मेघालय की सीमा पर स्थित डाउकी शनोंगपेडेंग में शीशे-सी चमकती स्वच्छ-पारदर्शी नदी डाउकी बहती है यहाँ | यहाँ की अनोखी स्थानीय संस्कृति के बारे में जान कर और उसे देख कर अचरज से भर जायेंगे| आइये चले डाउकी शनोंगपेडेंग के शानदार सफर पर |
पानी इतना साफ़ कि उसके गहरे तल को भी साफ-साफ देखा जा सकता है | उसमें चलने वाली नाव हवा में लटके रहने का एहसास कराती हैं | जहाँ मौजूद पत्थरों पर प्रकृति द्वारा की गई चित्रकारी नजर आती है| चौंक गए न ! आज के समय में, जब हम हर प्रदूषण और गन्दगी का साम्राज्य देख रहे हैं, हो सकता है कि ऐसी बातें आपको कपोल-कल्पित लगें, लेकिन उत्तर-पूर्व में ऐसी जगहों की कमी नहीं, जहाँ ऐसी कल्पनायें साकार नजर आती हैं | उत्तर-पूर्वी राज्य मेघालय की सीमा पर स्थित डाउकी और शनोंगपेडेंग ऐसे ही इलाके हैं | यहाँ की सबसे ख़ास बात यह है कि आप यहाँ ऊपर भारत और नीचे बांग्लादेश का दीदार कर सकते हैं |
कुदरत का समृद्ध रूप
पश्चिमी जयंतिया पहाड़ियों में बसे ये इलाके प्रकृति के अद्धभुत उपहार हैं | इसका अंदाजा आप यहाँ शिलांग से बाहर निकलते ही लगा सकते हैं | ऊँची-ऊंची पहाड़ियों के बीच बलखाती सड़क और पेड़ पौधों की कच्ची गंध इस अनछुहे इलाके में आपका स्वागत करती है | पक्षी प्रेमी हैं तो यहाँ आना और सार्थक लगेगा | रंग-बिरंगे पक्षी अपने मधुर कलरव आपका मन मोह लेते हैं | थोड़ा ठहरकर आप यहाँ का सौंदर्य निहारना चाहें तो दूर तक लहरदार पहाड़ियों को निहारने में ही घंटो लग सकते हैं | उन रास्तों पर बसे गांव पहाड़ों के सलोने बच्चों के समान लगते हैं, जहां से पूर्वोत्तर की आम जिंदगी चमकती दिखती है | रास्ते के दोनों ओर पहाड़ियों की ऊँची-नीची श्रृंखलाएं हैं | जहाँ-जहाँ वे नीची होती हैं, वहां-वहां रंग-बिरंगे फूल मिलते हैं | दूर-दूर तक घास वाली पहाड़ियां बहुत ही आकर्षक लगती है | यदि शाम को डाउकी पहुँचते हैं तो ऊपर से नीचे देखने पर अद्भुत दृश्य उपस्थित होता है | नीचे स्थित घरों से आने वाली रोशनी छोटे-छोटे तारों से छिटकी हुई लगती है |
अंतिम छोर पर पहुँचने का रोमांच
अपने देश के अंतिम छोर पर पहुँचने का रोमांच अलग होता है | जब अपनी सीमा में रहते हुए दूसरे देश के जन-जीवन दिखे तो वह बात और ख़ास होती है | इस रोमांच को अनुभव करने के लिए डाउकी मुफीद जगह है | डाउकी बॉर्डर भारत और बांग्लादेश में तमाबील के बीच भारत-बांग्लादेश की यह दूरी शून्य हो जाती है | भारत से बांग्लादेश को कोयले की आपूर्ति के लिए इसी सीमा का प्रयोग किया जाता है | शनोगपेडेंग के झूलते हुए पुल से लेकर डाउकी की ऊंचाई से बांग्लादेश है | यह शांत अंतराष्ट्रीय सीमा है, जहाँ से एक-दूसरे देश की समानता और अंतर को महसूस करना एक रोमांच अनुभव हो सकता है |
स्वच्छता की सामूहिक जिम्मेदारी
इन इलाकों को भले ही एशिया के सबसे स्वच्छ गाँव का प्रमाणपत्र न मिला हो, लेकिन यहाँ की स्वच्छता किसी का भी ध्यान आकर्षित कर सकती है, इसे सचमुच यहाँ देख सकते हैं | यहाँ के लोग अपने घर और आसपास को ही साफ़ नहीं रखते, बल्कि घरों से निकले कूड़े के निपटान की व्यवस्था भी रखते हैं | सामूहिक साफ़-सफाई का बेमिसाल उदहारण है डाउकी नदी और इसका खूबसूरत तट | स्वच्छता को लेकर लेकर यहाँ के लोग स्व-अनुशाषित और स्व-प्रेरित हैं |
