सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को इलेक्टोरल बॉन्ड की वैधता पर अपना फ़ैसला सुनाते हुए इस पर रोक लगा दी है. सर्वोच्च अदालत ने इसे असंवैधानिक बताते हुए रद्द कर दिया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड को अज्ञात रखना सूचना के अधिकार और अनुच्छेद 19 (1) (ए) का उल्लंघन है.
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि राजनीतिक पार्टियों को आर्थिक मदद से उसके बदले में कुछ और प्रबंध करने की व्यवस्था को बढ़ावा मिल सकता है.
जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि काले धन पर काबू पाने का एकमात्र तरीक़ा इलेक्टोरल बॉन्ड नहीं हो सकता है. इसके और भी कई विकल्प हैं.
जस्टिस चंद्रचूड़ ने स्टेट बैंक ऑफ इंडिया को राजनीतिक पार्टियों को मिले इलेक्टोरल बॉन्ड की जानकारी देने का निर्देश दिया है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि एसबीआई चुनाव आयोग को जानकारी मुहैया कराएगा और चुनाव आयोग इस जानकारी को 31 मार्च तक अपनी वेबसाइट पर प्रकाशित करेगा.
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पाँच जजों की बेंच ने यह फ़ैसला सुनाया है. इस बेंच में जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस जेबी पार्डीवाला और जस्टिस मनोज मिश्र हैं.
यह मामला सुप्रीम कोर्ट में आठ साल से ज़्यादा वक़्त से लंबित था और इस पर सभी निगाहें इसलिए भी टिकी थीं क्योंकि इस मामले का नतीजा साल 2024 में होने वाले लोकसभा चुनावों पर बड़ा असर डाल सकता है.
इस मामले पर सुनवाई शुरू होने से पहले भारत के अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने इस स्कीम का समर्थन करते हुए सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि ये स्कीम राजनीतिक दलों को दिए जाने वाले चंदों में “साफ़ धन” के इस्तेमाल को बढ़ावा देती है.
साथ ही अटॉर्नी जनरल ने शीर्ष अदालत के सामने तर्क दिया था कि नागरिकों को उचित प्रतिबंधों के अधीन हुए बिना कुछ भी और सब कुछ जानने का सामान्य अधिकार नहीं हो सकता है.
इस बात का संदर्भ उस तर्क से जुड़ा हुआ है, जिसके तहत ये मांग की जा रही है कि राजनीतिक पार्टियों को ये जानकारी सार्वजानिक करनी चाहिए कि उन्हें कितना धन चंदे के रूप में किससे मिला है.
इलेक्टोरल बॉन्ड्स क्या होता है?
इलेक्टोरल बॉन्ड राजनीतिक दलों को चंदा देने का एक वित्तीय ज़रिया है. यह एक वचन पत्र की तरह है जिसे भारत का कोई भी नागरिक या कंपनी भारतीय स्टेट बैंक की चुनिंदा शाखाओं से ख़रीद सकता है और अपनी पसंद के किसी भी राजनीतिक दल को गुमनाम तरीक़े से दान कर सकता है.
भारत सरकार ने इलेक्टोरल बॉन्ड योजना की घोषणा 2017 में की थी. इस योजना को सरकार ने 29 जनवरी 2018 को क़ानूनन लागू कर दिया था.
इस योजना के तहत भारतीय स्टेट बैंक राजनीतिक दलों को धन देने के लिए बॉन्ड जारी कर सकता है.
इन्हें ऐसा कोई भी दाता ख़रीद सकता है, जिसके पास एक ऐसा बैंक खाता है, जिसकी केवाईसी की जानकारियाँ उपलब्ध हैं. इलेक्टोरल बॉण्ड में भुगतानकर्ता का नाम नहीं होता है.
योजना के तहत भारतीय स्टेट बैंक की निर्दिष्ट शाखाओं से 1,000 रुपए, 10,000 रुपए, एक लाख रुपए, दस लाख रुपए और एक करोड़ रुपए में से किसी भी मूल्य के इलेक्टोरल बॉन्ड ख़रीदे जा सकते हैं.
चुनावी बॉन्ड्स की अवधि केवल 15 दिनों की होती है, जिसके दौरान इसका इस्तेमाल सिर्फ़ जन प्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत पंजीकृत राजनीतिक दलों को दान देने के लिए किया जा सकता है.
केवल उन्हीं राजनीतिक दलों को इलेक्टोरल बॉन्ड के ज़रिए चंदा दिया जा सकता है, जिन्होंने लोकसभा या विधान सभा के लिए पिछले आम चुनाव में डाले गए वोटों का कम से कम एक प्रतिशत वोट हासिल किया हो.
योजना के तहत चुनावी बॉण्ड जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्तूबर के महीनों में 10 दिनों की अवधि के लिए ख़रीद के लिए उपलब्ध कराए जाते हैं.
इन्हें लोकसभा चुनाव के वर्ष में केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित 30 दिनों की अतिरिक्त अवधि के दौरान भी जारी किया जा सकता है.
क्या थी चिंताएं
भारत में चुनावी चंदे के लिए इलेक्टोरल बॉन्ड 2018 में लाए गए थे. ये बॉन्ड तयशुदा समय के लिए जारी किए जाते हैं, जिन पर ब्याज नहीं मिलता.
ये बॉन्ड एक हज़ार रुपए से लेकर एक करोड़ रुपए तक की तय रक़म की शक्ल में जारी किए जा सकते हैं. इन्हें साल में एक बार तय समय-सीमा के भीतर कुछ ख़ास सरकारी बैंकों से ख़रीदा जा सकता है.
भारत के आम नागरिकों और कंपनियों को ये इजाज़त है कि वो ये बॉन्ड ख़रीदकर सियासी पार्टियों को चंदे के रूप में दे सकते हैं. दान मिलने के 15 दिन के अंदर राजनीतिक दलों को इन्हें भुनाना होता है.
इलेक्टोरल बॉन्ड के ज़रिए केवल वही सियासी दल चंदा हासिल करने के हक़दार हैं जो रजिस्टर्ड हैं और जिन्होंने पिछले संसदीय या विधानसभाओं के चुनाव में कम से कम एक फ़ीसद वोट हासिल किया हो.
सरकार के मुताबिक़ जारी होने के बाद से अब तक 19 किस्तों में 1.15 अरब डॉलर क़ीमत के इलेक्टोरल बॉन्ड बेचे जा चुके हैं.
भारत में चुनावों और सियासी दलों पर नज़र रखने वाली संस्था एसोसिएशन फ़ॉर डेमोक्रेटिक रिफ़ॉर्म्स (ADR) के मुताबिक़, 2019 से 2021 के दौरान सात राष्ट्रीय पार्टियों की 62 प्रतिशत से ज़्यादा आमदनी इलेक्टोरल बॉन्ड से मिले चंदे से हुई थी.
-एजेंसी