संन्यासी अखाड़ों ने स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद को शंकराचार्य मानने से इंकार कर दिया है। 11 सितंबर को ज्योतिषपीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरुपानंद सरस्वती का मध्य प्रदेश स्थित आश्रम में निधन हो गया था। इसके बाद उनके शिष्य अविमुक्तेश्वरानंद को शंकराचार्य घोषित किया गया था। लेकिन सभी सन्यासी अखाड़ों का कहना है कि अविमुक्तेश्वरानंद की नियुक्ति नियमों के विरुद्ध है।
निरंजनी अखाड़े के सचिव और अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत रविंद्रपुरी ने कहा है कि ”अवमुक्तेश्वरानंद को ज्योतिषपीठ का शंकराचार्य घोषित करना नियम विरुद्ध है। शंकराचार्य की नियुक्ति की एक प्रक्रिया होती है। इस मामले में उसका पालन नहीं किया गया है।”
जल्दबाजी में हुई है नियुक्ति
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक महंत रविंद्रपुरी ने बताया कि ”जगद्गुरु के ब्रह्मलीन होने के एक दिन बाद ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य पद पर हुई नियुक्ति गलत है। शंकराचार्य की षोडशी होने से पहले सनातन धर्म के इस सर्वोच्च पद पर की गई नियुक्ति अनाधिकार उठाया गया कदम है। संन्यासी अखाड़ों की उपस्थिति में ही शंकराचार्य की घोषणा होती रही है। इस तरह जल्दबाजी में शंकराचार्य के पद पर नियुक्ति सनातन धर्म के लिए नुकसानदायक है।”
रविंद्रपुरी के मुताबिक नए शंकराचार्य की नियुक्ति की रणनीति तय करने के लिए जल्द ही सभी सात संन्यासी अखाड़ों की बैठक बुलाई जाएगी। बता दें अविमुक्तेश्वरानंद को कथित तौर पर स्वामी स्वरूपानंद द्वारा तैयार की गई वसीयत के आधार पर नया शंकराचार्य घोषित किया गया था। नए शंकराचार्य का विरोध करने वालों का कहना है कि स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज ने अपने जीते जी किसी को शंकराचार्य घोषित नहीं किया था।
शंकराचार्य बनने की योग्यता?
शंकाराचार्य का पद आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित चारों पीठों में सर्वोच्च पद है। एक रिपोर्ट के मुताबिक शंकराचार्य बनने के लिए त्यागी ब्राम्हण, ब्रह्मचारी, दंड सन्यासी होने के साथ-साथ संस्कृत, चतुर्वेद, वेदांत और पुराणों का ज्ञाता होना अनिवार्य है। इसके अलावा अखाड़ों के प्रमुखों, आचार्य महामंडलेश्वरों और काशी विद्वत परिषद की स्वीकृति लेना भी आवश्यक होता है। सभी कसौटियों को पूरा करने बाद ही शंकराचार्य की पदवी मिलती है।
-एजेंसी
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