उन्मुक्त और खुशनुमा जीवन : डाउकी – शनोगपेडेंग के गाओं के बीच ट्रैकिंग के लिए काफी बढ़िया जगह हैं | ट्रैकिंग करते हुए प्राकृतिक छटा के अतिरिक्त जो बात ध्यान खींचती है, वह है यहाँ के स्थानीय निवासियों का उन्मुक्त खुशनुमा जीवन | पान से लाल होठों पर मुस्कान होती है और पर्यटकों के लिए खुला दिल | अपने खेतों में, सड़क पर कठिन परिश्रम करते हुए भी उनको इस तरह खुश देखकर बाकी लोग भी खुश हो जाते हैं |
कैम्पिंग व् क्याकिंग का लुफ्त : डाउकी व् शनोगपेडेंग में नदी के किनारे कैम्पिंग का आनंद उठाया जा सकता है | यहाँ स्थानीय लोगों द्वारा कैम्पिंग करवाई जाती है, लेकिन इसके लिए स्थानीय ग्राम समिति से अनुमति लेनी होगी | यहाँ क्याकिंग भी कर सकते हैं |
ऐसा नजारा जैसे प्रकृति का कोई चमत्कार हो
डाउकी और उन्मगोट, दोनों एक ही नदी के नाम हैं | इस नदी के बिना यहाँ की बात पूरी नहीं होती | दो पहाड़ों के बीच बहती नदी की धारा एशिया की सबसे स्वच्छ नदी की धारा है | इसकी सबसे बड़ी खासियत है इसका साफ़ पारदर्शी पानी | पानी भी ऐसा शीशे की तरह कि नदी की तली बिलकुल स्पष्ट दिखाई देती है | इससे इस नदी के विभिन्न भागों पर तैर रही नावें हवा में लटकी हुई प्रतीत होती हैं | यह अनुभव भारत के लिए बिलकुल अनूठी बात है | यही कारण है यहाँ आने वाले लोग इस नदी के इस रूप का आनंद उठाना नहीं भूलते | स्थानीय लोग भी अपनी नावों में पर्यटकों और यात्रियों को अविसमारिण्य अनुभव प्रदान कराने को तैयार रहते हैं | नदी उनकी आजीविका के मुख्य साधन के रूप में भी है | यह नदी खासी और जयंतिया की पहाड़ियों की प्राकृतिक विभाजन रेखा है | यहाँ मार्च-अप्रैल में नौकादौड़ का आयोजन भी होता है | पहाड़ियों के बीच नदी पारदर्शी हरे रंग की विशाल नागिन की भांति बलखाती हुई मालूम होती है | इसका सौन्दर्य न सिर्फ पहाड़ों को बांधे रखता है, बल्कि भारत और बांग्लादेश के लोगों के जीवन के खूबसूरत हिस्सों को जोड़े रखता है |
जब आप नाव पर सवार होकर नदी की सतह पर उतरते हैं तो ऐसा लगता है, जैसे प्रकृति का कोई चमत्कार देख रहे हों | नदी तल से पंद्रह-बीस फ़ीट की दूरी के बाबजूद आप तली को साफ़ देख सकते हैं | ऐसा लगता है कि नदी के तल और नाव के बीच कोई तरल पारदर्शी शीशा लगा हो |
नदी सतह पर पर सूरज की छाया
एक नाव में एक बार में अधिकतम चार लोगों को बिठाया जाता है | एक घंटे की इस यात्रा में आपको एक छोटे से द्वीप पर भी ले जाया जाता है | वह द्वीप अपने छोटे-छोटे सुघड़ पत्थरों के लिए प्रसिद्ध है | लोग डाउकी की निशानी के रूप में इन पत्थरों को ले जाते हैं | इस नदी के छिछले हिस्से में आप नाव से उतरकर तैर भी सकते हैं, क्योंकि यहाँ तक आते-आते नदी के भीतर का वहाव भी धीमा हो जाता है | जब आप पानी में होते हैं तो छोटी-छोटी मछलियां आपके साथ तैरती हुई मिलती हैं | ये छोटी-छोटी मछलियां आपके पैर में गुदगुदी करती हैं | इस नदी की सतह पर बनने बाली सूर्य की छाया भी देख सकते हैं | ऐसा नज़ारा आप देश की किसी और नदी में नहीं पा सकते |
– एजेंसी
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