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(वरिष्ठ पत्रकार एवं आध्यात्मिक चिंतक)
शादी-ब्याह और उत्सव अब खुशियों के बजाय अनहोनी के साये में सिमट रहे हैं। देखते ही देखते अचानक गिरते लोग ओर मौत,ये घटनाएँ डराने लगी हैं। तनाव, अनियमित जीवनशैली, डीजे का घातक शोर और उपेक्षित स्वास्थ्य हृदय को कमजोर बना रहे हैं ओर हार्ट अटैक जैसी घटनाएं बढ़ती जा रही है…।इन्हें सिर्फ दुर्घटना मानकर नजर अंदाज करने के बजाय इन घटनाओं को रोकने हेतु सतर्कता ओर जागरूकता दोनों ही जरूरी है…!यदि नही चेते तो उल्लास के ये क्षण मातम में बदलते रहेंगे…?
शादी-ब्याह और उत्सव, जो कभी उल्लास और आनंद का प्रतीक हुआ करते थे, आजकल भयावह घटनाओं के साये में सिमटते जा रहे हैं। विदिशा में स्टेज पर नृत्य करती महज 23 साल की युवती का अचानक गिरकर दम तोड़ देना हो या श्योपुर में घोड़ी पर बैठे दूल्हे की अचानक मृत्यु ऐसी ही घटनाएं है जो अब लगातार सामने आ रही हैं। इन मौतों का कारण सिर्फ “प्रभु की मर्जी”, “किस्मत” या “अचानक अटैक” कहकर नजरअंदाज करना पर्याप्त नहीं है। इनके पीछे कुछ गहरे, वैज्ञानिक और सामाजिक पहलू हैं, जिन पर हमें ध्यान देने की जरूरत है।
साल दर साल सामने आने वाले आंकड़े चौकाते है।राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों के अनुसार, भारत में अचानक मौतों की संख्या में चिंताजनक वृद्धि देखी गई है। वर्ष 2022 में, देश में कुल 56,653 अचानक मौतें दर्ज की गईं, जो 2021 की तुलना में लगभग 12% अधिक हैं। इनमें से 32,410 मौतें दिल का दौरा (हार्ट अटैक) के कारण हुईं, जबकि शेष 24,243 अन्य कारणों से थीं। अचानक मरने वालों में सबसे अधिक 19,456 मौतें 45 से 60 वर्ष की आयु वर्ग में दर्ज की गईं। हाल के समय में, विशेष रूप से सार्वजनिक आयोजनों जैसे गरबा, विवाह समारोह, और अन्य सामाजिक कार्यक्रमों के दौरान, दिल का दौरा पड़ने से अचानक मौतों के मामले सामने आए हैं। उदाहरण के लिए, गुजरात में गरबा आयोजनों के दौरान, एक ही दिन में कम से कम 10 लोगों की मौत दिल का दौरा पड़ने से हुई, जिनमें सबसे कम उम्र का व्यक्ति 17 वर्ष का था।
इन घटनाओं के पीछे संभावित कारणों में कोविड-19 के बाद की जटिलताएँ, तनावपूर्ण जीवनशैली, और अत्यधिक शारीरिक गतिविधियाँ शामिल हो सकती हैं।
विशेषज्ञों का सुझाव है कि कोविड-19 संक्रमण के बाद, विशेष रूप से गंभीर मामलों में, हृदय संबंधी समस्याओं का जोखिम बढ़ सकता है। इसलिए, ऐसे आयोजनों में भाग लेने से पहले अपने स्वास्थ्य की स्थिति का मूल्यांकन करना और आवश्यक सावधानियाँ बरतना महत्वपूर्ण है। इन आंकड़ों और घटनाओं से स्पष्ट है कि सार्वजनिक आयोजनों में अचानक मौतों की संख्या में वृद्धि हो रही है, जो समाज के लिए गंभीर चिंता का विषय है। पहले 50-60 साल की उम्र में दिल का दौरा पड़ना सामान्य माना जाता था, लेकिन अब 20-40 की उम्र में भी या उससे कम में भी लोग हार्ट अटैक के शिकार हो रहे हैं ।
