नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु, कर्नाटक और महाराष्ट्र में होने वाली बैलों की परंपरागत दौड़ पर रोक नहीं लगाई है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्रीय पशु क्रूरता अधिनियम में तमिलनाडु सरकार की ओर से किए गए संशोधन की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा है।
यानी महाराष्ट्र में बैलगाड़ी दौड़, कर्नाटक में कांबाला और तमिलनाडु में जल्लीकट्टू का परंपरागत खेल जारी रहेगा। सुप्रीम कोर्ट में पशु क्रूरता अधिनियम में बदलावों की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई थी। अदालत ने याचिकाएं खारिज कर दीं। तमिलनाडु ने कानून में यह बदलाव 2014 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद किया था, जिसमें अदालत ने जल्लीकट्टू और इसी तरह के दूसरे खेलों पर रोक लगा दी थी।
इस मामले पर जस्टिस केएम जोसेफ, जस्टिस अजय रस्तोगी, जस्टिस अनिरुद्ध बोस, जस्टिस ऋषिकेश रॉय और जस्टिस सीटी रविकुमार की बेंच सुनवाई कर रही थी।
सुप्रीम कोर्ट ने कानून में संशोधन और जल्लीकट्टू पर क्या टिप्पणी की
कानून संशोधन: सुप्रीम कोर्ट ने 2014 में पशु कल्याण विभाग और ए नागराज के केस में जल्लीकट्टू पर बैन लगाया था। इसके बाद तमिलनाडु सरकार ने कानून में संशोधन किया। सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने गुरुवार को कहा- कानून में बदलाव 2014 में नागराज केस में दिए गए फैसले के खिलाफ नहीं हैं। उस केस में कानून के जो खराब पहलू थे, वह बदलावों के बाद हट गए। इन बदलावों के चलते वास्तव में पशुओं को होने वाला दर्द और यातना कम हुई है। इन बदलावों को राष्ट्रपति की मंजूरी भी मिली थी। इसमें भी गलती नहीं हो सकती है।
जल्लीकट्टू: हम इस बात से आश्वस्त हैं कि तमिलनाडु में जल्लीकट्टू पिछली एक सदी से होता आ रहा है। क्या तमिलनाडु की सांस्कृतिक विरासत में इसे शामिल किए जाने पर और ज्यादा विस्तार से चर्चा की जरूरत है? हम यह नहीं कर सकते हैं। जब विधानसभा ने यह घोषित कर दिया कि जल्लीकट्टू तमिलनाडु की सांस्कृतिक विरासत है, तब हम इस पर कोई अलग नजरिया नहीं रख सकते हैं। इस पर फैसला करने के लिए विधानसभा ही सबसे अच्छी जगह है।
तमिलनाडु सरकार ने कहा था- जल्लीकट्टू में सांडों से कोई क्रूरता नहीं होती
पिछली सुनवाई में सरकार ने हलफनामे में कहा था कि जल्लीकट्टू केवल मनोरंजन का काम नहीं है, बल्कि महान ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व वाला कार्यक्रम है। इस खेल में सांडों पर कोई क्रूरता नहीं होती है।
राज्य सरकार ने कहा कि पेरू, कोलंबिया और स्पेन जैसे देश भी बुल फाइटिंग को अपनी सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा मानते हैं। इसके अलावा सरकार ने तर्क दिया कि जल्लीकट्टू में शामिल सांडों को साल भर किसान ट्रेनिंग देते हैं ताकि कोई खतरा न हो।
भीड़ के बीच सांड को कंट्रोल करने का खेल है जल्लीकट्टू
जल्लीकट्टू के खेल में खिलाड़ियों को खुले सांड को कंट्रोल करना होता है। जल्लीकट्टू को एरु थझुवुथल और मनकुविरत्तु के नाम से भी जाना जाता है। यह खेल पोंगल त्योहार का एक हिस्सा है। यह एक ऐसा खेल है जिसमें भीड़ के बीच एक सांड को छोड़ दिया जाता है और खिलाडी उसे कंट्रोल करने की कोशिश करते हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने 2014 में खेल पर रोक लगा दी
साल 2011 में केंद्र सरकार ने बैलों को उन जानवरों की सूची में शामिल किया, जिनका प्रशिक्षण और प्रदर्शनी बैन है। इसके बाद जानवरों की सुरक्षा करने वाली संस्था पीपल फॉर एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल्स (PETA) ने जल्लीकट्टू खेल को बैन की मांग की। मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा।
2014 में सुप्रीम कोर्ट ने इस खेल पर रोक लगा दी। इसके बाद तमिलनाडु सरकार ने केंद्र से इस खेल को जारी रखने के लिए अध्यादेश लाने की मांग की। 2016 में केंद्र सरकार ने एक अधिसूचना जारी की और कुछ शर्तों के साथ जल्लीकट्टू के आयोजन को हरी झंडी मिल गई।
ये शर्तें थीं कि पूरी प्रतियोगिता की वीडियोग्राफी होगी, बैलों का मेडिकल टेस्ट होगा, मौके पर डॉक्टर्स की टीम, DC और SSP मौजूद रहेंगे। महाराष्ट्र में भी केंद्रीय कानून पशु क्रूरता निवारण अधिनियम 1960 में संशोधन किया गया और जल्लीकट्टू और बैलगाड़ी दौड़ की अनुमति दे दी गई।
जल्लीकट्टू को परमिशन देने वाले कानून के खिलाफ मामला फिर कोर्ट पहुंचा
खेल के आयोजन को लेकर तमिलनाडु सरकार की तरफ से बनाए गए कानून के खिलाफ पेटा फिर सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। पेटा ने इस कानून को रद्द करने की मांग की। उसने कहा कि जानवरों के साथ इस तरह से क्रूरता गलत है। सुप्रीम कोर्ट ने पहले तो याचिका खारिज कर दी, लेकिन पुनर्विचार याचिका दायर होने के बाद सुप्रीम कोर्ट सुनवाई के लिए तैयार हो गया।
Compiled: up18 News
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