‘हाईकमान’ संस्कृति, लोकतांत्रिक मूल्यों का निरादर

एक बार राष्ट्रीय पार्टी के राज्य में सत्ता हासिल करने के बाद मुख्यमंत्री के चयन में पार्टी आलाकमान के पास असंगत रूप से बड़ा विवेक होता है, राज्य के विधायकों को इस संबंध में बहुत कम या कोई अधिकार नहीं होता है। यह प्रथा उस संवैधानिक जनादेश का अपमान करती है जो बहुमत पार्टी के […]

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हमारे रिश्तों के दुश्मन बनते मोबाइल फोन

मोबाइल बन रहे रिश्तों में दरार की वजह? मोबाइल फोन के अनुचित उपयोग के कारण आपसी रिश्तों को हो रहा नुकसान। सोचिए आज क्यों मोबाइल बन रहे रिश्तों में दरार की वजह? कोई माने या न माने, वास्तविकता में मोबाइल के हद से ज्यादा उपयोग से सामाजिक रिश्तों में हम सब की दिक्कतें बढ़ी हैं। […]

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शिक्षा के पूरे तंत्र पर भ्रष्टाचार का बोलबाला, गिर रहा अभिभावकों का सरकारी स्कूलों पर भरोसा

हालिया अध्ययन ने पुष्टि की है कि शिक्षा की खराब गुणवत्ता के कारण माता-पिता को सरकारी स्कूलों पर भरोसा नहीं है और वे अपने बच्चों को निजी स्कूलों में दाखिला दिलाना पसंद करते हैं, भले ही इसके लिए उन्हें ट्यूशन और अन्य फीस पर काफी अधिक खर्च करना पड़े। आज देश भर के सरकारी स्कूल […]

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बढ़ते हुए तलाक कर रहे सामाजिक ताने-बाने ख़ाक

पश्चिमी मीडिया और वैश्वीकरण के प्रभाव ने भारतीय समाज की प्रेम और रिश्तों की धारणा को प्रभावित किया है। युवा पीढ़ी पारंपरिक पारिवारिक अपेक्षाओं की तुलना में व्यक्तिगत खुशी और अनुकूलता को प्राथमिकता देने लगी है, जिसके कारण जब उनकी शादी में संतुष्टि नहीं मिलती है तो वे तलाक को एक व्यवहार्य विकल्प के रूप […]

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डॉक्टरी बना कारोबार, ‘झोलाछाप’ कर रहे उपचार

देशभर में खासकर गांवों में बिना जरूरी डिग्री वाले डॉक्टरों की भरमार है। कोई तीन-चार साल तक मेडिकल स्टोर पर काम करने के बाद डॉक्टर बन जा रहा है, तो किसी के पूर्वज इलाज करते आ रहे हैं। ये लोग मरीजों को दर्द निवारक दवाएं व इंजेक्शन की बदौलत तुरंत आराम तो दिला देते लेकिन […]

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तेजी से बढ़ रही है भारत की अर्थव्यवस्था, लेकिन बढ़ भी रही है अमीरों और गरीबों के बीच की खाई

भारत को सोचना चाहिए की सकारात्मक विकास दर के बावजूद वह चीन की तरह गरीबी को क्यों नहीं खत्म कर पा रहा। भारत के लिए प्रगति की रफ्तार में गिरावट ही चिंता की बात नहीं है, वह उन दूसरे देशों से आगे निकलने में भी सुस्त हो गया है जो आर्थिक वृद्धि और विकास के […]

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मणिपुर मामला: चीरहरण को देख कर, दरबारी सब मौन प्रश्न करे अँधराज पर, विदुर बने वो कौन

यहां बात सिर्फ आरोप-प्रत्‍यारोपों की नहीं है। सवाल सिस्‍टम के बड़े फेलियर का है। क्‍या सिर्फ वीडियो वायरल होने के बाद सरकार के संज्ञान में कोई घटना आएगी? उसका तंत्र क्‍या कर रहा है? क्‍यों दो महीने तक कोई कार्रवाई नहीं हुई? क्‍या लोगों की निशानदेही नहीं की जा सकती थी? ऐसे कई बड़े सवाल […]

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खेलों का डर्टी दंगल या फिर नियमों का उल्लंघन, असंवेदनशील सरकार है इसकी जिम्मेदार

समय-समय पर खेल जगत से ऐसे आरोप क्यों लगते रहते हैं। क्यों महिला खिलाड़ी यौन शोषण का शिकार होकर भी चुप रहती है कि कहीं उनका कैरियर खत्म न कर दिया जाये। भविष्य में ऐसा न हो और देश की बेटियां सुरक्षित महसूस करते हुए खेल में कैरियर बनाएं, यह सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न […]

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बेलगाम शिक्षा व्यवस्था: किताबों में कमीशन का खेल, अभिभावक रहे झेल

स्कूलों की मनमानी, किताबें बनी परेशानी निजी स्कूल बने किताबों के डीलर तो दुकानदार बने रिटेलर स्कूलों द्वारा तय निजी प्रकाशकों की किताबें एनसीईआरटी की किताबों से पांच गुना तक महंगी हैं। एनसीईआरटी की 256 पन्नों की एक किताब 65 रुपये की है जबकि निजी प्रकाशक की 167 पन्नों की किताब 305 रुपये में मिल […]

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