछ सोच ही नहीं पाते थे. हमें इतना कम खाना मिलता था कि हम पूरा खाना खाने के बारे में ही सोचते रहते थे.”

इन शिविरों में काम कर चुके एक गार्ड ने बीबीसी से एक वीडियो लिंक पर बात करते हुए बताया, “क़ैदियों का खाना रोक दिया जाता था. अगर क़ैदी किताबों का पूरा पाठ याद नहीं कर पाते या शी जिनपिंग की किताबों के सबक जस का तस नहीं सुना पाते तो उन्हें भूखा रखा जाता था.”

जब कैदी टेस्ट में फेल हो जाते थे तो उन्हें अलग-अलग रंग के कपड़े पहनने को बाध्य किया जाता था. कपड़ों के रंग इस आधार पर बदले जाते थे कि आप कितनी बार फेल हुए हैं. एक बार फेल होने पर एक रंग और दो या तीसरी बार फेल होने पर दूसरे रंगों के कपड़े पहनने को दिए जाते थे. इसी आधार पर सज़ा का लेवल भी तय था. इसमें खाना रोकने से लेकर पिटाई तक शामिल थी.

गार्ड ने कहा, “मैं इन शिविरों में अंदर तक गया हूं. मैं पकड़े गए लोगों को यहां पहुंचा चुका हूं. अपनी आंखों से मैंने उन बीमार और दुखी लोगों को देखा है. निश्चित तौर पर उन्हें अलग-अलग यातनाओं से गुज़रना पड़ा होगा. मैं यह पक्के तौर पर कह सकता हूं.”

तुरुसुने जियावुदुन

गार्ड के इस बयान की अलग से स्वतंत्र रूप से जांच तो संभव नहीं है लेकिन उसने कुछ ऐसे दस्तावेज मुहैया कराए जिनसे यह लगता है कि वह इन शिविरों में उस दौरान काम करता रहा था. उसने नाम न जाहिर होने की शर्त पर बीबीसी से यह बात की थी.

गार्ड ने कहा कि उसे सेल वाले इलाकों में होने वाले बलात्कारों के बारे में कुछ भी पता नहीं है. उससे पूछा गया कि क्या कैंप में कैदियों को बिजली का करंट दिया जाता था. इस पर उसने कहा, हां ऐसा होता था. करंट लगे औजारों का इस्तेमाल वे करते थे.

यातनाओं के बाद कैदियों को अलग-अलग ‘अपराधों’ में गलती कबूलने कहा जाता था. गार्ड ने कहा, “उनसे जो कबूलनामा लिया जाता वे मेरे दिल में हैं.”

कैदियों वाले इन शिविरों में हर जगह शी जिनपिंग थे. उनकी तस्वीरें, नारों से ये पटे हुए थे. ‘री-एजुकेशन’ प्रोग्राम के वे केंद्र में थे. चीन में काम कर चुके ब्रिटिश राजनयिक और अब रॉयल यूनाइटेड सर्विस इंस्टीट्यूट के सीनियर एसोसिएट फेलो चार्ल्स पार्टन का कहना है कि वीगर लोगों के ख़िलाफ़ इस नीति का यह ढांचा बनाने वाले जिनपिंग ही हैं.

पार्टन कहते हैं, “इसके केंद्र में राष्ट्रपति ही हैं. यह नीति ऊपर से बनी हुई है. इसमें कोई शक नहीं कि यह शी जिनपिंग की ही नीति है. ऐसा नहीं है कि शी या पार्टी के उच्च अधिकारियों ने रेप या यातनाओं को मंजूरी दी है लेकिन निश्चित तौर पर उन्हें इन चीजों के बारे में पता होगा.”

पार्टन कहते हैं, “मुझे लगता है टॉप लेवल पर वे इन चीज़ों के प्रति आंख मूंद लेना ही सही समझते हैं. चूंकि पार्टी लाइन कहती है कि इस नीति को बेहद कड़ाई से लागू किया जाए, लिहाजा ऐसा ही हो रहा है. इस नीति का पालन करने में कोई संयम नहीं बरता जा रहा है. मुझे नहीं लगता कि इस तरह की यातनाएं रोकने के निर्देश दिए जाएंगे.”

हर किसी को ख़त्म कर देने की साज़िश

जियावुदुन का भी कहना है कि ज़ुल्म ढाने वालों ने इसे बंद नहीं किया है. वह कहती हैं, वे न सिर्फ़ रेप करते हैं बल्कि महिलाओं के शरीर को जहां-तहां काट खाते हैं मानों वो आदमी न होकर जानवर हों. यह कहते-कहते जियावुदुन की आंखों से आंसू बहने लगते हैं. टिशु पेपर से आंख पोंछते हुए उन्होंने खुद को शांत करने के लिए कुछ देर रुकना पड़ता है.
वह कहती हैं, उन्होंने हमारे शरीर के किसी हिस्से को नहीं छोड़ा. हर जगह काट खाया और अब इन भयावह चिह्नों को देख कर नफरत होती है.

“मेरे साथ ऐसा तीन बार हुआ. ऐसा नहीं कि एक आदमी ने ये सब किया. मेरे साथ हमेशा दो या तीन आदमियों ने ऐसा किया.

