आगरा। भारत आने वाले वर्षों में वृद्धावस्था से जुड़ी गंभीर चुनौतियों का सामना करने जा रहा है। यूके के वरिष्ठ जेरियाट्रिक विशेषज्ञ डॉ. अनिल कुमार ने कहा कि वर्ष 2050 तक देश में वृद्धों की संख्या मौजूदा स्थिति की तुलना में दोगुनी हो जाएगी, जो स्वास्थ्य सेवाओं के लिए किसी सुनामी से कम नहीं होगी। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि समय रहते तैयारी नहीं की गई तो अस्पतालों और स्वास्थ्य ढांचे पर भारी दबाव पड़ेगा।
जेरियाट्रिक सोसाइटी ऑफ इंडिया द्वारा आयोजित कार्यशाला ‘जेसीकॉन 2025’ में भाग लेने आगरा पहुंचे डॉ. कुमार ने कहा कि इस चुनौती से निपटने के लिए भारत को अभी से स्वास्थ्य ढांचे को मजबूत करने, चिकित्सकीय प्रशिक्षण को उन्नत करने और नीतिगत स्तर पर ठोस कदम उठाने की जरूरत है।
उन्होंने डॉक्टरों की नई पीढ़ी से वृद्ध मरीजों के इलाज में क्लीनिकल जांच को प्राथमिकता देने का आग्रह किया। उनका कहना था कि बिना पूरी क्लीनिकल फाइंडिंग समझे अनावश्यक जांचें और दवाएं मरीज को नुकसान पहुंचा सकती हैं। उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि यदि कोई वृद्ध मरीज बार-बार गिर रहा है, तो दवा देने से पहले यह पता लगाना जरूरी है कि वजह लो ब्लड प्रेशर, पार्किंसंस या कोई अन्य बीमारी तो नहीं है।
डॉ. कुमार ने स्पष्ट किया कि वृद्धावस्था से जुड़ी बीमारियां किसी एक देश तक सीमित नहीं हैं, बल्कि यह वैश्विक समस्या है। ऐसे में विभिन्न देशों की जेरियाट्रिक सोसायटियों के बीच सहयोग और अनुभवों का आदान-प्रदान जरूरी है, ताकि बेहतर उपचार पद्धतियां विकसित की जा सकें।
उन्होंने सुझाव दिया कि मेडिकल शिक्षा में जेरियाट्रिक मेडिसिन को अधिक महत्व दिया जाए और ग्रामीण व शहरी दोनों क्षेत्रों में वृद्धों के लिए विशेष स्वास्थ्य सुविधाएं विकसित की जाएं, ताकि भविष्य की चुनौतियों का समय रहते सामना किया जा सके।

