परवरिश एक ऐसा शब्द है जिसको सुनते ही मन में वात्सल्य की भावना आती है इसका अर्थ है किसी बच्चे का लालन-पालन करना. एक अच्छा पालन-पोषण बच्चे के शारीरिक, मानसिक, और भावनात्मक विकास के लिए आवश्यक है. आजकल की भागदौड़ भरी जिंदगी में माता-पिता को अपने बच्चों के साथ समय बिताने के लिए कम समय मिल पाता है. पहले के समय में जिस तरह की पैरेंटिंग बच्चों को मिला करती थी आज के भाग-दौड़ भरी जिंदगी में ऐसा होना बहुत मुश्किल हो चुका है. नेशनल क्राइम ब्यूरो के आंकड़ों के हिसाब से साल 2011 की तुलना में 2021 में 21 परसेंट आत्महत्याओं में इजाफा हुआ है. मरने वालों की संख्या में 70 परसेंट सिर्फ विद्यार्थी हैं. आइए जानते हैं कि क्यों और किन मुख्य कारणों से आजकल के बच्चों का जीवन प्रभावित हो रहा है.
स्क्रीन टाइम एक समस्या
बच्चों के लालन-पालन को प्रभावित करने में सबसे बड़ा कारण है स्क्रीन टाइम, इंटरनेट की वजह से पेरेंट्स की अस्त-व्यस्त दिनचर्या. ऐसा नहीं है कि इंटरनेट के फायदे नहीं हैं लेकिन गैजेट्स जिस तरीके से रील और तमाम सोशल मीडिया के माध्यम से हमारे जीवन में दखल दे रहें हैं, ये डेली लाइफ का हिस्सा बन चुके हैं. जिसके वजह से दबे पांव कब जीवन में समस्याएं दखल देने लगती हैं. आपको जानकर आश्चर्य होगी कि खुशहाल लोग दुखी लोगों से कम स्क्रीन देखते हैं. एक अध्ययन में भी पता चला है कि स्क्रीन पर ज्यादा टाइम देने के बाद उनके अवसाद में जाने की आशंका अधिक हो जाती है. ऐसा नहीं है ये स्क्रिन टाइम सिर्फ पेरेंट्स को ही प्रभावित करता है, बल्कि बच्चों पर भी इसका बहुत नेगेटिव इंपैक्ट करता है.
सफलता की अंधी दौड़
आजकल के समय में सफलता की दौड़ बहुत तेज हो गई है. हर गुजरते दिन के साथ कंपटीशन और बढ़ता जा रहा है. माता-पिता चाहते हैं कि उनके बच्चे हर क्षेत्र में सफल हों इसलिए वे उन्हें बचपन से ही बहुत दबाव देते हैं. इससे बच्चों का मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित होता है. ऐसा नहीं है कि बच्चों को सफलता के लिए प्रयास नहीं करना चाहिए, कोशिश करना हो सफल होना एक बहुत सुखद अनुभव महसूस करती है. लेकिन एक हेल्दी व्यक्ति के लिए क्षमता, प्रयास और सफल होने का दबाव के बीच एक संतुलन होना बहुत जरूरी होता है. जर्नल ऑफ इंडिया एसोसिएशन फॉर चाइल्ड एंड एडोलसेंट मेंटल हेल्थ की अध्ययन में पता चला है कि 51 फीसद बच्चे एंग्जाइटी जैसी समस्याओं से परेशान हैं.
बाजार हावी हो रहा है
आजकल बाजार हमारे जीवन पर हावी हो रहा है. आकर्षक विज्ञापनों से प्रभावित होकर अक्सर माता-पिता अपने बच्चों को महंगी चीजें खरीदने में ज्यादा ध्यान देते हैं, जबकि उनके बच्चों के मानसिक विकास पर ध्यान नहीं देते हैं. एक समय हुआ करता था जब बच्चे घरों पर बुढ़े बुजुर्गों की कहानियां सुना करते थे. आज ज्यादातर बच्चों का बचपन मोबाइल, इंटरनेट, रील में उलझ कर रह गया है. हालांकि ये सच है कि बच्चे इंटरनेट और गैजेट की मदद से आधुनिकता से जुड़ते हैं, लेकिन एक शोध में पता चला है कि इन महंगे गैजेट्स का ज्यादातर बच्चों पर नेगेटिव इंपैक्ट पड़ता है.
एकल परिवार होना एक बड़ा कारण
एकल परिवारों में माता-पिता दोनों ही काम करते हैं. ऐसे में उनके पास बच्चों के साथ पर्याप्त समय बिताने का मौका नहीं मिल पाता है. अकेले होने की वजह से बच्चों के पास गैजेट्स से खेलने के अलावा और कोई ऑप्शन नहीं रह जाता है. वे परंपरागत खेलों को ज्यादा नहीं सीख पाते हैं. कई बच्चे तो ऐसे होते हैं की उनको परंपरागत खेलों के बारे में नाम तक नहीं मालूम होता है. फ्लैट कल्चर होने की वजह से आज-कल के बच्चों में मोटापा दिखना भी बहुत सामान्य हो गया है. इतना ही नहीं पहले की तुलना में बहुत से बच्चों की स्वास्थ में गिरावट आई है. इसका सबसे बड़ा उदाहरण ये है कि आजकल बहुत बच्चों का बचपन से ही चश्मा पहन अनिवार्य हो जाता है.
सामाजिक दूरी होना भी वजह
आजकल की भागदौड़ भरी जिंदगी में लोग एक-दूसरे से दूर होते जा रहे हैं. इससे बच्चों को अपने पड़ोसियों, रिश्तेदारों, और दोस्तों से मिलने का मौका कम मिलता है. इससे बच्चों के सामाजिक विकास में बाधा आ सकती है. पहले बच्चे जब दादा-दादी, चाचा-चाची, बुआ के बीच में रहते थे. लेकिन फ्लैट कल्चर आने की वजह से आज ऐसा होना बहुत मुश्किल हो चुका है. परिवार के सभी लोगों को एक साथ रहने से बच्चों का सर्वांगीण विकास होता है. इसलिए छुट्टियों में उन्हें कोशिश करें की सभी लोगों से मिलाएं. संभव हो तो समय-समय पर बच्चों को वीडियो कॉल के माध्यम से समय-समय पर बात कर लिया करें.
-एजेंसी