जियावुदुन ने बताया, “सेल में मेरे नज़दीक सोई एक महिला ने मुझे बताया उसे ज्यादा बच्चा पैदा करने के जुर्म में यहां लाया गया है. वह अचानक तीन दिन के लिए गायब हो गई. जब वह लौटी तो उसके सारे शरीर में निशान बने हुए थे.”

उसकी मुंह से आवाज़ नहीं निकल रही थी. मेरी गर्दन में बांह डाल कर वह लगातार सिसकती रही. वह कुछ भी बोल नहीं पा रही थी.

शिविर में रेप और यातनाओं के इन आरोपों पर पूछने पर चीन सरकार ने बीबीसी के सवालों का सीधा जवाब नहीं दिया. इसके बजाय एक महिला प्रवक्ता ने बयान जारी कर कहा कि शिनजियांग में जो कैंप हैं, वे कैदियों को बंद करने की जगह नहीं है. ये ‘वोकेशनल और ट्रेनिंग सेंटर’ हैं.

प्रवक्ता ने कहा, चीन की सरकार अन्य नागरिकों की तरह ही जातीय अल्पसंख्यकों लोगों के अधिकारों और हितों को पूरा संरक्षण देती है. सरकार महिलाओं के अधिकारों की रक्षा को काफी अहमियत देती है.”

जियावुदुन को 2018 के दिसंबर महीने में छोड़ दिया गया. उन्हें उन लोगों के साथ छोड़ा गया जिनके पति या पत्नी या फिर रिश्तेदार कज़ाकिस्तान में थे. जियावुदुन सरकार की नीति में इस बदलाव को अभी तक समझ नहीं पाई हैं.
जियावुदुन वाशिंगटन डीसी से थोड़ी दूर पर स्थित एक उपनगरीय इलाके में रहती हैं. उनकी मकान मालिक वीगर समुदाय की ही हैं.

सरकार ने उनका पासपोर्ट लौटा दिया. फिर वह कज़ाकिस्तान भाग गईं और फिर वहां से वीगर ह्यूमन राइट्स प्रोजेक्ट के सहयोग से अमेरिका चली गईं. वहां रहने के लिए आवेदन कर रही हैं.

वह वाशिंगटन डीसी से थोड़ी दूर पर स्थित एक उपनगरीय इलाक़े में रहती हैं. उनकी मकान मालिक वीगर समुदाय की ही हैं. दोनों महिलाएं साथ में खाना बनाती हैं और घर के बाहर की गलियों का चक्कर लगाती हैं. ज़िंदगी धीमी चल रही है.

जियावुदुन अपने घर में धीमा रोशनी रखती हैं क्योंकि कैंप में काफी चमकदार बल्ब लगे थे. अमेरिका पहुंचने के एक सप्ताह बाद उन्हें सर्जरी करानी पड़ी. उनका गर्भाशय हटा दिया गया है. उनके गर्भाशय को कुचल दिया गया था. वह कहती हैं, “मैं अब मां नहीं बन पाऊंगी.” वह चाहती हैं उनके पति भी उनके साथ अमेरिका आ जाएं. अभी वह कज़ाकिस्तान में ही हैं.”

कैंप से रिहा होने के बाद जियावुदुन कुछ वक्त तक शिनजियांग में ही थीं. वह लोगों को इस पूरे सिस्टम में फंसते और कैंप से रिहा होते देखती रहीं. उन्होंने देखा कि उनके समुदाय के लोगों पर इस नीति का कैसा असर पड़ रहा है. एक स्वतंत्र रिसर्च में कहा गया है चीन सरकार की इस नीति से पिछले कुछ वर्षों के दौरान शिनजियांग में जन्म दर घट गई है. विश्लेषकों ने इसे ‘आबादी का कत्लेआम’ करार दिया है.

जियावुदुन कहती हैं कि बहुत से लोग और महिलाएं यातनाओं, प्रताड़नाओं से तंग आकर शराब पीने के आदी हो चुकी हैं.

उन्होंने अपने सेल में रहने वाली एक कैदी को सड़क पर पड़े देखा. वह वही युवा महिला थी जिसे उनके सेल से ले जाया गया था. उसी महिला की चीख उन्हें वहां सुनाई दी थी. महिला नशे की आदी हो चुकी थी. उसका सिर्फ़ शारीरिक वजूद बचा हुआ. वैसे तो वह मर ही चुकी है. बलात्कार ने उसे खत्म कर दिया है.

जियावुदुन कहती हैं, “कहा जाता है कि लोग कैंप से रिहा हो रहे हैं. लेकिन मेरी नज़र में कैंप से निकलने वाले तो पूरी तरह ख़त्म हो चुके हैं.”

वह कहती हैं, “यह सब एक सुनियोजित साज़िश है. निगरानी, कैद, कैंप में सरकारी विचारों की घुट्टी पिलाना, अमानवीय बर्ताव, नसबंदी और रेप. सब कुछ योजना बना कर होता है. इन सबका एक ही मकसद है- एक-एक को बरबाद कर दो. और हर किसी को उनके इस मकसद के बारे में पता है.”

-BBC


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