SEBI ने नेशनल स्टॉक एक्सचेंज NSE को अपना सोशल स्टॉक एक्सचेंज SSE लॉन्च करने की अंतिम मंजूरी दे दी है। इसका मकसद समाज की भलाई के लिए काम करने वाले ट्रस्ट और नॉन-प्रॉफिट ऑर्गेनाइजेशन (NPO) को शेयर बाजार से फंड जुटाने में मदद करना है। इंग्लैंड, कनाडा और ब्राजील जैसे देशों में पहले से ही सोशल स्टॉक एक्सचेंज काम कर रहे हैं।
SSE पर सिर्फ सोशल इंटरप्राइजेज (NPO और चेरिटेबल ट्रस्टों) के शेयरों का लेन-देन होगा। बता दें कि पिछले साल SEBI ने सोशल स्टॉक एक्सचेंज के लिए एक फ्रेमवर्क भी जारी किया था। फंड जुटाने के लिए अब ये ऑर्गनाइजेशन पब्लिक ऑफर के जरिए जीरो कूपन-जीरो प्रिंसिपल बॉण्ड (ZCZP) जारी कर सकते हैं या प्राइवेट प्लेसमेंट के जरिए शेयर जारी करके भी पैसे जुटा सकते हैं।
NSE ने अपने बयान में कहा कि पहला कदम NPO के लिए SSE पर खुद को रजिस्टर करना है और फिर वे फंड जुटाने की प्रक्रिया शुरू कर सकते हैं। सेमेको सिक्योरिटी के CEO जिमित मोदी ने कहा, ‘यह अभी टेक-ऑफ नहीं होगा, बल्कि इसका फायदा 15-20 साल में दिखेगा। अभी इसमें रिटर्न के एंगल को लेकर क्लेरिटी नहीं है, लेकिन मॉनिटरिंग, जिम्मेदारी और खुलासा के अभाव में दान आने में जो रुकावटें हैं वो दूर होंगी।
वहीं HDFC सिक्योरिटी के इक्विटी रिटेल रिसर्च हेड दीपक जसानी का कहना है कि इसमें लोगों की रुचि लिमिटेड रहेगी। यह डोनेशन की तरह है। यहां पैसा बनना नहीं, बल्कि पैसा देना है। गौरतलब है कि सोशल स्टॉक एक्सचेंज के नए फ्रेमवर्क में गैर-लाभकारी संगठनों (NPO) के लिए न्यूनतम जरूरतों को तय किया गया है, जो इस बाजार में पंजीकरण और खुलासे के लिए जरूरी है। भारत में करीब 31 लाख NPO होने के कारण देश में इस एक्सचेंज के लिए काफी संभावनाएं बढ़ गई हैं।
ट्रेडर्स खुद को नहीं बता सकेंगे फंड मैनेजर
NSE ने गुरुवार को सदस्यों और अधिकृत व्यक्तियों को एडवाइजर, म्यूचुअल फंड्स, म्यूचुअल फंड सर्विसेज, कैपिटल मैनेजर, फंड एडवाइजर और एसेट/वेल्थ/पोर्टफोलियो मैनेजमेंट जैसे नामों/शब्दों का इस्तेमाल करने से प्रतिबंधित कर दिया है। NSE ने कुल 61 शब्दों का इस्तेमाल करने से ट्रेडर्स को रोक दिया है। NSE का मानना है कि इन शब्दों का इस्तेमाल होने से निवेशक गुमराह होते हैं।
हालांकि, एक्सचेंज का यह भी कहना है कि अगर SEBI या अन्य किसी नियामक से वे इस प्रकार की सेवाओं यानी 61 शब्दों से जुड़ी सेवाओं के लिए रजिस्ट्रेशन करा लेते हैं तो वे इसका इस्तेमाल कर सकेंगे। सर्कुलर में कहा गया है, ‘ट्रेडिंग मेंबर/ऑथराइज्ड पर्सन को सिर्फ एंटिटी के रजिस्ट्रेशन के हिसाब से अपना टाइटल पेश करना चाहिए और किसी भी तरीके से रौब जमाने के लिए ऐसे शब्द नहीं इस्तेमाल करने चाहिए, जिसके लिए एंटिटी रजिस्टर्ड नहीं है।’ NSE ने 61 शब्दों की लिस्ट तो पेश की है लेकिन यह भी कहा कि यह सिर्फ उदाहरण (इलस्ट्रटिव) के लिए है और पूरी नहीं है।
सोशल स्टॉक एक्सचेंज क्या है?
साल 2020 में SEBI सोशल स्टॉक एक्सचेंज के लिए फ्रेमवर्क लेकर आया था। इसका मकसद सोशल एंटरप्राइजेज को अपना फंड बढ़ाने के लिए रेवेन्यू का सोर्स मुहैया कराना है। केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 2019-20 के अपने केंद्रीय बजट भाषण में SSE को बनाने का प्रस्ताव दिया था।
यह NSE से कैसे अलग है?
ये एक्सचेंज NSE का अलग सेगमेंट होगा। अब प्राइवेट कंपनियों की तरह सोशल एंटरप्राइजेज, नॉन प्रॉफिट ऑर्गेनाइजेशन (NPO) या फॉर प्रॉफिट सोशल एंटरप्राइजेज (FPEs) भी खुद को शेयर बाजार में लिस्ट करा सकेंगे और पैसे जुटा सकेंगे। कॉर्पोरेट फाउंडेशन, ट्रेड एसोसिएशन, राजनीतिक और धार्मिक संगठन, इंफ्रास्ट्रक्चर कंपनियां सोशल स्टॉक एक्सचेंज पर लिस्ट होने के एलिजिबल नहीं हैं।
क्या रिटेल इन्वेस्टर कर सकेंगे इसमें निवेश?
रिटेल इन्वेस्टरों को केवल फॉर प्रॉफिट सोशल एंटरप्राइजेज में निवेश करने की अनुमति होगी। अन्य मामलों के केवल इंस्टीटूयूशनल इन्वेसटर और नॉन-इंस्टीटूयूशनल इन्वेसटर सोशल एंटरप्राइजेज की सिक्योरिटीज में निवेश कर सकेंगे।
Compiled: up18 News