13 फरवरी 1931 को भारत की नई राजधानी के रूप में दिल्ली का उद्घाटन किया गया था। दिल्ली को राजधानी बनाने की घोषणा 12 दिसंबर 1911 को दिल्ली दरबार में की गई थी। इससे पहले भारत की राजधानी कलकत्ता में थी।
1911 में हुआ था ऐलान
‘नई दिल्ली, दिल्ली का आठवां शहर’ किताब के लेखक मदन थपलियाल बताते हैं कि 12 दिसंबर 1911 को किंग जॉर्ज पंचम और क्वीन मेरी ने दिल्ली दरबार में आधारशिलाएं रखकर नई राजधानी का शिलान्यास किया। 12 दिसंबर की रात को दरबार का समापन हुआ। इस मौके पर जॉर्ज पंचम ने दो ऐलान किए। बंगाल सूबे के विभाजन को खत्म करना और कलकत्ता की जगह पर दिल्ली को राजधानी बनाना।
राजधानी के लिए ऐसे ली गई जमीन
थपलियाल बताते हैं कि जब दिल्ली को राजधानी बनाने का ऐलान किया गया, उस वक्त दिल्ली पंजाब प्रांत की तहसील थी। दिल्ली को राजधानी बनाने के लिए जमीन अधिग्रहण का आदेश दिया गया। कई गांवों की जमीन ली गई। नई राजधानी बनाने के लिए पंजाब के उपराज्यपाल ने दिल्ली और बल्लभगढ़ जिले के 128 गांवों की एक लाख 15 हजार एकड़ जमीन अधिग्रहित करने का आदेश दिया। मेरठ जिले के 65 गांवों को भी दिल्ली में शामिल किया गया। यह सभी गांव यमुनापार एरिया के थे और बाद में शाहदरा तहसील के अंदर आए।
काश! ऐसी ही रहती दिल्ली
राजधानी दिल्ली का ज्यादातर हिस्सा ब्रिटिश आर्किटेक्ट एडविन लुटियन और हर्बर्ट बेकर ने प्लान किया था इसलिए इसे लुटिनंस दिल्ली भी बोलते हैं। लुटियंस ने यह भी सुझाव दिया था कि राजधानी में कोई भी इमारत 45 फीट से ऊंची न हो। चारों ओर पेड़ हों और ऊपर से देखने में यह हरा-भरा शहर लगे।
दो जगह हो चुकी थीं रिजेक्ट
नई राजधानी बनाने के लिए नई दिल्ली नगर योजना समिति बनाई गई। इसमें एडविन लुटियंस भी थे। लुटियंस ने नॉर्थ इलाके को बहुत छोटा, तंग, मलेरिया ग्रस्त और हेल्थ के लिए खतरनाक कह कर रद्द कर दिया। साउथ दिल्ली में यमुना के किनारे नई जगह का सुझाव दिया गया। यह सुझाव भी वाइसराय को पसंद नहीं आया। आखिरकार मालचा गांव के पास की जगह रायसीना पहाड़ी नई राजधानी के निर्माण के लिए चुनी गई।
1931 को हुआ उद्घाटन
भले ही दिल्ली को राजधानी बनाने का ऐलान 1911 में किया गया था लेकिन इसके लिए निर्माण कार्य प्रथम विश्व युद्ध के खत्म होने के बाद गति ले सका। 13 फरवरी 1931 लॉर्ड इरविन की मौजूदगी में इसका राजधानी के रूप में उद्घाटन हुआ।
-एजेंसियां