आगरा। ”बंदरों के खतरे ने आगरा शहर को त्रस्त कर दिया है जहां पर्यटकों और स्थानीय लोगों को बंदर समान रूप से परेशान करते पाए जाते हैं जिसके परिणामस्वरूप निवासियों को गंभीर चोटें और कीमती सामान का नुकसान हो रहा है। कभी-कभी बंदरों के हमले के कारण युवा और वृद्धों की मौत हो गई। जनहित याचिका के माध्यम से न्यायालय के हस्तक्षेप से बन्दरों को दूर करना चाहते हैं क्योंकि विशेष रूप से इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि अधिकारीगण इस समस्या के समाधान में विफल रहे हैं।”
यह बात न्यायमूर्ति प्रतींकर दिवाकर एवं न्यायमूर्ति आशुतोष श्रीवास्तव की इलाहाबाद उच्च न्यायालय की खण्डपीठ ने अभी हाल में दिनांक 19 जुलाई को जनहित याचिका सं0 1207 वर्ष 2022 का संज्ञान लेते हुए अपने आदेश में कही। यह याचिका आगरा के वरिष्ठ अधिवक्ता के0सी0 जैन एवं समाजसेवी प्रशान्त जैन द्वारा प्रस्तुत की गयी थी। न्यायालय ने राज्य सरकार एवं नगर निगम आगरा सहित बनाये गये 9 विपक्षीगण को नोटिस जारी करते हुए 17 अगस्त नियत की है।
बढ़ते बन्दर और दुःखद घटनायेंः
अधिवक्ता जैन द्वारा बताया गया कि जनहित याचिका में यह उल्लेख किया गया कि आगरा शहर में 30,000 से अधिक बन्दर हैं जिनकी संख्या पिछले दशक में काफी तेजी से बढ़ी है और बन्दर अब आगरा में बड़े-बड़े झुण्ड बनाकर घूमते हैं। बन्दरों के आक्रमण व उनके खाने से हजारों लोग घायल हो चुके हैं और अनेकों व्यक्तियों की मृत्यु भी हो गयी। नवम्बर 2018 में ग्राम रूनकता में बन्दर मां की गोद से बच्चे को छीनकर ही ले गया जिससे अबोध बच्चे की मृत्यु हो गयी। माईथान के हरीशंकर गोयल की मृत्यु बन्दरों के आक्रमण से जुलाई 2019 में हो गयी। मार्च 2020 में उस्मान बन्दरों के कारण अपनी छत से गिरकर मर गया। अक्टूबर 2020 में भी दो व्यक्तियों की मौत हो चुकी है। इन सब अनेकों घटनाओं के बावजूद भी नगर निगम व वन विभाग बन्दरों की समस्या के समाधान के लिए कोई प्रभावी हल नहीं ढूँढ सका है। यही नहीं, बन्दर आये दिन विश्वदाय स्मारक ताजमहल में भी यात्रियों पर हमला कर देते हैं और बन्दरों की शिकार महिलाऐं व बच्चे अक्सर हो जाते हैं। जिला अस्पताल व एस.एन.मेडीकल कॉलेज में बन्दर के काटे लोग प्रतिदिन इलाज के लिए पहुंचते हैं। बन्दरों की खबर को मीडिया भी प्रमुखता से समय-समय पर प्रकाशित करती आयी है।
बन्दर है संरक्षित वन जीवः
अधिवक्ता जैन ने यह भी बताया कि वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 के परिशिष्ट-2 की प्रविष्टि 17ए के अनुसार बन्दर वन्य जीव है और संरक्षित है। अतः वन विभाग एवं नगर निगम इस समस्या का समाधान खोजने के लिए जिम्मेदार हैं। राज्य सभा में भी आगरा, मथुरा, लखनऊ, वृन्दावन आदि शहरों की बन्दरों की समस्या को लेकर 7 अप्रैल 2022 को प्रश्न उठा था जिसमें समस्या को स्वीकार करते हुए यह भी बताया गया था कि केन्द्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण द्वारा मथुरा एवं हलद्वानी में मंकी रेस्क्यू सेन्टर बनाने की अनुमति प्रदान की जा चुकी है।
जनहित याचिका में चाहा हैः
याचिका में यह चाहा है कि आगरा शहर के बन्दरों के लिए केन्द्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण की अनुमति लेते हुए वन क्षेत्र में मंकी रेस्क्यू सेन्टर की स्थापना की जाये जहां पर बन्दरों के पीने के पानी की पर्याप्त व्यवस्था हो व गूलर, पाखड़, पीपल, बरगद व दतरंगा आदि फलदार वृक्ष हों और वहां पर विलायती बबूल न हो और यदि हो तो उसे हटा दिया जाये। बन्दरों को सुरक्षित व वैज्ञानिक ढंग से समयबद्ध रूप में इन रेस्क्यू सेन्टर में ले जाया जाये औैर इन रेस्क्यू सेन्टर के चारो ओर रोक भी हो व यह रेस्कयू सेन्टर साफ-सुथरे व गन्दगीरहित हो जिनके लिए समुचित फण्ड की व्यवस्था राज्य सरकार व नगर निगम करे। बन्दरों के स्वास्थ्य को लेकर भी वेटरनिटी डॉक्टर समय-समय पर उन्हे देखे और उनके लिए पर्याप्त खाने की व्यवस्था हो। गैर-सरकारी संस्थाओं का सहयोग भी लिया जाये और एक ओवरसाइट कमेटी भी बनाई जाये। नगर निगम अपनी उपविधियों में परिवर्तन कर बन्दरों को शहर में खाने-पीने की वस्तु देने पर रोक लगाये जैसा शिमला नगर निगम द्वारा लगाया गया है और डलावघरों को नगर-निगम ढक कर रखे। नागरिक हेल्पलाइन भी इस सम्बन्ध में बनायी जाये।
मृतक के उत्तराधिकारियों व घायलों को दें क्षतिपूर्तिः
संयुक्त याचिकाकर्ता प्रशान्त जैन ने बताया कि याचिका में इस बात की मांग भी की गयी है कि पर्यावरण व वन मंत्रालय द्वारा अपने आदेश दिनांक 09 फरवरी 2018 के द्वारा जानवरों के कारण लोगों की हुयी मृत्यु अथवा लगी चोट के लिये धनराशि निर्धारित की गयी है जो कि मृत्यु होने की दशा में रूपये पांच लाख, गंभीर चोट होने पर रूपये दो लाख एवं मामूली चोट होने पर रूपये पच्चीस हजार है। यह राशि केन्द्र सरकार की वन संरक्षण योजना के अन्तर्गत दी जानी चाहिए किन्तु विगत में कोई भी राहत राशि प्रशासन या नगर निगम द्वारा इस योजना के अन्तर्गत नहीं दी गयी है। इस आदेश के आधार पर याचिका में यह आदेश चाहा गया है कि उच्च न्यायालय द्वारा उक्त आदेश को लागू किया जाये।
याचिकाकर्ताओं ने आशा व्यक्त की कि इससे पहले यह समस्या और अधिक विकराल हो जाये न्यायालय के हस्तक्षेप से व सभी विभागों के समन्वय से बन्दरों की बढ़ती समस्या का कारगर हल ढूँढा जा सकेगा। उच्च न्यायालय में याचिका की पैरवी अधिवक्ता राहुल अग्रवाल के द्वारा की गयी जिन्होंने कहा कि वे यह पूरे प्रयास करेंगे कि याचिका यथाशीघ्र निर्णित हो सके।
-एजेंसी
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