बैन मूवी या कंटेंट देखना औऱ सर्कुलेशन है अपराध, मिल सकती है सजा

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गुजरात दंगे पर बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री क्या आपने भी देखी? या फिर देखने या लोगों को दिखाने की सोच रहे हैं? क्या यह क्राइम है? इसको लेकर बवाल मचा हुआ है. जेएनयू में स्क्रीनिंग को लेकर हुई हिंसा के बाद अब जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी में इस फिल्म की स्क्रीनिंग रखी गई थी. इंस्टाग्राम पोस्ट के अनुसार, 25 जनवरी  इंडिया: द मोदी क्वेश्चन का शेड्यूल तय किया गया था. हालांकि इसकी अनुमति नहीं मिली है.

भारत सरकार ने इस डॉक्यूमेंट्री को यूट्यूब और अन्य माध्यमों पर बैन कर रखा है. यूट्यूब पर पहला हिस्सा जारी करने के बाद इसे हटवा दिया गया था, जबकि दूसरा पार्ट रिलीज होने नहीं दिया गया था.

बैन के बावजूद कुछ आर्काइव लिंक और टेलिग्राम चैनलों पर उपलब्ध होने के चलते देश में इस डॉक्यूमेंट्री की कॉपी उपलब्ध है और इसकी स्क्रीनिंग कराई जा रही है. कांग्रेस समेत कुछ अन्य पार्टियों के नेता भी इसे दिखाए जाने के पक्ष में हैं.

सवाल ये है कि किसी कंटेंट, वीडियो या डॉक्यूमेंट्री पर बैन लगाए जाने के बावजूद इसे देखना, इसकी स्क्रीनिंग कराना कितना बड़ा क्राइम है, इसको लेकर कानून क्या कहता है और इस अपराध के लिए क्या सजाएं हो सकती है.

डॉक्यूमेंट्री को इस तरह सार्वजनिक तौर पर प्रदर्शित करना कानूनन अपराध हो सकता है. बैन कंटेंट के सर्कुलेशन के लिए आईपीसी की धारा 292 और 293 के तहत दो से पांच साल तक की सजा हो सकती है.

इन धाराओं में बैन कंटेंट के लिए ‘ऑब्सीन’ का प्रयोग किया गया है. ऐसे कंटेंट के दायरे में पुस्तक, पुस्तिका, कागज, लेख, रेखाचित्र, रंगचित्र रूपण वगैरह रखे गए हैं. ऑब्सीन का अर्थ यूं तो अश्लील, कामुक से है, लेकिन इसकी अलग व्याख्या भी की जा सकती है. जैसे कि वैसा कंटेंट जो राज्य के प्रति द्वेष पैदा करता हो या फिर सामाजिक सद्भाव बिगाड़ता हो.

क्या सजा मिल सकती है?

आईपीसी की धारा 292 के तहत पहली बार दोषी पाए जाने पर एक वर्ष तक की सजा और दो हजार रुपये तक का जुर्माना हो सकता है. वहीं दूसरी बार यही क्राइम करने पर 5 साल तक की सजा और 5,000 रुपये तक का जुर्माना हो सकता है.

ऐसे कंटेंट के सर्कुलेशन पर तब आईपीसी की धारा 293 लागू होगी, जब कोई 20 साल से कम उम्र के लोगों के बीच ऐसा कंटेंट प्रसारित करेगा तो पहली बार 3 साल तक की सजा और 2,000 रुपये तक का जुर्माना हो सकता है. वहीं दूसरी बार अपराध साबित होने पर 7 साल तक की सजा और 5,000 रुपये तक के जुर्माने से दंडित किए जाने का प्रावधान है.

अगर प्रशासन बैन कंटेंट के प्रदर्शन की मनाही करता है, इसके बावजूद इस आदेश की अवहेलना की जाती है तो इस स्थिति में धारा-188 लागू होगी. सरकारी पदाधिकारी के आदेश की अवहेलना के अपराध में 6 महीने तक की सजा हो सकती है.

क्या राजद्रोह होगा ऐसा करना?

अगर किसी साहित्य, फोटो, वीडियो या फिल्म में ऐसे आपत्तिजनक कंटेंट हों, जिनसे राज्य के प्रति लोगों के मन में नफरत की भावना फैलती हो, राज्य के प्रति गुस्सा भड़कता हो तो ऐसे में इसे आईपीसी की धारा 124-ए यानी राजद्रोह (Sedition) के दायरे में भी माना जा सकता है.

124-ए के अनुसार, अगर कोई व्यक्ति बोलकर या लिखकर, संकेतों या दृश्यों के जरिये या फिर किसी और तरह से घृणा या अवमानना या उत्तेजित करने का प्रयास करता है तो वह राजद्रोह का आरोपी माना जाएगा. यदि वह भारत में कानून द्वारा स्थापित सरकार के प्रति असंतोष भड़काने का भी प्रयास करता है तो वह राजद्रोह का आरोपी होगा. राजद्रोह गैर जमानती धारा है और इसमें 3 साल से लेकर आजीवन कारावास तक की सजा हो सकती है.

आईटी नियमों के तहत बैन

हिंसा की संभावना, अश्लीलता, राष्ट्र के प्रति द्वेष, सामाजिक सद्भाव बिगड़ने की आशंका और अन्य कारणों से सरकारें कंटेंट पर प्रतिबंध लगाती हैं. कुमार आंजनेय ने बताया कि सरकार आजकल ज्यादातर बैन आईटी रूल 2021 के नियम 16 के तहत लगाती हैं. इसमें सचिव स्तर के अधिकारी के पास यह अधिकार होता है. समिति बनाकर, समीक्षा कर वो ऐसे फैसले ले सकते हैं. सरकार ही क्यों न हों, उन्हें भी नियम और कानून के तहत ही एक्शन लेने का अधिकार है.

प्राइवेट स्पेस में देखना अपराध नहीं

कानून की नजर में लोकहित में और राष्ट्रहित में कंटेंट पर प्रतिबंध लगाए जाते रहे हैं. कोई साहित्य हो, किताबें हों, तस्वीरें हों या फिर कोई वीडियो कंटेंट हों, सब पर समान कानून लागू होते हैं. हालिया विवाद पर अपना विचार रखने से परहेज करते हुए शानू कहते हैं, “कानून की दृष्टि में किसी प्रतिबंधित कंटेंट या वीडियो को प्राइवेट स्पेस में देखना अपराध नहीं है. कोई व्यक्ति चाहे तो अपने घर में प्रतिबंंधित वीडियो देख सकता है.”

वो कहते हैं कि घर-परिवार के लोग और दोस्त वगैरह भी चाहें तो अपने यहां ऐसी वीडियो देख सकते हैं. बशर्ते वह इसका प्रचार-प्रसार न कर रहा हो. प्रचार-प्रसार करने को लेकर कानून की कई धाराओं के अंतर्गत ये अपराध हो सकता है. ऐसा करना सर्कुलेशन के दायरे में आएगा, जो अपराध है.

Compiled: up18 News