बढ़ती छात्र आत्महत्याएँ: कानून हैं, लेकिन संवेदना कहाँ है?

भारत में बढ़ती छात्र आत्महत्याएँ एक गहरी सामाजिक और मानसिक स्वास्थ्य संकट का संकेत हैं। मानसिक स्वास्थ्य कानून (2017) और आत्महत्या रोकथाम नीति (2021) ने क़ानूनी ढाँचा तो दिया, पर उसका असर सीमित रहा। जागरूकता की कमी, काउंसलिंग ढाँचे का अभाव और अभिभावकों की अपेक्षाएँ छात्रों को अवसाद की ओर धकेल रही हैं। अब ज़रूरत […]

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हरियाणा में तबादलों का संकट – शिक्षकों की उम्मीदों पर विराम

“अप्रैल से इंतज़ार, अब तक अधर में तबादले; मॉडल स्कूल का परिणाम टला, नई नीति भी अधूरी” हरियाणा में शिक्षकों के तबादले अप्रैल में होने थे, लेकिन आज तक प्रक्रिया शुरू नहीं हो पाई। सरकार ने घोषणा की थी कि सबसे पहले मॉडल स्कूल का परिणाम आएगा और उसी के आधार पर तबादलों की दिशा […]

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पांडुलिपियों का डिजिटलीकरण: सांस्कृतिक संरक्षण से राष्ट्रीय पुनर्जागरण तक

भारत की प्राचीन पांडुलिपियाँ केवल कागज़ पर लिखे शब्द नहीं, बल्कि हमारी सभ्यता की आत्मा हैं। इनमें विज्ञान, चिकित्सा, दर्शन और कला का अनमोल खजाना है। उपेक्षा और उपनिवेशकाल की लूट ने इन्हें खतरे में डाल दिया। प्रधानमंत्री मोदी का आह्वान कि पांडुलिपियों का डिजिटलीकरण “बौद्धिक चोरी” को रोकेगा, समयानुकूल है। डिजिटलीकरण से संरक्षण, शोध […]

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वामपंथी सोच और भारतीय संस्कृति: समृद्धि या विकृति?

भारत, एक ऐसा देश जहां संस्कृति, धर्म, कला, और साहित्य की जड़ें सदियों से फैली हुई हैं, आज एक महत्वपूर्ण मोड़ पर खड़ा है। यह देश विविधताओं में एकता का प्रतीक है, और इसकी सांस्कृतिक धरोहर विश्वभर में प्रशंसा पाती है। लेकिन पिछले कुछ दशकों में, वामपंथी विचारधारा ने भारतीय समाज के कई पहलुओं पर […]

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हरियाणा की ड्रीम पॉलिसी: शिक्षक तबादलों के अधूरे सपनों की हकीकत?

सरकार ने घोषणा की थी कि इस वर्ष तबादले अप्रैल में होंगे, किंतु सितंबर तक भी प्रक्रिया शुरू नहीं हुई। यह देरी न केवल शिक्षकों के साथ वादाख़िलाफ़ी है, बल्कि छात्रों की पढ़ाई और विद्यालयों के संचालन पर भी सीधा आघात है। हरियाणा सरकार की “ड्रीम पॉलिसी” का उद्देश्य था शिक्षक तबादलों में पारदर्शिता और […]

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हिंदी दिवस का संदेश: भाषा से जुड़ता है समाज और संस्कृति, मातृभाषा में शिक्षा ही वास्तविक राष्ट्रनिर्माण का मार्ग

मातृभाषा केवल संवाद का साधन नहीं, बल्कि हमारी पहचान और संस्कृति से जुड़ाव का माध्यम है। नई शिक्षा नीति (2020) ने कक्षा 5 तक मातृभाषा में शिक्षा पर बल दिया है, जिससे बच्चों की समझ, आत्मविश्वास और भागीदारी बढ़ेगी। अंग्रेज़ी का महत्व अपनी जगह है, परंतु प्रारंभिक शिक्षा मातृभाषा में ही सबसे प्रभावी है। चुनौतियों […]

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शहरीकरण और सामाजिक संकट: भीड़ में बढ़ता अकेलापन

सबसे बड़ी चुनौती है सामुदायिक बंधनों का क्षरण। गाँवों में जहाँ पड़ोसियों और रिश्तेदारों के बीच गहरे संबंध होते हैं, वहीं शहरों में रहने वाले लोग अक्सर अनजानेपन और दूरी का अनुभव करते हैं। गेटेड सोसाइटी और उच्च-आय वर्गीय कॉलोनियों ने सामाजिक जीवन को खंडित कर दिया है। लोग अपने छोटे-से घेरे में सिमट जाते […]

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भारत की चिप क्रांति : सपनों से साकार होती हकीकत

उम्मीदों की चिप ने दिए आत्मगौरव और नवाचार को पंख भारत आज उस ऐतिहासिक मोड़ पर खड़ा है जहाँ तकनीकी आत्मनिर्भरता केवल आर्थिक प्रगति का साधन नहीं, बल्कि राष्ट्रीय गर्व और वैश्विक नेतृत्व की दिशा भी बन गई है। दशकों तक चिप और सेमीकंडक्टर क्षेत्र में केवल उपभोक्ता के रूप में पहचाने जाने वाला भारत […]

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जीएसटी पर सियासत या राहत: ‘एक देश, एक टैक्स’ और बदलती नीतियों का सच…

जीएसटी दरों में कटौती जनता के लिए राहत का संकेत है, लेकिन बार-बार बदलते तर्क सरकार की नीतियों पर सवाल खड़े करते हैं। जीएसटी लागू होने के बाद सरकार ने नौ साल तक ऊँची दरों को ज़रूरी बताते हुए उनके फायदे गिनाए। अब दरें घटाने पर वही तर्क उलटे रूप में दिए जा रहे हैं। […]

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राष्ट्रीय साहित्यान्चल सम्मान हेतु डॉ. प्रियंका सौरभ और डॉ. सत्यवान सौरभ का चयन

“देश-विदेश में सक्रिय लेखन, 27 पुस्तकों के रचयिता साहित्यकार दंपत्ति का साहित्यान्चल सम्मान हेतु चयन” भीलवाड़ा, राजस्थान – औद्योगिक नगरी के साथ-साथ साहित्य साधना की धरा बन चुके भीलवाड़ा से एक महत्वपूर्ण समाचार सामने आया है। साहित्यांचल संस्था द्वारा घोषित परिणामों में सिवानी मंडी के गाँव बड़वा के साहित्यकार दंपत्ति डॉ. प्रियंका सौरभ और डॉ. […]

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