इस बार अक्षय तृतीया 22 अप्रैल को पड़ रही है. अक्षय तृतीया पर घरों में सोना या यूं कहें गोल्ड ज्वैलरी खरीदने पर जोर दिया जाता है, क्योंकि ऐसा करना शुभ माना जाता है. लेकिन फाइनेंस की नजर से देखें तो गोल्ड ज्वैलरी आपका लंबा नुकसान करा सकती है.
3 से 25 प्रतिशत तक मेकिंग चार्ज
सोने को ढाल कर गोल्ड ज्वैलरी में बदलना एक मेहनत का काम है. वहीं इसे बनाने में काफी सारा वेस्टेज भी होता है. इसलिए कोई भी ज्वैलर अपनी जेब से इसका खर्च नहीं देता, बल्कि वो मेकिंग चार्ज या पुराने सोने को खरीदने में घटतौली करके इस खर्च की भरपाई करता है. पुराने जमाने में सोने की शुद्धता भी इस मामले में एक बड़ी समस्या होती थी, लेकिन अब हॉलमार्क ज्वैलरी का चलन बाजार में है.
अब भारत में ब्रांडेड ज्वैलर्स सोने के सिक्के पर 3 प्रतिशत का तो बाकी पर ज्वैलरी टाइप के हिसाब से 25 प्रतिशत तक का मेकिंग चार्ज लेते हैं. वहीं लोकल ज्वैलर्स भी पुराना सोना खरीदने में 10 प्रतिशत तक की कटौती करते हैं या 5 से 7 प्रतिशत का वेस्टेज चार्ज लेते हैं. इसलिए जब आप गोल्ड ज्वैलरी को इंवेस्टमेंट के नजरिए से देखते हैं तो आपको मेकिंग चार्ज या वेस्टेज चार्ज का नुकसान उठाना पड़ता है.
मुसीबत के समय जब आप ज्वैलर के पास इन जेवरात को लेकर जाते हैं तो वो इन चार्जेस को काटकर आपको सोने की वैल्यू दे देता है. आम तौर पर कुछ सालों में सोने का प्राइस बढ़ जाता है, इसलिए लोगों को लगता है कि गोल्ड ज्वैलरी पर बढ़ा हुआ रेट मिलेगा, लेकिन मेकिंग चार्जेस का नुकसान आपको रिटर्न ऑन इंवेस्टमेंट (RoI) को कम कर देता है.
गोल्ड बांड में निवेश का फायदा
अब बात करते हैं गोल्ड बांड की, सरकार ने फिजिकल गोल्ड की डिमांड कम करने के लिए ही सॉवरेन गोल्ड बांड की शुरुआत की थी. इसका मकसद देश में सोने का आयात कम करना भी है. भारतीय रिजर्व बैंक हर साल कई किश्तों में गोल्ड बांड जारी करता है. इसमें एक आम आदमी 1 ग्राम सोने की वैल्यू से लेकर 4 किलोग्राम तक की वैल्यू के लिए इंवेस्ट कर सकता है. इसे किसी भी बैंक या पोस्ट ऑफिस से लिया जा सकता है.
गोल्ड बांड की खास बात ये है कि इसमें आपका पैसा गोल्ड की मार्केट वैल्यू के हिसाब से बढ़ता जाता है. वहीं हर साल का 2.5 प्रतिशत का ब्याज आपको अलग से मिलता है. यानी डबल मुनाफा, मेकिंग चार्ज का खर्चा भी बचा और गोल्ड की वैल्यू बढ़ने के साथ-साथ ब्याज भी मिला. वहीं 5 साल बाद प्री-मैच्योरिटी का फायदा उठाते हुए भुनाया भी जा सकता है. जबकि 8 साल के बाद मैच्योरिटी पर आपको उस समय की गोल्ड वैल्यू के हिसाब से रिटर्न मिलता है.
हालांकि गोल्ड बांड का एक नुकसान है कि इसकी लिक्विडिटी गोल्ड ज्वैलरी जैसी नहीं है. मतलब कि मुश्किल वक्त में आप इसे किसी के पास गिरवी नहीं रख सकते या आधी रात को किसी ज्वैलर के पास जाकर बेच नहीं सकते. पर एक बात और है वो ये कि इसे डीमैट तरीके से शेयर मार्केट में ट्रेड भी किया जा सकता है.
Compiled: up18 News
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