एलियन की खोज में पृथ्वी से वैज्ञानिक तमाम तरह के सिग्नल अंतरिक्ष में भेजते रहते हैं। अंतरिक्ष में भी सिग्नल की खोज वैज्ञानिक करते रहते हैं, लेकिन जिन सिग्नल का इस्तेमाल वह एलियन सभ्यता की खोज के लिए करते हैं वह पारंपरिक हैं। अब वैज्ञानिकों का मानना है कि संभवतः एलियन सभ्यता ने अपना बहुत विकास कर लिया हो, जिसके कारण वह किसी और तरह के सिग्नल टेक्निक का इस्तेमाल करते हों।
हालांकि थ्योरेटिकल फिजिक्स के वैज्ञानिक प्रोफेसर अर्जुन बेरेरा का कहना है कि ये संभव है कि एलियन सभ्यताओं ने कम्युनिकेशन में अधिक उन्नति कर ली हो। इस वजह से जरूरी नहीं कि जो सिग्नल हम इस्तेमाल करते हैं, वही एलियन भी इस्तेमाल करते होंगे। हमें क्वांटम दृष्टिकोण के साथ संकेतों की तलाश करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि पृथ्वी पर ही कम्युनिकेशन के स्तर में विकास हुआ है। आज से 50 साल पहले हम जिन चीजों का इस्तेमाल करते थे आज उनका इस्तेमाल नहीं होता।
बड़ी मात्रा में डेटा भेज सकता है क्वांटम कम्युनिकेशन
क्वांटम कम्युनिकेशन चैनल से मैसेज भेजने का सबसे बड़ा फायदा ये है कि इसके जरिए आप बहुत बड़ी संख्या में जानकारी प्रसारित कर सकते हैं। क्लासिकल तरीके से बिट्स के रूप में जानकारी भेजने की जगह क्यूबिट में भेजा जा सकता है। बिट्स में किसी भी संकेत का मान सिर्फ शून्य और एक होता है। लेकिन क्यूबिट में इन दोनों के साथ-साथ क्वांटम सुपरपोजिशन भी होता है। आसान भाषा में क्वांटम माध्यम से बड़ी मात्रा में डेटा छोटे ट्रांसमिशन से भी जा सकता है। वैज्ञानिक चाहते हैं कि मिल्की वे के बाहर तक सिग्नल भेजे जाएं।
क्या आ सकती है दिक्कत
अपनी स्टडी में प्रो. बेरेरा और उनके सहयोगी जैम काल्डेरोन फिगुएरोआ ने यह पता लगाने की कोशिश की है कि क्या इंटरस्टेलर दूरी पर फोटॉन आधारित क्वांटम कम्युनिकेशन संभव हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि इतनी बड़ी दूरी पर काम करने के लिए उपयोग की जाने वाली फोटॉन को सुसंगत रहने की जरूरत होगी, यानी जिस क्वांटम अवस्था में वह भेजी जाएं उसी अवस्था में बनी रहें। हालांकि गुरुत्वाकर्षण और अन्य कणों का मिलना सिग्नल को तोड़ने में सक्षम है, जिसके कारण भेजा गया सिग्नल खराब हो सकता है।
-एजेंसियां
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