इस महामारी के फैलाव की महज एक वजह नही मानी जा सकती बल्कि तमाम वजहों का सम्मिलित स्वरूप इनकी बढ़ोतरी में सहायक है।असंतुलित जीवनशैली,खाने में फास्ट फूड कल्चर,व्यायाम की कमी, मोटापा ,युवाओं में केरियर, रिश्तों और सामाजिक दबाव का बोझ,अनियंत्रित कैफीन और एल्कोहल सेवन भी इसकी वजह है।कुछ प्रकरणों में अनुवांशिक कारण अर्थात परिवार में हृदय रोग का इतिहास भी आने वाली पीढ़ी को विरासत में मिल जाता है
अधिकांशतः लोग अनदेखी स्वास्थ्य समस्याएं और मेडिकल चेकअप की अनदेखी कर जाते है।कई लोग पहले से हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज, या कोलेस्ट्रॉल जैसी समस्याओं से जूझ रहे होते हैं, लेकिन वे खुद को पूरी तरह फिट मानते हैं।शादी से पहले या बड़े आयोजनों से पहले मेडिकल चेकअप की परंपरा नहीं है, जबकि शरीर पर अचानक बढ़े तनाव (शारीरिक व मानसिक) से गंभीर समस्या हो सकती है।30 साल की उम्र के बाद नियमित हृदय जांच, ब्लड प्रेशर मॉनिटरिंग और स्वस्थ जीवनशैली को बढ़ावा देने हेतु जागरूक बनना आवश्यक हो गया है।
इसके अलावा वर्तमान में कर्णप्रिय धीमे संगीत की जगह डीजे के कानफोड़ू शोर ने ले ली जिसका कम्पन्न घातक भूमिका निभाते हुये शरीर मे विचलन पैदा कर देता है।विवाह समारोहों में आजकल डीजे की धुनें सिर्फ मनोरंजन का माध्यम नहीं रहीं, बल्कि एक असहनीय शोर में बदल गई हैं
विशेषज्ञ बताते है कि डीजे की तेज ध्वनि से एड्रेनालिन हार्मोन की अचानक बढ़ोतरी, जिससे हृदय गति असामान्य हो सकती है।बेस (Bass) वाली ध्वनि हृदय की लय पर प्रभाव डालती है, जिससे अतालता (Arrhythmia) हो सकती है।अचानक ऊँचे स्वर में संगीत का झटका (Acoustic Shock), जो शरीर में घबराहट और बेचैनी पैदा करता है।तेज रोशनी और डीजे की चमक-धमक मिर्गी (Epilepsy) और ब्रेन स्ट्रोक का कारण बन सकती है।
85 डेसिबल से अधिक शोर हानिकारक होता है लेकिन आज इससे कई गुना तेज क्षमता का संगीत डीजे यंत्रों पर बज रहा है जिस पर शासन को सख्ती से रोक लगाना चाहिए।नाच-गाने में संयम और सतर्कता बेहद जरूरी है।आयोजन के जोश में अगर शरीर संकेत दे रहा है (तेजी से सांस फूलना, सीने में दबाव, चक्कर आना) तो तुरंत रुकें। ताजा हालातो को देखते हुये विवाह समारोह या बड़े आयोजनों में एम्बुलेंस और प्राथमिक चिकित्सा की व्यवस्था को भी व्यवस्थाओं का एक बड़ा अंग माना जाये अर्थात आयोजनों में फर्स्ट-एड, डॉक्टर और जरूरी दवाएं एहतियातन अनिवार्य रूप से रखी जाएं।
शादी-ब्याह या अन्य आयोजनों का मकसद खुशियां मनाना होता है, न कि किसी अप्रिय घटना के कारण मातम छा जाना। समय रहते इन खतरों को पहचान कर सावधानी बरतें तो इस भयावह प्रवृत्ति को रोका जा सकता हैं। अन्यथा डीजे की धुन पर नाचने के नाम पर हम अपनी नई पीढ़ी को अनदेखे खतरे में डाल रहे हैं। समय आ गया है कि समाज इन घटनाओं को सिर्फ “दुर्घटना” मानकर नजरअंदाज न करे बल्कि इनके असली कारणों को समझकर उन्हें रोकने के उपाय करे।यह त्रासदी आने वाले समय की विकराल समस्या बनती जा रही है जो भविष्य के मांथे पर चिंता की लकीरें खींच रही है।