उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में अर्जुनगंज में एक ऐसा मंदिर है जहां का चौंका देने वाला इतिहास और मान्यताएं व इस मंदिर से जुड़े किस्से कहानियां आपको अपने दांतों तले उंगली दबाने पर मजबूर कर देंगी। इतना ही नहीं ऐसी मान्यता है कि यहां आकर झोली फैलाने वाले लोग कभी खाली हाथ नहीं लौटते। वैसे तो यह मंदिर हमेशा अपने भक्तों के लिए खुला रहता है लेकिन खासकर सोमवार और शुक्रवार को अधिक लोग दर्शन करने पहुंचते है। इस अदभुद मंदिर की सबसे बड़ी खासियत है यहां देवी दीवारों से घिरी किसी मंदिर में स्थापित नहीं हैं और न ही वे किसी मूर्ति के रुप में विराजमान है।
हम जिस मंदिर के बारे में बात कर रहे हैं वह इतिहास में लगभग 150 साल पुराना है। इस मंदिर को लोग मरी माता का मंदिर के नाम से जानते हैं। इस मंदिर में आपको हर तरफ घंटियां और चुनरियां बंधी हुई नजर आएंगी। यह मंदिर राजधानी लखनऊ में स्थित मरी माता मंदिर लखनऊ सुल्तानपुर हाईवे पर है।
150 साल पुराना है यह ऐतिहासिक मंदिर
मरी माता का मंदिर का इतिहास 150 साल पुराना है। देखने में एकदम साधारण से इस मंदिर में चारो तरफ आस्था और विश्वास से भरी चुनरियां और घंटियां एक विश्वास का प्रतीक है। इस मंदिर में सिर्फ एक छोटा सा दिया जो भक्तों की बड़ी से बड़ी मनोकामनाओं को पूरा कर देता है। इतना ही नहीं जो लोग इस मंदिर की मान्यता के बारे में नहीं जानते है वो इस रास्ते से गुजरते समय यहां कि अदभूद शक्ति अपनी ओर अनायास की आकर्षित कर लेती है। यहां मरी माता मंदिर के रास्ते में दूर दूर तक सड़क के किनारे लाखों की संख्या में घंटियां बंधी देख कर हर कोई इस मंदिर की ओर खींचा चला आता है। यह घंटियां वो लोग यहां बांधते है जिन्होंने यहां अपनी मनोकामना मांगी थी और पूरी होने के बाद घंटिया बांधी जाती है।
इस मंदिर की आस्था और विश्वास के पीछे है यह कहानी
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार सती जी जब योग बल से आत्मदाह कर के जान दे दी थी तो तभी से उन्हें मरी माता मंदिर भी कहा जाने लगा।
मंदिर के पीछे छिपे हैं ये विश्वास और दंत कथाएं
ऐसा कहा जाता है कि एक बार यात्रियों से भरी बस पुल से नीचे गिर गई थी, लेकिन किसी को कुछ नहीं हुआ। सभी लोग सुरक्षित बच गए। मरी माता ने उन्हें बचा लिया। उन लोगो ने यहां घंटी बांध दी और बांधने की परंपरा चल निकली।
इसके अलावा एक कहानी ये भी है कि एक व्यक्ति बोल नहीं पाता था। उसने यहां आकर अपनी जीभ काट दी और माता मंदिर के सामने चढ़ा दी। लेकिन वह व्यक्ति बिना जीभ के ही बोलने लगा और जीवित रहा। इसके अलावा अनगिनत किस्से और कहानियां इस मंदिर से जुड़ी आस्था और विश्वास का प्रतीक है।
-एजेंसी
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