कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो एक के बाद एक नए विवादों में उलझते दिख रहे हैं. पहले खालिस्तान समर्थक अलगाववादी नेता हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के मामले में भारत के हाथ होने की बात कहकर घिरना. फिर कनाडा की संसद में नाज़ियों के लिए लड़ने वाले एक बुज़ुर्ग को सम्मानित करने का मामला.
हालांकि नाज़ी समर्थक को सम्मानित करने पर जस्टिन ट्रूडो ने शर्मनाक बताया और कनाडा की संसद के स्पीकर को इस्तीफ़ा देना पड़ा.
लेकिन अब द मुस्लिम असोसिएशन ऑफ कनाडा प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो की एक टिप्पणी को लेकर उन पर बुरी तरह भड़क उठी है.
कनाडा के लोग बड़ी संख्या में 20 सितंबर को ‘वन मिलियन मार्च फॉर चिल्ड्रेन’ में शामिल हुए थे. इसमें बड़ी संख्या में वहाँ के मुसलमान थे.
कनाडा के स्कूलों में जिन लैंगिक विचारधारा को शामिल किया गया है, ये लोग उसका विरोध कर रहे हैं. वन मिलियन मार्च का आयोजन मुस्लिम अभिभावकों ने किया था.
मुस्लिम अभिभावकों का क्या कहना है?
मुस्लिम पेरेंट्स का कहना है कि स्कूलों में सेक्शुअल ओरिएंटेशन एंड जेंडर आइडेंटिटी यानी एसओजीआई को पढ़ाना बच्चों के लिए कुछ ज़्यादा ही जल्दी है.
एसओजीआई प्रोग्राम कनाडा के अल्बर्टा और ब्रिटिश कोलंबिया के स्कूलों के लिए है. इस प्रोग्राम का मक़सद है कि बच्चों की संवेदनशीलता एलजीबीटीक्यू-2 समुदाय के प्रति जागरूक रहे.
इस प्रोग्राम का विरोध करने वालों का कहना है कि इसमें चुनने का विकल्प नहीं रखा गया है. इनका कहना है कि इसे अनिवार्य करने की बजाय अभिभावकों के लिए चुनने का विकल्प होना चाहिए क्योंकि इसका कॉन्टेंट वयस्कों वाला है. इनका तर्क है कि वन मिलियन मार्च फॉर चिल्ड्रेन बच्चों को उम्र से पहले सेक्शुलाइज़ेशन से बचाने के लिए है.
एसओजीआई प्रोग्राम के ख़िलाफ़ पूरे कनाडा भर में हज़ारों माता-पिता सिटी हॉल्स और स्कूलों के बाहर जुटे थे.
दूसरी तरफ़ टीचर्स यूनियन ने इस विरोध-प्रदर्शन के जवाब में सड़कों पर अपनी एकजुटता दिखाई. कनाडाई मीडिया की रिपोर्ट्स के अनुसार, न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी के नेता जगमीत सिंह भी ओटावा में टीचर्स यूनियन के साथ एसओजीआई प्रोग्राम के समर्थन में निकले थे.
जस्टिन ट्रूडो ने भी इससे जुड़ा एक ट्वीट किया और इसे ध्रुवीकरण बढ़ाने वाली टिप्पणी के रूप में देखा गया.
ट्रूडो ने अपने ट्वीट में कहा था, ”मैं एक चीज़ स्पष्ट कर देना चाहता हूँ- ट्रांसफ़ोबिया, होमोफ़ोबिया और बाइफ़ोबिया के लिए देश में कोई जगह नहीं है. मैं इनके ख़िलाफ़ नफ़रत और विरोध प्रदर्शन की कड़ी निंदा करता हूँ. हमलोग सेक्शुअल माइनॉरिटी के पक्ष में खुलकर खड़े हैं और ये हमारे लिए वैध भी हैं और अहम भी.”
ट्रूडो के बयान पर आपत्ति
द मुस्लिम असोसिएशन ऑफ कनाडा (एमएसी) ने ट्रूडो के बयान पर आपत्ति जताते हुए कहा है कि प्रधानमंत्री की ऐसी टिप्पणी से स्कूलों में मुस्लिम बच्चों की प्रताड़ना बढ़ सकती है और उन्हें डराया जा सकता है.
एमएसी ने कहा है कि प्रधानमंत्री की टिप्पणी उत्तेजक और विभाजनकारी है. उन्हें कनाडा में रहने वाले हज़ारों पेरेंट्स से माफ़ी मांगनी चाहिए.
एमएसी ने कहा, ”हाल के प्रदर्शनों के ख़िलाफ़ स्कूल बोर्डों और नेताओं की टिप्पणी की हम कड़ी निंदा करते हैं. चिंतित अभिभावकों के शांतिपूर्ण प्रदर्शन को नफ़रत भरा बताना ख़तरनाक है. ये उनके पद की गरिमा के ख़िलाफ़ है. हमारे विरोध-प्रदर्शन को सुना जाना चाहिए न कि इसे बाँटना चाहिए. अभिभावकों को अपने बच्चों की सलामती सुरक्षित रखने का पूरा अधिकार मिलना चाहिए.”
कनाडा की संसद में नेता प्रतिपक्ष और कन्जर्वेटिव पार्टी के नेता पियर पॉलिवेयर ने भी द मुस्लिम असोसिएशन ऑफ कनाडा का समर्थन किया है.
द मुस्लिम असोसिएशन ऑफ कनाडा के बयान को रीट्वीट करते हुए पियर पॉलिवेयर ने लिखा है, ”मैं इनकी बातों से सहमत हूँ. ट्रूडो को इसे वापस लेना चाहिए और विभाजनकारी नीतियां बंद करनी चाहिए. उन्हें अतिवादी एजेंडा छोड़ देना चाहिए. कनाडा के माता-पिता अपने बच्चों को लेकर चिंतित हैं.”
कनाडा में मुसलमान
इंस्टीट्यूट ऑफ इस्लामिक स्टडीज़ के मुताबिक़, इस्लाम कनाडा में दूसरा सबसे लोकप्रिय धर्म है.
फ्यूचर ऑफ द ग्लोबल मुस्लिम पॉपुलेशन नाम की रिपोर्ट में कहा गया था कि साल 2030 तक कनाडा में क़रीब 27 लाख मुस्लिम होंगे. ये आबादी का क़रीब 6.6 फ़ीसद है.
इंस्टीट्यूट ऑफ इस्लामिक स्टडीज़ के मुताबिक, फ़िलहाल मुस्लिम कनाडा की आबादी में 4.9 फ़ीसदी की हिस्सेदारी रखते हैं. यानी क़रीब 18 लाख.
ईसाई धर्म के बाद कनाडा में सबसे ज़्यादा इस्लाम को मानने वाले लोग हैं.
न्यू कनेडियन मीडिया के मुताबिक़, कनाडा में हिंदुओं की संख्या करीब आठ लाख 30 हज़ार है. वहीं सिख क़रीब सात लाख हैं.
न्यू कनेडियन मीडिया ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि कनाडा की आबादी के क़रीब एक तिहाई लोग यानी एक करोड़ 20 लाख लोग किसी धर्म को नहीं मानते.
सीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक़ बीते 20 सालों में ऐसे लोगों की संख्या दोगुनी से ज़्यादा हुई है. 2001 में ये संख्या क़रीब 16 फ़ीसदी थी, अब 2021 में ये संख्या 34 फ़ीसदी है.
Compiled: up18 News
Discover more from Up18 News
Subscribe to get the latest posts sent to your email.