सवालों के घेरे में हिंडनबर्ग की वर्किंग स्टाइल, क्या है ट्रैक रिकॉर्ड?

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हिंडेनबर्ग पर सबसे बड़ा सवाल यह कि क्या वह अपने फायदे के लिए कंपनियों की ‘टार्गेट किलिंग’ करता है?

साथ ही यह भी कि क्या हिंडेनबर्ग के पीछे कोई बड़ी शक्ति है जिसे आर्थिक प्रगति के मैदान में भारत से पछाड़ खाने का दर्द सता रहा है? देश के जाने-माने वकील हरीश साल्वे की मानें तो भारत की प्रगति से उन देशों को खासा तकलीफ हो रही है जो ‘मालिक और गुलाम’ का रिश्ता ही रखना चाहते हैं।

सवालों के घेरे में हिंडनबर्ग की वर्किंग स्टाइल

हिंडेनबर्ग पर सवाल तो एक तरफ, लेकिन एक तथ्य यह भी है कि इस अमेरिकी कंपनी ने भारत के प्राइवेट कंपनी ग्रुप को निशाना बनाने से पहले 15-16 कंपनियों को भी निशाना बनाया है। ये कंपनियां दुनिया के अलग-अलग देशों से हैं। लेकिन मजे की बात है कि खुद हिंडनबर्ग का ट्रैक रिकॉर्ड कंपनियों को बर्बाद करके मोटी कमाई करने का रहा है। 2017 में स्थापित कंपनी हिंडेनबर्ग सिर्फ रिसर्च नहीं करती, शॉर्ट सेलिंग भी करती है। वह खुद को फॉरेंसिक फाइनेंशियल रिसर्च फर्म बताती है जो इक्विटी, क्रेडिट और डेरिवेटिव्स का विश्लेषण करती है। हिंडेनबर्ग का दावा है कि वह ‘मानव निर्मित आपदाओं’ की तलाश करती रहती है जिसमें अकाउंटिंग में फर्जीवाड़ा, कुप्रबंधन और गुप्त लेनदेन जैसी गड़बड़ियां शामिल हैं लेकिन हिंडेनबर्ग ने उन गड़बड़ियों को उजागर करने के नतीजे में पैदा होने वाली परिस्थितियों का भरपूर लाभ उठाने का भी पूरा इंतजाम कर रखा है। हिंडेनबर्ग का एक विंग रिसर्च रिपोर्ट जारी करता है तो दूसरा विंग कंपनियों के शेयरों की शॉर्ट सेलिंग करता है। शॉर्ट सेलिंग यानी उधार में शेयर लेकर बढ़ती कीमत पर बेचने का धंधा। शॉर्ट सेलिंग करने वाला शेयर मार्केट का बहुत बड़ा खिलाड़ी होता है जो मोटी कमाई के लिए बड़े से बड़ा रिस्क लेने का माद्दा रखता है

शॉर्ट सेलिंग के कारोबार में जुटे लोगों, संस्थाओं या कंपनियों को अगर ‘खतरों का खिलाड़ी’ कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। आरोप है कि हिंडेनबर्ग तो जिस कंपनी के शेयरों की शॉर्ट सेलिंग करती है, उसे डुबोने का भी सारा इंतजाम खुद ही कर लेती है ताकि मुनाफे की गारंटी हो जाए। अडानी समूह ने भी हिंडेनबर्ग की कार्यप्रणाली और मंशा पर सवाल उठाया है।

कैसे होती है हिंडनबर्ग की कमाई?

हिंडनबर्ग ने अडानी ग्रुप के भी शेयरों की भी शॉर्ट सेलिंग कर रखी है। उसने खुद बताया कि अडानी ग्रुप की कंपनियों में उसने अपने पोजिशन ले रखे हैं। उसने यूएस ट्रेडेड बॉन्ड्स और नॉन-इंडियन ट्रेडेड डेरिवेटिव इंस्ट्रूमेंट्स के जरिए अडानी ग्रुप में हिस्सेदारी ली है। लेकिन कितनी, इसका खुलासा कंपनी ने नहीं किया है। ऐसे में सवाल उठता है कि दुनियाभर की कंपनियों को साफ-सुथरा बनाने का दावा करने वाली हिंडेनबर्ग को क्या खुद भी पारदर्शिता नहीं बरतनी चाहिए?

