समझिए भारत की रणनीति: गणतंत्र दिवस पर मिस्र के राष्ट्रपति को क्यों बनाया मुख्‍य अतिथि?

अन्तर्द्वन्द

इस निमंत्रण के क्या हैं मायने?

वैसे तो किसी भी विदेशी राष्ट्राध्यक्ष परेड का मेहमान बनाने एक परंपरा रही है लेकिन किसी भी मेहमान को बुलाने का फैसला कई वजहों से लिया जाता है। दोनों देशों के बीच रणनीतिक, कूटनीतिक रिश्ते, कारोबारी हित और अंतर्राष्ट्रीय जियो राजनीतिक मुद्दे का भी ध्यान रखा जाता है। मिस्र के साथ भारत के रिश्ते तो अच्छे है हीं, साथ ही कारोबारी हित भी बड़े हैं। पिछले साल भारत ने मिस्र को सबसे ज्यादा गेहूं का निर्यात किया था। हालांकि, एक हकीकत ये भी थी कि पहले मिस्र ने भारतीय गेहूं को बैन कर दिया था लेकिन जब यूक्रेन और रूस में युद्ध छिड़ा तो उसे भारत से ही मदद मांगनी पड़ी।
OIC में भी पाकिस्तान को घेर चुका है

मुस्लिम देशों की संस्था ऑर्गनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कोऑपरेशन में पाकिस्तान की नीतियों का कई बार विरोध कर चुकी है। इसके अलावा आंतकवाद के मुद्दे पर भी भारत और मिस्र साथ मिलकर काम करते हैं।

भारत-मिस्र के रिश्ते का इतिहास

भारत और मिस्र के बीच करीबी कूटनीतिक रिश्ते रहे हैं। दोनों देशों के बीच लंबे समय से आपसी सहयोग रहे हैं। क्षेत्रीय और वैश्विक मुद्दे पर भी दोनों के रुख काफी समझदारी भरे रहे हैं। दोनों देशों के बीच राजदूतों के स्तर पर कूटनीतिक रिश्ते 18 अगस्त 1947 को ही बन गए थे। भारत के पहले पीएम पंडित जवाहर लाल नेहरू और मिस्र के राष्ट्रपति गमाल अब्दल नसीर ने दोनों देशों के बीच दोस्ती के समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। ये दोनों नेता ही गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) के मुख्य शिल्पीकार थे।

1980 के दशक से अबतक भारत की तरफ से चार पीएम राजीव गांधी (1985), पी वी नरसिम्हा राव (1995), आई के गुजराल (1997) और डॉ मनमोहन सिंह (2009) में मिस्र के दौरे पर जा चुके हैं। वहीं, मिस्र के पूर्व राष्ट्रपति होस्नी मुबारक 1982, 1983 और 2008 में भारत दौरे पर आ चुके हैं।

Compiled: up18 News