.. इस तरह जारी हुआ सलमान रुश्दी के खिलाफ मौत का फतवा

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“इस सप्ताह, जैसा की चर्चा थी, ऐसा लगता है कि सलमान रुश्दी की किताब अयातुल्लाह ख़मेनई की डेस्क तक पहुंच गई थी और एक इस्लामी राष्ट्र का नेता होने के नाते उन्हें कुछ ना कुछ तो करना ही था.”

इस जीवनी में कहा गया है कि एयरपोर्ट पर मिले मंत्री मोहम्मद खतामी, जो बाद में ईरान के राष्ट्रपति भी बने, ने कलीम की राय ज़रूर मांगी थी लेकिन ये स्पष्ट नहीं है कि उन्होंने ये अयातुल्लाह तक पहुंचाई थी या नहीं या इससे कोई फ़र्क पड़ा था या नहीं.

किताब में ग़यासुद्दीन कहते हैं, “ये मानना कि एक धार्मिक आदेश जिस पर धार्मिक विद्वानों ने सावदानी से बहर की हो उस पर किसी विदेशी चीयरलीडर का कोई प्रभाव था, वो भी जारी किए जाने के कुछ घंटे पहले, अपने आप में एक मज़ाक ही है.”

कलीम की साल 1996 में मौत हो गई थी. हाल ही में सलमान रुश्दी के हमले के बाद टिप्पणी करते हुए उनके बेटे इक़बाल ने कहते हैं कि ये एक महज़ संयोग ही है कि जब ईरान में फ़तवा जारी किया गया था उस समय उनके पिता वहां थे.

इक़बाल कहते हैं कि जब ईरानी मंत्री उनके पास आए और और रुश्दी की पृष्ठभूमि के बारे में पूछा तो ये पहली बार था जब मेरे पिता को फ़तवा के बारे में पता चला था.
“फ़तवा जारी होने के लिए उन्होंने कभी ये महसूस नहीं किया कि वो उसके लिए ज़िम्मेदार थे.”

हालांकि इक़बाल ये भी कहते हैं कि उनके पिता ने कभी भी फ़तवे का समर्थन करने पर अफ़सोस ज़ाहिर नहीं किया.

ग़यासुद्दीन अभी भी ज़िंदा हैं लेकिन मीडिया से बात करने की हालत में नहीं हैं. उनके बेटे आसिम भी यही मानते हैं कि तेहरान एयरपोर्ट पर हुई मुलाक़ात महज़ संयोग थीं और इस बात का कोई सबूत नहीं है कि कलीम की राय को अयातुल्लाह तक पहुंचाया गया था.
आसिम कहते हैं कि उनके पिता ने अपने आप को दशकों पहले ही फ़तवे से अलग कर लिया था.

-Compiled by -up18News