क्रायोप्रिजर्वेशन: क्या मरे हुए लोग दुबारा जिंदा होंगे?

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काम तापमान में हर तरह की रासायनिक और जैविक गतिविधियां बंद हो जाती है और कोशिकाएं संरक्षित की जा सकती है। अत्यधिक काम तापमान कोशिकाओं में बर्फ बन सकती है इसलिए इस तकनीक में क्रायो-प्रोटेक्टान्ट्स नमक पदार्थो की परत का इस्तेमाल संरक्षित की जाने वाली कोशिकाओं को सुरक्षित करने के लिए किया जाता है । व्यावसायिक स्तर पर इसका इस्तेमाल महिलाओ के एम्ब्र्यो , एग्स और पुरुषो के शुक्राणु संरक्षित करने में होता है और बाकी शोध के लिए फंगस, बैक्टीरिया आदि के लिए भी होता है।

Cryopreservation की प्रक्रिया इससे बहुत अलग है. यह प्रक्रिया किसी व्यक्ति की कानूनी रूप से मौत की घोषणा के बाद शुरू होती है. मरीज के शरीर से खून और दूसरे तरल निकाल दिये जाते हैं और उनकी जगह एक खास रसायन भर दिया जाता है. यह रसायन खासतौर से इसलिए तैयार किया गया है कि वह नुकसान पहुंचाने वाले बर्फ के कणों का बनना रोके. बेहद ठंडे तापमान पर शरीर को कांच जैसा बनाने के बाद मरीजों को एरिजोना के केंद्र में टैंकों के अंदर रख दिया जाता है. मूर का कहना है “उन्हें यहां तब तक रखा जायेगा जब तक कि तकनीक विकसित नहीं हो जाती.”

अमेरिका के एरिजोना में कुछ लोगों के लिए समय और मौत “ठहर” गई है. तकनीक बेहतर होगी तो उनकी बीमारियां ठीक होंगी और वो दोबारा जिंदा होंगे. इस उम्मीद में लोगों ने अपने शव सुरक्षित रखवाये हैं.

टैंकों के भीतर तरल नाइट्रोजन भरी है और साथ में रखे हैं शव और सिर. एक दो नहीं पूरे 199. ये वो लोग हैं जिनके दोबारा जिंदा होने की उम्मीद ने इस हाल में रखा है. इस तरह शवों को रखने वाले उम्मीद कर रहे हैं कि भविष्य में विज्ञान इतना विकास कर लेगा कि ये लोग फिर से जिंदा होंगे.

शवों को इस तरह रखने का प्रबंध करने वाली एल्कोर लाइफ एक्सटेंशन फाउंडेशन इन लोगों को “मरीज” कहती है. इन लोगों की जान कैंसर, एएएलएस या फिर इसी तरह की किसी बीमारी से गई जिसका आज इलाज मौजूद नहीं है. इस तरीके से सुरक्षित रखे शवों क्रायोप्रिजर्व्ड कहा जाता है.

इन मरीजों में सबसे कम उम्र की हैं माथेरिन नाओवारातपोंग. 2 साल की उम्र में इस थाई बच्ची की ब्रेन कैंसर से 2015 में मौत हो गई. एल्कोर के मुख्य कार्यकारी अधिकारी मैक्स मूर बताते हैं, “उसके मां बाप डॉक्टर थे और उसके दिमाग की कई बार सर्जरी की गई लेकिन दुर्भाग्य से कुछ काम नहीं आया. तो उन लोगों ने हमसे संपर्क किया. गैरलाभकारी फाउंडेशन का दावा है कि वह क्रायोनिक्स की दुनिया में सबसे आगे है. बिटकॉइन के अगुआ हल फिने भी एल्कोर के मरीज हैं. 2014 में उनकी मौत के बाद उनका शव भी इसी तरह यहां रखा गया है.

मिस्र में हजारों साल पहले मृत्यु के बाद लोगों के शवों को सुरक्षित रखने की परंपरा रही है. राजा, राजपरिवार के सदस्य और दूसरे प्रमुख लोगों के शवों की ममी बना कर उन्हें सुरक्षित रखा जाता था. इसके पीछे धारणा यह थी कि इन लोगों की आत्मा को मृत्यु के बाद अच्छा जीवन मिल सके. ममी बनाने के लिए दिल को छोड़ कर शरीर के अंदरूनी अंगों को बाहर निकाला जाता था. बाहर निकाले जाने वाले अंगों में दिमाग भी शामिल था. इसके बाद शव को सोडियम कार्बोनेट, सोडियम बाइ कार्बोनेट, सोडियम क्लोराइड और सोडियम सल्फेट के एक घोल की मदद से सुखा दिया जाता. इसके बाद बारी आती थी इसके अंदर कई तरह के मसाले भर कर उन्हें सुरक्षित करने की.

लाखों डॉलर का खर्च

इस तरह यहां रखने पर पूरे शरीर के लिए कम से कम 2 लाख डॉलर का खर्च आता है. केवल दिमाग के लिए यह खर्च 80,000 डॉलर है. एल्कोर के 1,400 जीवित सदस्य इसका भुगतान जीवन बीमा की योजनाओं में कंपनी को बेनिफिशियरी बना कर करते हैं. कंपनी को सिर्फ उतने ही पैसे मिलते हैं जितना इसका खर्च है. मूर की पत्नी नताशा विटा मूर इस प्रक्रिया को पसंद करती हैं और इसे भविष्य की यात्रा मानती हैं. उनका कहना है, “बीमारी या चोट का इलाज होता है या उन्हें ठीक किया जाता है और आदमी को नया शरीर या फिर पूरा नकली शरीर मिलता है या फिर उनके शरीर को दोबारा तैयार किया जाता है जिसके बाद वो अपने दोस्तों से फिर मिल सकते हैं.”

मेडिकल क्षेत्र में काम करने वाले बहुत से लोग इस बात से सहमत नहीं हैं. न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी के ग्रोसमान स्कूल ऑफ मेडिसिन के मेडिकल एथिक्स डिविजन के प्रमुख आर्थर काप्लान भी उनमें शामिल हैं. काप्लान का कहना है, “भविष्य के लिए खुद को जमा देने का ख्याल किसी साइंस फिक्शन जैसा है और यह बहुत भोलापन है. सिर्फ एक ही ऐसा समूह है जो इसकी संभावना को लेकर बहुत उत्साहित है, ये वो लोग हैं जो सुदूर भविष्य को पढ़ते हैं या फिर वो जिनकी इस बात में दिलचस्पी है कि आप इसके लिए पैसा दें.”

-एजेंसी