सबका साध्य एक: भीतर का बदलाव, स्व की पहचान, शाश्वत मूल्यों का स्वीकरण एवं पवित्रता की साधना
सुविधा और सुख का संबंध नहीं है। पदार्थ की प्रचुरता है, किन्तु सुख नहीं है। पदार्थ की अल्पता है, किन्तु दुख नहीं है। सुखी वह है, जो संतुलित है। दुखी वह है, जो असंतुलित है। संतुलन और असंतुलन से जुड़ा है सुख-दुख का प्रश्न, अभाव और अतिभाव का संवेदन। संतुलित वह है जो आत्म-रमण करता […]
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