स्थानीय पारंपरिक लोककथाओं के अनुसार देवी सीता अपने वनवास और भगवान राम से अलग होने के दौरान यहां एक आश्रम में रही थीं। ये पवित्र अजोबा हिल के रूप में प्रसिद्ध है और ये जगह इसलिए भी पॉपुलर है क्योंकि यहां उन्होंने लव-कुश का पालन-पोषण किया था। यह भी माना जाता है कि पहाड़ी पर संत वाल्मीकि की समाधि हर साल पहाड़ी के आकार को बदल देती है।
श्चिमी घाट की सह्याद्री रेंज में अजोबा पहाड़ी समुद्र तल से 4511 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। आधार गांव शाहपुर तालुका में देहाइने है। मराठी में अजोबा या “दादाजी” के रूप में जाना जाने वाला पहाड़, वो जगह है जहां महर्षि वाल्मीकि रहा करते थे और जहां लव और कुश का पालन-पोषण हुआ था। कहा जाता है कि यही वो जगह है, जहां महर्षि वाल्मीकि ने लव और कुश को शिक्षित किया था। आपको बता दें कि वाल्मीकि की समाधि वाल्मीकि आश्रम में स्थित है। लव कुश की गुफाएं ऊंचाई पर स्थित हैं, जहां आपको थोड़ी ढलान दिखाई देगी, यहां के पालने को सीता चा पालना के नाम से भी जाना जाता है।
स्थानीय लोककथा के अनुसार देवी सीता अपने वनवास के दौरान भगवान राम से अलग होने के बाद यहां रुकी थीं। देवी सीता अपने जुड़वां बच्चों लव और कुश के साथ यहां रहा करती थीं।
मुंबई से अजोबा हिल्स कैसे पहुंचें?
मुम्बईवासियों को अजोबा ट्रैक तक देहाने बेस गांव जाने के लिए लोकल ट्रेन सबसे सस्ती पड़ेगी। आप आसनगांव रेलवे स्टेशन से प्राइवेट रिक्शा, राज्य परिवहन बस या शेयरिंग जीप ले सकते हैं, जो आपको देहाने गांव पहुंचा देगी। इसके बाद देहेन से शाहपुर के लिए बस लेनी पड़ेगी।
अजोबा-लव कुश ट्रैकिंग का अनुभव
अजोबा हिल की चोटी पर कुछ भी नहीं है, जिस वजह से ज्यादातर ट्रेकर्स दाहिनी ओर ट्रेक करते हैं जहां सीता चा पालना स्थित है। लव एंड कुश गुफा या सीता चा पालना ट्रैक आखिरी पॉइंट है और समुद्र तल से लगभग 2300 फीट की ऊंचाई पर है। दाहिनी ओर के पहाड़ पर और उसके ऊपर सीता चा पालना स्थित है और जिस गुफा में लव-कुश की नक्काशी की गई है, वहां एक चट्टान भी दिख जाएगी। वाल्मीकि के आश्रम के लिए ट्रैक का दूसरा भाग बहुत ही खड़ी चट्टानी इलाके के साथ है, जो की काफी मुश्किल है। वहां पहुंचकर आपको कई कथाएं खुदी हुई दिखेंगी।
-एजेंसी