घुटता मानवाधिकार…आज कल में घटित तीन घटनाओं पर डालें नजर ….

अन्तर्द्वन्द
आभा शुक्ला
आभा शुक्ला

पहली – चंचल त्रिपाठी मंदिर में गोमांस रखवा दिया ताकि दंगे हो ….और थाना प्रभारी हट जाए….मुसलमानों के 3 मांस दुकान और लकड़ी के 17 खोखे जला दिए इसी बात पर हिंदुओं ने…..बेगुनाह मुस्लिमों को जेल में ठूंस दिया गया…..मुंबई के विष्णु विभु भौमिक ने खुद को अफजल बताकर अम्बानी परिवार को 8 कॉल किये और कहा सबको मार देंगे….अब पकड़े जाने पर उन्हें मानसिक विक्षिप्त बता रहा है….कमाल है विक्षिप्त अवस्था में उन्हें अफजल बनना याद रहा …और विक्षिप्त रहकर ही वे ज्वेलरी शॉप भी चला रहे हैं…..चंचल त्रिपाठी भी विक्षिप्त बन जाएंगे मेडिकल हिस्ट्री में….हिंदुओं को झूठमुठ का मुसलमान बनने का कितना फायदा है?…. लेकिन असली मुसलमान के साथ क्या होता है उसकी बानगी देखिए दूसरी घटना में….

दूसरी – Zaid Pathan भाई कल सुबह तिरंगा लेकर घर से निकले… फोटो भी सोशल मीडिया पर अपलोड किया… उन्हें क्या पता था कि स्वतंत्रता दिवस पर मध्य प्रदेश पुलिस उनकी स्वतंत्रत छीनने की तैयारी में थी…. कल ही जैद भाई को रासुका के तहत गिरफ्तार कर लिया गया…. खरगौन हिंसा में जब एक मौत का सच पुलिस छुपा रही थी तो पोस्टमार्टम के बाद का वीडियो उजागर कर उन्होंने पुलिस की कार्यवाही पर सवाल उठाए थे… शासन का मानना है कि उन्होंने ऐसा कर सामाजिक सौहार्द बिगाड़ने का प्रयास किया था…( चंचल त्रिपाठी पर रासुका नही लगेगा देख लेना)

तीसरी – आपको बिल्किस बानो याद है न… गुजरात में 2002 में हुए दंगों के बाद बिलकिस बानो के साथ गैंग रेप किया गया था.. इस दौरान अहमदाबाद के रंधिकपुर में रहने वाली बिलकिस बानो के परिवार के सात लोगों की हत्या कर दी गई थी….मामले में आजीवन कारावास की सजा पाए 11 लोगों को रिहा कर दिया गया…. इन दोषियों में से एक ने रिहाई के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था….कोर्ट ने रिहाई का फैसला गुजरात सरकार पर छोड़ दिया था….अब गुजरात सरकार ने रिहाई का निर्णय ले लिया है….

( लोग मुझे मेरे मुस्लिम प्रेम के लिए कोसते हैं… सब कोसते हैं… संघी भी, कम्युनिस्ट भी,अंबेडकरवादी भी,समाजवादी भी…. आप खुद सोचिए,ये कितने दोयम दर्जे के नागरिक बना दिए गए हैं… कोई वजह नही है लोगों के पास इनसे घृणा करने की पर फिर भी घृणा है…
देश में कुछ जातिवाद से ग्रसित हैं, कुछ असमानता से ग्रसित हैं, कुछ गरीबी से ग्रसित हैं पर फिर भी उनके मानवाधिकार सलामत हैं,उनके लिए बात होती है,उनके नाम पर राजनीति होती है, उनके लिए लोग बोलते हैं… पर आदिवासी और मुसलमान ये दो ऐसे हैं जिनका कोई मानवाधिकार सलामत नही है, जिनके लिए कोई आवाज नहीं उठती… उठती है तो आतंकवादी और नक्सलवादी होने की आड़ में दबा दी जाती है… आप सोचकर देखिए… अपने भीतर इनका दर्द टटोलिए… फिर मुझपर आरोप लगाइए… मै सुनूंगी भी और मानूंगी भी…)

-आभा शुक्ला ( लेखक स्वतंत्र पत्रकार है )


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