सवाल यह भी है कि अगर हिंडेनबर्ग को पता था कि अडानी की ग्रुप कंपनियों में फर्जीवाड़ा हो रहा है तो फिर उसने इसके शेयरों पर दांव क्यों लगाया?

जवाब में कहा जा रहा है कि हिंडेनबर्ग के काम करने का तरीका ही यही है। वह ऐसी कंपनियों का पता लगाती रहती है कि जिसे निशाना बनाया जा सके। जैसे ही उसका शिकार तय होता है तो पहले शॉर्ट सेलिंग विंग एक्शन में आ जाती है। कंपनी पहले निशाने पर आई कंपनी के शेयरों में पोजिशन लेती है, उसके बाद उसका रिसर्च विंग खेल आगे बढ़ाता है। हिंडनबर्ग रिसर्च रिपोर्ट जारी करके अपनी टार्गेट कंपनी के कमजोर पहलुओं का उजागर करती है। रिसर्च रिपोर्ट में दावे किए जाते हैं कि कंपनी ओवरवैल्यूड है, इस कारण जल्द ही इसके बुरे दिन आने वाले हैं। यहां तक कि कंपनी डूबने का भी खतरा बताया जाता है। ऐसे में निवेशक डर जाते हैं और धड़ाधड़ बिकवाली होने लगती है। भय के इस माहौल का फायदा उठाकर हिंडेनबर्ग अपनी मोटी कमाई कर लेती है। अडानी ग्रुप के लिए अपनी रिसर्च रिपोर्ट में भी उसने कहा है कि ग्रुप के कई निवेशकों का कुछ अतापता ही नहीं है। लेकिन मजे की बात है कि खुद हिंडनबर्ग के निवेशक कौन हैं, यह भी दुनिया को पता नहीं।

आखिर क्यों इतनी मेहनत, इतने पैसे खर्च करती है हिंडनबर्ग?

सवाल है कि क्या हिंडेनबर्ग के दोनों विंग जैसे काम करते हैं, क्या उसे नैतिक कहा जा सकता है?

क्या यह कॉन्फ्लिक्ट ऑफ इंट्रेस्ट का एक बड़ा उदाहरण नहीं है कि एक विंग आग लगाए और दूसरा उसी आग से सिंकाई करे?

सवाल हिंडेनबर्ग की खुद की पारदर्शिता का भी है। जब दुनियाभर की कंपनियों में कारोबार को साफ-सुथरा और पारदर्शी बनाने की जिम्मेदारी हिंडेनबर्ग ने उठा रखी है तो फिर वह खुद क्यों नहीं बताता कि आखिर उसे कहां से फंडिंग मिलती है, उसके निवेशक कौन हैं?

खुद की पारदर्शिता पर चुप्पी ठाने रहने की वजह से ही उस पर दोहरे मापदंड के आरोप लग रहे हैं। इतना ही नहीं, उस पर ठेका लेकर नुकसान पहुंचाने का भी गंभीर आरोप लगता है। अडानी के मामले में भी देश के मशहूर वकील हरीश साल्वे ने कहा है कि हिंडनबर्ग रिपोर्ट भारत और भारतीयों पर हमला है। साल्वे अडानी ग्रुप के वकील रह चुके हैं। उन्होंने एक न्यूज़ चैनल से बातचीत में हिंडनबर्ग के कामकाज के तरीकों पर सवाल उठाते हुए उस पर भारत विरोधी शक्तियों से सांठगांठ का आरोप लगाया है। हिंडनबर्ग ने खुद कहा है कि उसने अडानी ग्रुप की जानकारियां जुटाने के लिए कई देशों में रिसर्च करवाए। निश्चित रूप से इसके लिए बड़ी फंडिंग की जरूरत पड़ी होगी। ऐसे में सवाल उठता है कि किसी की गड़बड़ियां उजागर करने के लिए इतना भारी-भरकम खर्च क्यों करता है?

यह सवाल इसलिए गंभीर है कि आखिर वह कोई नियामक संस्था तो है नहीं, न ही उसका मकसद समाज कल्याण का है। रिपोर्ट जारी करने से पहले संबंधित कंपनियों के शेयरों में पोजिशन लेने की उसकी परंपरा पर सवाल तो उठेंगे ही।

Compiled: up18 News